महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर ठाकरे ब्रदर्स चर्चा में हैं. शिवसेना (UBT) चीफ उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई MNS चीफ राज ठाकरे के साथ आने की चर्चाएं हर तरफ हो रही हैं. हालांकि, ये संभावना सिर्फ बयानबाजी पर आधारित है और दोनों पक्ष इशारों में नरमी भरी बातें करके माहौल में गर्मी बढ़ा रहे हैं. विश्लेषण इस बात के होने लगे हैं कि क्या ठाकरे परिवार का विवाद सुलझ गया है? 20 साल बाद दोनों भाई हाथ मिलाएंगे? इसके पीछे कोई सियासी मजबूरी है या कुछ समीकरण हैं, जो दोनों को गिले-शिकवे भूलने के लिए तैयार कर रहे हैं.
दरअसल, महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का दबदबा माना जाता है. खासकर मुंबई और मराठवाड़ा के शहरी क्षेत्रों में इनकी पकड़ आज भी मजबूत मानी जाती है. ठाकरे परिवार का आधार मराठी अस्मिता, हिंदुत्व और शहरी वोटबैंक में रहा है. शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव, बाल ठाकरे के बेटे हैं. जबकि उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे को बाल ठाकरे की शैली वाले लोकप्रिय नेता के तौर पर माना जाता है.
MNS पर वजूद का संकट!
साल 2006 में दोनों भाइयों के बीच मनमुटाव हुआ और ये विवाद इतना गहराया कि रास्ते अलग हो गए. राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर मनसे (MNS) बनाई. युवाओं और आक्रामक भाषणों के कारण राज ठाकरे लोकप्रिय तो हुए, लेकिन अपनी पार्टी कभी शिवसेना जितनी बड़ी नहीं बना पाई. हाल के विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला और पार्टी-सिंबल गंवाने का खतरा भी आ गया. वर्तमान में राज का रुख हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर केंद्रित है.
क्या उद्धव सेना दबाव में?
इधर, 2019 में उद्धव ने BJP से अलग होकर महाविकास अघाड़ी सरकार बनाई. इस अलायंस में NCP और कांग्रेस प्रमुख तौर पर हैं. ये दोनों ही पार्टियां कभी शिवसेना की वैचारिक विरोधी रही हैं. यही वजह है कि उद्धव के MVA का हिस्सा बनने के बाद कुछ हिंदुत्व समर्थकों में नाराजगी देखी गई. इसका असर चुनावों में भी देखने को मिला.
शिंदे सेना लगातार दे रही चुनौती
2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बगावत की और 40 से ज्यादा विधायकों के साथ एनडीए का हिस्सा बन गए. BJP के समर्थन से शिंदे मुख्यमंत्री बने. अब वे शिवसेना नाम और चुनाव चिन्ह के वैध दावेदार हैं. दरअसल, उनका गुट ठाकरे परिवार के प्रभाव को चुनौती देते आ रहा है. शिंदे का धड़ा शिवसेना के पारंपरिक वोटबैंक (ठाकरे परिवार) में सीधे सेंध लगा रहा है.
फिलहाल, महाराष्ट्र की राजनीति अब तीन ध्रुवीय हो चुकी है. उद्धव ठाकरे (शिवसेना-UBT), राज ठाकरे (मनसे) और एकनाथ शिंदे (EC से मान्यता प्राप्त शिवसेना). तीनों मराठी अस्मिता और हिंदुत्व की अलग-अलग व्याख्या कर रहे हैं, और वोटबैंक की खींचतान इसी परिवार के भीतर चल रही है.
चुनावी नतीजों ने दिखाया आइना?
ठाकरे फैमिली में रार का नतीजा विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला. उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) कुल 94 सीटों पर चुनाव लड़ी और 20 सीटें जीत पाई. मुंबई में 36 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 10 सीटों पर जीत मिली. प्रमुख सीटें वर्ली, माहिम, वर्सोवा, जोगेश्वरी ईस्ट, वांद्रे ईस्ट हैं.
माहिम सीट पर अमित ठाकरे (राज ठाकरे के बेटे) तीसरे स्थान पर रहे. उद्धव गुट को माहिम सीट पर जीत मिली. राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस चुनाव में 125 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. इस हार ने MNS के वजूद को संकट में डाल दिया. MNS को निराशाजनक प्रदर्शन के कारण मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल और अपने 'रेल इंजन' वाले चुनाव चिह्न खोने का खतरा मंडरा रहा है.
हालांकि, राज ठाकरे के उम्मीदवार उतारने से उद्धव गुट को जबरदस्त फायदा मिला और इसका सीधा नुकसान शिंदे गुट को हुआ. शिंदे गुट के उम्मीदवार कई सीटों पर कुछ हजार वोटों के अंतर से चुनाव हार गए. MNS उम्मीदवारों के वोट काटने से उद्धव सेना को जीत में मदद मिली. मुंबई में 36 सीटें हैं और मनसे ने 25 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे.
उद्धव और राज ने क्या बयान दिए?
