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भारतीय सैनिकों को क्यों हटाना चाहता है मालदीव, किस मुल्क की आर्मी दुनिया के चप्पे-चप्पे में है?

मालदीव में 80 से भी कम भारतीय सैनिक हैं. इसके बाद भी राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू इन्हें हटाने पर तुले हुए हैं. चुनावी प्रचार के दौरान भी उन्होंने इसे प्राथमिकता में रखा. यहां सोचने की बात है कि बहुत से देश हैं, जिनकी पूरी फौज सालों से फॉरेन लैंड में तैनात है, फिर मालदीव को इतने से भारतीय जवानों से क्या समस्या हो गई?

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अमेरिका की आर्मी दुनिया के ज्यादातर देशों में है. (Photo- Getty Images)
अमेरिका की आर्मी दुनिया के ज्यादातर देशों में है. (Photo- Getty Images)

मोहम्मद मुइज्जू जब से मालदीव के राष्ट्रपति चुने गए, तब से भारत के साथ इस देश के रिश्तों में तनाव आ गया. आते ही उन्होंने 'इंडिया आउट' कैंपेन का मुद्दा उठाया. उनका कहना है कि अपने यहां उन्हें किसी दूसरे मुल्क की मौजूदगी नहीं चाहिए. मुइज्जू चीन समर्थक माने जाते हैं. यहां जानने की बात है कि सैनिकों के छोटे समूह से एक देश को क्या समस्या हो गई, वो भी तब जबकि ये सेना उसी की मदद के लिए गई थी. 

कितने भारतीय सैनिक हैं वहां

मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (MNDF) के अनुसार, उनके यहां फिलहाल 77 भारतीय सैनिक हैं. करीब दशकभर पहले हमने इस देश को ध्रुव हेलिकॉप्टर्स लीज पर दिए थे. इसके अलावा डोर्नियर एयरक्राफ्ट भी दिया जा चुका है. भारतीय आर्मी इन क्राफ्ट्स की देखभाल करती और वहां के लोगों को ट्रेनिंग देती है.

क्यों हटाना चाहता है इंडियन आर्मी को

भारत लगातार इस देश के काम आता रहा. लेकिन तब भी मालदीव की नई सरकार इंडिया आउट पर तुली है. इसकी वजह उसकी प्रो-चाइना पॉलिसी को माना जा रहा है. मुइज्जू को चीन का करीबी बताया जाता रहा. मुइज्जू  प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव्स से जुड़े हुए हैं, जिसने चीन के वन बेल्ट वन रोड योजना को अपने यहां मंजूरी दी थी.

ये देश चीन का कर्जदार भी हो चुका है. ऐसे में उसपर चाहे-अनचाहे प्रेशर है कि वो चीन की बात माने. चूंकि चीन और भारत के रिश्ते अक्सर ही तनावपूर्ण रहते हैं, ऐसे में उसके भारत से उखड़ा होने की वजह समझना मुश्किल नहीं. 

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maldives india out campaign amid controversy over lakshadweep photo AP

मुइज्जू पहले भी इंडिया आउट कैंपेन का हिस्सा रह चुके हैं. उन्होंने चुनावी कैंपेन के दौरान वादा किया था कि वे सत्ता में आने के सौ दिनों में क्या-क्या करेंगे. इसमें भारतीय सैनिकों को देश से भेजना भी शामिल था. 

आबादी को साधने की कोशिश 

एक कारण ये भी है कि मालदीव की बड़ी आबादी मुस्लिम है. फिलहाल ये देश चीन के अलावा मुस्लिम देश तुर्की से भी नजदीकी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. मुइज्जू सत्ता में आने के बाद वहां के दौरे पर भी गए थे. तुर्की चूंकि खुद को मुस्लिम देशों का लीडर मानता है तो ये कनेक्शन साफ है. ऐसे में इंडियन सैनिकों की उपस्थिति का खटकना भी स्पष्ट है. 

