बिहार की राजनीति में कभी 'भूरा बाल साफ करो' जैसे जातीय नारों की अफवाह में बिगड़ी लालू प्रसाद यादव की सियासत बेटे तेजस्वी के जमाने में पटरी पर आने लगी है. लालू की सियासत को लोग भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला यानी कायस्थ से इतर देखते थे. हालांकि कई बार सार्वजनिक मंच से लालू ने इससे इनकार भी किया. लेकिन लालू यादव के बेटे और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी ने जातीय समीकरणों को साध लिया. यही कारण है कि बिहार विधान परिषद के चुनाव में तेजस्वी ने उम्मीदवारों को चुनने से पहले उनके जातीय बैकग्राउंड का ख्याल रखा. विधान परिषद चुनाव में राजद के 6 उम्मीदवारों की जीत हुई है. जिसमें 3 भूमिहार तबके से आते हैं.
राजद को ये पता है कि बिहार की सत्ता का रास्ता यादव और भूमिहार से होकर गुजरता है. लेकिन पिछले तीन दशकों में भूमिहार कभी भी लालू के समर्थक नहीं रहे. लेकिन तेजस्वी ने विधान परिषद चुनाव में भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट दिया.
तेजस्वी ने 5 प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें 3 ने जीत दर्ज की. साथ ही विधान परिषद में अपनी मां और पूर्व सीएम राबड़ी देवी के नेता प्रतिपक्ष बनने का रास्ता भी साफ कर दिया. जीतने वाले भूमिहार प्रत्याशियों में पश्चिमी चंपारण से सौरभ कुमार, पटना से कार्तिकेय कुमार और मुंगेर से अजय सिंह शामिल हैं.
तेजस्वी का अगड़ा दांव विधान परिषद के चुनाव में सफल रहा है. अब सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि तेजस्वी बिहार की सवर्ण जातियों को साधने की दिशा में पहला कदम बढ़ा चुके हैं. हालांकि जानकार मानते हैं कि तेजस्वी पूरे बिहार को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं, जिसका इशारा उन्होंने मनोज झा को राज्यसभा में भेजकर दे दिया था. राजद के टिकट पर भूमिहारों की जीत राजद की नई रणनीति का हिस्सा है तेजस्वी की ये ट्रिक बीजेपी के लिए चिंता का कारण बन सकती है. खासकर बीजेपी की सारण और मुंगेर में हुई हार पार्टी के लिए सियासी झटका है.