मुंबई में शिवसेना कामगार सेना की रैली आयोजित की गई. इस कार्यक्रम में उद्धव ठाकरे ने कहा, मैंने विवादों को सुलझा लिया है. मैं छोटे-मोटे विवादों को भी किनारे रखने के लिए तैयार हूं. मैं सभी से मराठी के हित के लिए एकजुट होने की अपील करता हूं. उद्धव ने यह कहकर सीधे राज ठाकरे की ओर दो कदम बढ़ाए.
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उद्धव ठाकरे ने कहा, मराठी और महाराष्ट्र के हित के लिए एक बहुत छोटा सा झगड़ा, जब आप बाहर जाकर समाचार पढ़ेंगे तो आपको समझ में आएगा कि छोटे से झगड़े का संबंध क्या है. मैं छोटे-मोटे झगड़ों को भी किनारे रखने के लिए तैयार हूं. मैं सभी मराठी लोगों से भी अपील करता हूं कि वे महाराष्ट्र और मराठी के हित के लिए एकजुट हों. लेकिन मेरी एक शिकायत है, जब हम लोकसभा के समय कह रहे थे कि महाराष्ट्र का उद्योग गुजरात लेकर जाया जा रहा है, उसी वक्त विरोध किया होता तो केंद्र में सरकार वहां नहीं होती.
उन्होंने आगे कहा, महाराष्ट्र हित की सरकार हम केंद्र में स्थापित करते और राज्य में भी महाराष्ट्र के विचार करने वाली सरकार होती, लेकिन उस वक्त समर्थन दिया गया, फिर विरोध किया गया और फिर गठजोड़ करने का... ऐसा नहीं चलेगा. उद्धव ने आगे कहा, महाराष्ट्र के हित के बीच में जो भी कोई आएगा, मैं उसके घर नहीं जाऊंगा, घर नहीं बुलाऊंगा, उसका स्वागत नहीं करूंगा, उसके साथ नहीं बैठूंगा. पहले यह तय कीजिए और फिर महाराष्ट्र के हित की बात कीजिए.
उद्धव ठाकरे ने कहा, हमारे बीच मेरी तरफ से कोई झगड़ा नहीं है, चलिए मिटा देता हूं, लेकिन पहले यह तय कीजिए कि बीजेपी के साथ जाना है कि शिवसेना के साथ. यानी मेरे साथ. गद्दार सेना के साथ नहीं. तय कीजिए किसके साथ जाकर महाराष्ट्र और हिंदुत्व का हित होने वाला है. बीजेपी के साथ या मेरे साथ. बाकी क्या करना है, समर्थन करना है, विरोध करना है, बिना शर्त समर्थन करना है, मुझे कुछ नहीं कहना, लेकिन मेरी एक ही शर्त है महाराष्ट्र का हित. बाकी किसी और के लिए समर्थन-प्रचार नहीं करेंगे, यह छत्रपत्ति शिवाजी महाराज के सामने शपथ लीजिए. यानी उद्धव ने इस शर्त पर मनसे के साथ गठबंधन करने की इच्छा जाहिर कर दी.
राज ठाकरे ने कहा- हमारे झगड़े मामूली...
हाल ही में दिग्गज निर्देशक और फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर ने अपने यूट्यूब चैनल के लिए MNS चीफ राज ठाकरे का इंटरव्यू लिया. जिसमें उन्होंने पूछा कि क्या राज और उद्धव ठाकरे एक साथ आ सकते हैं? इस पर राज ठाकरे ने कहा, सवाल यह है कि किसी भी बड़ी बात के लिए हमारे बीच की बहस, हमारे बीच की लड़ाई, हमारे बीच की बातें छोटी-छोटी होती हैं. महाराष्ट्र बहुत बड़ा है. महाराष्ट्र के अस्तित्व के लिए, मराठी लोगों के अस्तित्व के लिए, ये सारे झगड़े और विवाद बहुत महत्वहीन हैं. इसलिए मुझे नहीं लगता कि एक साथ आना और एक साथ रहना कोई बहुत कठिन बात है.
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राज ठाकरे ने आगे कहा, विषय तो सिर्फ इच्छा का है. यह सिर्फ मेरी इच्छा का मामला नहीं है. यह मेरे स्वार्थ का मामला नहीं है. मुझे लगता है कि हमें महाराष्ट्र के लिए बड़ी तस्वीर पर गौर करने की जरूरत है. मैं महाराष्ट्र को देख रहा हूं. मैं यह कह रहा हूं कि महाराष्ट्र के सभी राजनीतिक दलों के सभी मराठी लोगों को एक साथ आना चाहिए और एक पार्टी बनानी चाहिए.
क्यों एक साथ आने की चर्चा?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद कई लोगों ने शिवसेना (UBT) के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए थे. दूसरी ओर, राज ठाकरे की मनसे भी चुनाव में अपना खाता भी नहीं खोल सकी. कई लोगों ने इच्छा जताई कि दोनों भाइयों को अपनी पार्टी के अस्तित्व और महाराष्ट्र के हितों के लिए एक साथ आना चाहिए.
बीएमसी चुनाव और अस्तित्व की लड़ाई...
लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद अब महाराष्ट्र में नगर निगम चुनाव की बारी है. तीन साल से लंबित बृहन्मुंबई नगर निगम के चुनाव इस अक्टूबर में हो सकते हैं. विधानसभा चुनाव में जीत के बाद बीएमसी पर कब्जा के लिए एनडीए पूरी ताकत लगा रहा है और शिवसेना भी बीएमसी की सत्ता को खोना नहीं चाहती है. मुंबई में शिवसेना और ठाकरे फैमिली का प्रभाव जगजाहिर है. यदि MNS और शिवसेना (यूबीटी) गठबंधन का हिस्सा बनते हैं तो राज्य का सियासी माहौल बदलने की संभावना है.
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क्या बदल जाएंगे समीकरण?
अगर दोनों भाई फिर से एक हो जाते हैं तो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ उनकी लड़ाई ना केवल ताकत का परीक्षण होगा और भविष्य के गठजोड़ का रास्ता भी प्रशस्त होगा. बीएमसी को शिवसेना का गढ़ माना जाता रहा है. यदि उद्धव सेना बीएमसी का चुनाव हारती है तो असली शिवसेना की लड़ाई में वे काफी पीछे हो जाएंगे.
शिंदे-राज की मुलाकात भी चर्चा में
चार दिन पहले उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अचानक राज ठाकरे के आवास 'शिवतीर्थ' पहुंचे थे और उनसे मुलाकात की. इस बैठक के बाद चर्चाएं होने लगीं कि MNS और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच गठबंधन हो सकता है? हालांकि, बैठक के बाद शिंदे ने कहा, यह एक अनौपचारिक बैठक थी. राज ठाकरे ने मुझे रात्रि भोज पर आमंत्रित किया था. इसीलिए मैं आया हूं. यहां गठबंधन पर कोई चर्चा नहीं हुई. शिंदे ने गठबंधन की खबरों को खारिज कर दिया.
जब नाराज हो गए शिंदे?
19 अप्रैल को एकनाथ शिंदे ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया. उसके बाद एक पत्रकार ने शिंदे से पूछा कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने की चर्चाएं हैं? इस सवाल पर शिंदे भड़क गए. उन्होंने रिपोर्टर का माइक्रोफोन दूर हटा दिया और कहा, जाने दीजिए... काम की बात करिए. वे इस मुद्दे पर बिना कुछ कहे तुरंत चले गए. इस बातचीत का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. शिंदे ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी, उसके बाद सोशल मीडिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं.
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शिंदे इतने नाराज क्यों हो गए?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिंदे की प्रतिक्रिया के पीछे कई राजनीतिक कारण हो सकते हैं. शिंदे ने 2022 में उद्धव से अलग होकर अपना गुट बनाया और बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हो गए. इस बीच, राज ठाकरे और शिंदे के बीच संबंध सुधर गए थे. 17 अप्रैल को शिंदे, राज के आवास पर गए थे और उनसे अनौपचारिक चर्चा की थी, जिससे दोनों के बीच गठबंधन की अटकलें लगाई जाने लगी थीं. हालांकि, अगर राज अब उद्धव के साथ जाते हैं तो शिंदे गुट को बड़ा झटका लग सकता है. शिंदे गुट को नुकसान होने की संभावना है. खासकर ठाणे और मुंबई जैसे क्षेत्रों में, जहां मनसे का प्रभाव है.
महायुति में अंदरखाने सब ठीक है?
महायुति गठबंधन (बीजेपी, शिंदे गुट और अजित पवार गुट) में इस समय सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. पिछले कुछ समय से एकनाथ शिंदे और बीजेपी के बीच अंदरखाने तनाव की खबरें आ रही हैं. ऐसे में अगर राज, उद्धव से हाथ मिलाते हैं तो शिंदे गुट की पॉलिटिकल स्ट्रेटजी गड़बड़ा सकती है. इससे शिंदे की टेंशन बढ़ सकती है.
व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा
शिंदे और उद्धव के बीच राजनीतिक विरोध जगजाहिर है. 2022 में शिंदे ने बगावत कर दी और उद्धव सरकार गिरा दी थी. उसके बाद शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और चिह्न मिल गया, जिस पर उद्धव अक्सर नाराजगी जताते रहे हैं. अब अगर राज और उद्धव एक साथ आते हैं तो विधानसभा चुनाव के बाद स्थानीय निकाय चुनाव में भी शिंदे गुट को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.
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क्या राज और उद्धव एक साथ आ सकते हैं?
आने वाले दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि राज और उद्धव के बीच संभावित गठबंधन की बातें सच होती हैं या नहीं. हालांकि, राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि इससे शिंदे और महागठबंधन के अन्य नेता परेशान हैं.
फिलहाल, महाराष्ट्र की राजनीति में कोई भी नेता अपने प्रतिद्वंद्वियों की गतिविधियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता. शिंदे की प्रतिक्रिया से उनकी आंतरिक उथल-पुथल जाहिर हो गई है, लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि इसका उनके राजनीतिक भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है.