भारत के लिए क्यों अहम है मालदीव में होना

मालदीव हिंद महासागर में प्रमुख शिपिंग लेन के बगल में स्थित है. यह लेन चीन, जापान और भारत जैसे देशों को ऊर्जा आपूर्ति पक्की करता है. चीन ने समुद्री डकैती विरोधी अभियानों के नाम पर कुछ सालों पहले हिंद महासागर में अदन की खाड़ी तक अपने नौसैनिक जहाज भेजने शुरू कर दिए थे. इसके बाद से ही भारत के लिए मालदीव का महत्व और बढ़ गया. अगर वो इससे चूकता है तो चीन मौके का फायदा ले सकता है. 

maldives india out campaign amid controversy over lakshadweep  photo Getty Images

क्यों बड़े देश बनाते रहे हैं आर्मी बेस

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मालदीव में तो हमारे चुनिंदा सैनिक हैं, लेकिन कई बड़े देशों का भारी बल दूसरे देशों में तैनात है. ये ट्रेंड दूसरे विश्व युद्ध के बाद बढ़ा. मसलन, जर्मनी को ही लें तो हिटलर की खुदकुशी के साथ ही जर्मनी ने हथियार डाल दिए. इसके बाद कई विजेता देशों की सेनाएं देश छोड़ने लगीं, लेकिन अमेरिका रुका रहा. उसने फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी के साथ करार कर लिया था, जिसके तहत शांति बनाने के लिए वो 10 सालों तक जर्मनी में रहा. इस दौरान लाखों की संख्या में सैनिक वहां रहे और लोकल नीतियों से जुड़ते रहे.

जर्मनी में अमेरिका का गढ़

अब भी जर्मनी में 33 हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिक हैं. ये पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा हैं. इसके अलावा साढ़े 9 हजार से ज्यादा एयरफोर्स अफसर हैं जो जर्मनी की अलग-अलग जगहों पर तैनात हैं. अमेरिकी फौज को परेशानी न हो, इसके लिए जर्मनी में कई आर्मी बेस छोटे-मोटे शहर में बदल चुके. जैसे रेम्सटाइन शहर में स्कूल और शॉपिंग मॉल अमेरिकी तर्ज पर हैं और डॉलर करेंसी चलती है. 

यूएस की फोर्स सबसे ज्यादा देशों में

फिलहाल दुनिया में सबसे ज्यादा देशों में अमेरिकी सैनिक ही तैनात हैं. उसके पौने 2 लाख से ज्यादा सैनिक 159 देशों में हैं, वहीं 80 देशों में साढ़े 7 सौ मिलिट्री बेस हैं. ये अमेरिका को दुश्मन देशों पर नजर रखने में मदद करते हैं. किसी देश में हो रहा छोटे से छोटा बदलाव भी वाइट हाउस को पता लग जाता है. यानी ये वर्चस्व स्थापित करने का जरिया है.

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 maldives india out campaign amid controversy over lakshadweep photo- Getty Images

इसके बाद रूस का नंबर आता है. उसने सेंट्रल और वेस्ट एशिया में बहुत से आर्मी बेस बनाए हुए हैं. अब इसका टारगेट अफ्रीका है. बाकी देश, जैसे यूरोपियन मुल्क और चीन ने भी फॉरेन लैंड पर बेस बनाए हुए हैं. 

कोई देश क्यों देता है इसकी इजाजत
 

अगर किसी कंट्री में अस्थिरता हो, तो यहां अपने सैनिक घुसाना आसान है. जैसे अमेरिका को ही लें तो वो हर जगह लोकतांत्रिक सरकार बनाने में मदद का दावा करता है. वो अपने सैनिक भेजता है जो किसी एक दल की चुनाव जीतने में मदद करें. इसके बाद सैनिक वहीं ठहर जाते हैं, जिनका काम ऊपरी तौर पर स्थिरता बनाए रखने को सुनिश्चित करना है. लेकिन ये वहां हो रही हलचलों पर भी नजर रखते हैं. 

जिस भी देश में विदेशी  सेना बड़ी संख्या में होती है, वहां की पॉलिसी से लेकर पॉलिटिक्स पर उसका असर दिखता है. जैसे चीन ने कई देशों में अपने सैनिक तैनात किए हुए हैं. चीनी कर्ज से दबे इन हिस्सों में अब प्रो-ड्रैगन नीतियां बनने लगी हैं. या फिर अमेरिका के मामले में भी ऐसा दिखता रहा. 

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