scorecardresearch
 

आखिर तेजस्वी यादव को CM फेस घोषित करने में कौन बाधा बन रहा? छोटे सहयोगी दल साथ, लेकिन कांग्रेस...

बिहार चुनाव को लेकर महागठबंधन की पटना बैठक में सीएम फेस के तौर पर तेजस्वी यादव के नाम का ऐलान औपचारिकता माना जा रहा था लेकिन ऐसा नहीं हुआ. छोटे सहयोगी दल तेजस्वी के नाम पर सहमत हैं लेकिन कांग्रेस को आखिर दिक्कत क्यों है?

Advertisement
X
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव

बिहार की राजधानी पटना में गुरुवार को महागठबंधन के घटक दलों की बैठक से पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने दो  टूक कह दिया था कि तेजस्वी यादव ही सीएम फेस हैं. विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के संस्थापक मुकेश सहनी पहले ही तेजस्वी को छोटा भाई बता सीएम बनाने की बात कह चुके थे. दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से तेजस्वी की मुलाकात भी हो चुकी थी. छोटे दलों का साथ भी था. ऐसे में यह माना जा रहा था कि पटना की बैठक के बाद तेजस्वी की सीएम उम्मीदवारी का ऐलान हो जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

महागठबंधन के घटक दलों के नेताओं की बैठक के बाद साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव के लिए गठबंधन की कोऑर्डिनेशन कमेटी बनाने का ऐलान हुआ. इसमें हर दल से दो-दो सदस्य होंगे. यह भी कहा गया कि 13 सदस्यों वाली यह कमेटी ही बिहार चुनाव को लेकर सभी फैसले लेगी. महागठबंधन के इस नए 'पावर सेंटर' की कमान भी तेजस्वी यादव को ही सौंपने का ऐलान भी हो गया लेकिन सीएम फेस का सवाल यहां भी निरुत्तर ही रह गया. इसे लेकर सवाल पर तेजस्वी यादव ने कहा- थोड़ा इंतजार का मजा लीजिए.

उन्होंने दावा किया कि महागठबंधन में किसी भी विषय पर कोई मतभेद नहीं है. कहा तो ये भी जा रहा है कि तेजस्वी चाहते हैं कि किसी बड़े मंच से कांग्रेस नेतृत्व उनको सीएम फेस घोषित करे. हकीकत चाहे जो भी हो, सवाल उठ रहे हैं कि तेजस्वी यादव को चुनाव से संबंधित सभी फैसले लेने वाली कमेटी का नेतृत्व सौंपने में जब झिझक नहीं है, फिर सीएम फेस घोषित करने में दिक्कत क्या है? वीआईपी और अन्य छोटे सहयोगियों से तेजस्वी की अगुवाई मंजूर है, फिर कांग्रेस को आखिर क्यों दिक्कत है?

Advertisement

कांग्रेस को दिक्कत क्या?

बिहार चुनाव की विस्तृत कवरेज के लिए यहां क्लिक करें

बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें

कांग्रेस भी यह समझ रही है कि बिहार के महागठबंधन में बड़े भाई की भूमिका आरजेडी को ही निभानी है. पैन बिहार प्रभाव, मजबूत संगठन और वोटर बेस के पैमाने पर महागठबंधन का कोई भी घटक दल आरजेडी के आसपास नहीं है. और फिर बात संख्याबल की भी तो है- जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. जाहिर है, जो बड़ा दल होगा सरकार बनने की स्थिति में अगुवाई भी वही करेगा. 2020 के बिहार चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी.

सासाराम सुरक्षित सीट से कांग्रेस के सांसद मनोज कुमार ने कहा भी है, "महागठबंधन में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कोई उलझन नहीं है. सीएम फेस तय करना हमारे लिए एक घंटे का काम है." तेजस्वी यादव को लेकर सवाल पर उन्होंने कहा कि उनमें (तेजस्वी में) मुख्यमंत्री बनने की योग्यता है और हम उनका समर्थन करते हैं. कांग्रेस सांसद भी तेजस्वी को सीएम के योग्य बता रहे हैं. फिर आखिर दिक्कत क्या है? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.

1- आरजेडी की छाया वाला नैरेटिव काउंटर करने की कोशिश

कांग्रेस का हाथ बिहार में 1999 से ही लालटेन थाम कर चलता आ रहा है. देश की सबसे पुरानी पार्टी को लेकर सूबे में इस तरह का नैरेटिव बन गया है कि वह आरजेडी की छाया में चलने वाली पार्टी है. कांग्रेस की कोशिश अब इस नैरेटिव को काउंटर करने की है. बिहार में कांग्रेस की रणनीति संगठन को मजबूत करने की है जिससे पार्टी गठबंधन की स्थिति में भी अपनी शर्तों पर बार्गेन करने की स्थिति में रहे. 

Advertisement

2- सरेंडर मोड में नहीं रहेगी पार्टी

लोकसभा चुनाव के समय सीट शेयरिंग की टेबल पर लालू यादव ने कांग्रेस को एक-एक सीट के लिए पानी पिला दिया था. कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद पूर्णिया जैसी सीट न छोड़ जेडीयू से बीमा भारती को लाकर उम्मीदवार घोषित कर दिया. कांग्रेस कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय सीट चाह रही थी लेकिन वह सीट भी नहीं मिली और पार्टी को उन्हें मजबूरन दिल्ली से उतारना पड़ा. विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस लोकसभा चुनाव के समय बनी सरेंडर मोड वाली पार्टी की इमेज बदलना चाहती है. खुद लालू यादव की ओर से बार-बार तेजस्वी की सरकार बनाने के दावे के बावजूद कांग्रेस ने उनकी सीएम उम्मीदवारी पर पेच फंसा दिया है तो इसके पीछे यह संदेश देने की कोशिश भी है कि हम सरेंडर मोड में नहीं हैं.

यह भी पढ़ें: महागठबंधन की बैठक में तेजस्वी के चेहरे पर नहीं बनी सहमति, सिर्फ कॉर्डिनेशन कमेटी की मिली कमान

3- नए नेतृत्व के उभार पर ध्यान

कांग्रेस की कोशिश अब बिहार की सियासत में लालू यादव की छाया से बाहर निकलने की है. पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि आरजेडी से गठबंधन है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उसके फैसले लालू यादव करेंगे. लालू परिवार की नापसंद कन्हैया कुमार की पदयात्रा में खुद राहुल गांधी का शामिल होना हो या फिर कांग्रेस के अधिवेशन में पप्पू यादव को बुलाया जाना और अखिलेश प्रताप सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया जाना, इन सबको भी इसी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. कांग्रेस का ध्यान अब सूबे में नई लीडरशिप तैयार करने पर है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: राहुल-खड़गे से बिहार चुनाव में सीटों पर क्या बात हुई? तेजस्वी यादव ने बाहर बताया

4- वोट बेस बढ़ाने की रणनीति

तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट घोषित करने से परहेज चुनाव में वोट बेस बढ़ाने की रणनीति से भी जोड़ा जा रहा है. कांग्रेस को लग रहा है कि आरजेडी के वोटर्स यह जानते हैं कि तेजस्वी यादव ही सीएम बनेंगे. अगर सीएम फेस घोषित किए बिना सामूहिक नेतृत्व वाले फॉर्मूले पर चुनाव लड़ा जाए तो हो सकता है कि गैर यादव ओबीसी जातियां जो तेजस्वी के नाम पर शायद वोट करने से परहेज करें, उनका समर्थन भी मिल सकता है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement