अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में सेना को 33 साल बाद परमाणु हथियारों के परीक्षण फिर शुरू करने का आदेश दिया है. ट्रंप का कहना है कि चीन, रूस और पाकिस्तान जैसे देश परीक्षण कर रहे हैं, इसलिए अमेरिका को पीछे नहीं रहना चाहिए. लेकिन ऊर्जा सचिव ने कहा कि अभी विस्फोट वाले परीक्षण नहीं होंगे.
यह फैसला दुनिया में नई बहस छेड़ रहा है. आइए जानें, अमेरिका ने कुल कितने परीक्षण किए. क्यों रुक गए और ट्रंप क्यों फिर शुरू करना चाहते हैं. साथ ही, आखिरी परीक्षण 'डिवाइडर' और उसके बाद रद्द हुए तीन परीक्षणों की रोचक कहानी.
दूसरी विश्व युद्ध के बाद, 16 जुलाई 1945 को न्यू मैक्सिको में पहला परमाणु परीक्षण 'ट्रिनिटी' हुआ. उसके बाद अमेरिका ने 1992 तक कुल 1054 परमाणु परीक्षण किए. इनमें से 215 हवा या पानी में हुए, बाकी ज्यादातर भूमिगत.
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US President Donald Trump has ordered the US military to resume testing nuclear weapons after a gap of 33 years. How many nuclear weapons tests have there been, why were they stopped - and why would Trump want to start them again? pic.twitter.com/nas5qkQI1t
— Reuters (@Reuters) November 4, 2025
ये परीक्षण हथियारों की ताकत, सुरक्षा और नई तकनीक आजमाने के लिए थे. अमेरिका दुनिया का सबसे ज्यादा परीक्षण करने वाला देश है. सोवियत संघ ने 715, ब्रिटेन ने 45 किए. लेकिन 1992 के बाद अमेरिका ने खुद ही रोक लगा ली.

शीत युद्ध खत्म होने के बाद 1992 में अमेरिका ने स्वेच्छा से परीक्षण रोक दिए. राष्ट्रपति जॉर्ज बुश सीनियर ने मोरेटोरियम (रोक) लगाया. 1996 में अमेरिका ने 'कॉम्प्रिहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी' (CTBT) पर हस्ताक्षर किए, जो सभी परमाणु परीक्षण रोकने का समझौता है. हालांकि, अमेरिकी सीनेट ने इसे मंजूरी नहीं दी.
फिर भी, चार राष्ट्रपतियों (बुश, क्लिंटन, बुश जूनियर, ओबामा) ने इसे जारी रखा. कारण थे: पर्यावरण को बचाना, दुनिया में शांति बढ़ाना और हथियारों की होड़ रोकना. इसके बजाय, अमेरिका ने कंप्यूटर सिमुलेशन और सबक्रिटिकल परीक्षण (बिना विस्फोट के) से हथियारों की जांच की.
23 सितंबर 1992 को नेवाडा के टेस्ट साइट पर 'डिवाइडर' परीक्षण हुआ. यह ऑपरेशन जुलिन का हिस्सा था. 20 किलोटन की ताकत वाला यह भूमिगत विस्फोट था. लॉस एलामोस लैब के वैज्ञानिकों ने इसे डिजाइन किया. परीक्षण के समय कोई नहीं सोच रहा था कि यह आखिरी होगा.

यह हथियारों की आधुनिक तकनीक आजमाने के लिए था. लेकिन परीक्षण के ठीक एक दिन बाद 24 सितंबर को कांग्रेस ने 9 महीने का मोरेटोरियम बिल पास किया. राष्ट्रपति बुश ने 2 अक्टूबर को इसे कानून बना दिया. शांति समूहों के लंबे अभियान ने दबाव बनाया. हजारों प्रदर्शनकारी नेवाडा साइट पर पहुंचे थे. इस तरह डिवाइडर नाम पड़ा. परीक्षण युग का अंत हुआ.
डिवाइडर के बाद तीन और परीक्षण तैयार थे: आइसकैप, गैब्स और ग्रीनवाटर. ये भी ऑपरेशन जुलिन के हिस्से थे. आइसकैप लॉस एलामोस का था, जो बर्फीले इलाकों में हथियार आजमाने के लिए. गैब्स लिवरमोर लैब का और ग्रीनवाटर एक्स-रे लेजर सिस्टम टेस्ट. ग्रीनवाटर का डिवाइस तो असेंबल हो चुका था लेकिन 16 जुलाई 1992 को ही रद्दीकरण की खबर आई.
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कहानी रोचक है क्योंकि ये परीक्षण राजनीति की भेंट चढ़े. 1992 में कांग्रेस बहस कर रही थी. सीनेट ने 10 दिनों पहले 55-40 से मोरेटोरियम पास किया. हाउस ने 224-151 से मंजूरी दी. शांति संगठनों ने महीनों लॉबिंग की. प्रदर्शनकारियों ने साइट पर घुसने की कोशिश की और 500 गिरफ्तार हुए. सोवियत संघ ने भी परीक्षण रोक दिए थे.

बुश ने कानून साइन किया तो तीनों परीक्षण रद्द हो गए. ग्रीनवाटर का डिवाइस तो तोड़ना पड़ा. यहां से CTBT वार्ताओं की शुरुआत थी. अगर ये होते, तो शायद रोक न लगती. लेकिन ये रद्दीकरण ने दुनिया को शांति की ओर बढ़ाया.
ट्रंप ने 30 अक्टूबर को सोशल मीडिया पर कहा कि मैंने पेंटागन को तुरंत परीक्षण शुरू करने को कहा. उनका तर्क है कि अमेरिका के पास सबसे ज्यादा परमाणु हथियार हैं, लेकिन चीन और रूस नई तकनीक आजमा रहे. पाकिस्तान भी परीक्षण कर रहा है. ट्रंप कहते हैं कि समान आधार पर परीक्षण जरूरी, वरना अमेरिका कमजोर हो जाएगा.
ऊर्जा विभाग के प्रमुख ने कहा कि अभी विस्फोट नहीं, लेकिन तैयारी शुरू. आलोचक कहते हैं कि यह हथियारों की होड़ बढ़ाएगा. संयुक्त राष्ट्र और शांति संगठन चिंतित हैं. अमेरिका CTBT पर हस्ताक्षर कर चुका है, तो फिर परीक्षण गैरकानूनी हो सकता है. लेकिन ट्रंप का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा पहले.