उत्तर प्रदेश के दो जिलों से आई दो खबरों ने पुलिस व्यवस्था की उस स्याह तस्वीर को उजागर कर दिया है, जहां कानून का रक्षक ही सबसे बड़ा उल्लंघनकर्ता बनता दिख रहा है. आगरा में एक निर्दोष युवक को हत्या के मामले में फंसाने के लिए थर्ड डिग्री टॉर्चर दिए जाने का आरोप है, जबकि बिजनौर में चार लोगों की मौत के बाद सबूत बदलने में पुलिसवालों की भूमिका सामने आई है.
आगरा के किरावली थाना क्षेत्र में रहने वाले 35 वर्षीय राजू का आरोप है कि पुलिस ने उसे एक हत्या के मामले में जबरन गुनाह कबूल कराने के लिए थाने में बेरहमी से पीटा. पीड़ित का कहना है कि पुलिस हिरासत में उसे उल्टा लटकाकर डंडों से मारा गया. उसे इतना पीटा गया कि उसके दोनों पैर टूट गए. जब वह बेहोश हो गया तो पुलिसकर्मी उसे अपनी गाड़ी से अस्पताल ले गए.
पीड़ित राजू के मुताबिक, होश में आने के बाद भी पुलिस की धमकियां जारी रहीं. उससे कहा गया कि यदि उसने मर्डर कबूल नहीं किया तो उसकी जिंदगी तबाह कर दी जाएगी. पीड़ित का दावा है कि पुलिसवालों ने बाद में उसके परिवार को 10 हजार रुपए देकर मामला रफा-दफा करने की भी कोशिश की, लेकिन उसके पिता ने पैसे लेने से इनकार कर दिया.
पीड़ित ने आरोप लगाया है कि मारपीट के वक्त थाने के कई पुलिसकर्मी मौजूद थे. उसका कहना है कि थानाध्यक्ष धर्मवीर मौके पर थे और उनकी मौजूदगी में ही उसे बांधकर पीटा गया. डंडों से इस कदर मारा गया कि उसका शरीर टूट गया. उसका दावा है कि केंद्रीय मंत्री तक का फोन आया, लेकिन इसके बावजूद पुलिस ने उसे नहीं छोड़ा. उसे प्रताड़ित किया जाता रहा.
परिवार का आरोप है कि पुलिस ने गलती मानते हुए इलाज का खर्च उठाने का आश्वासन दिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या एक निर्दोष की टूटी हुई जिंदगी की भरपाई सिर्फ पैसे से हो सकती है. इस मामला सामने आने के बाद आगरा पुलिस के आलाधिकारियों ने कार्रवाई करते हुए किरावली थानाध्यक्ष, एक उपनिरीक्षक और एक बीट आरक्षी को निलंबित कर दिया है.
इसी बीच उत्तर प्रदेश के बिजनौर से सामने आई दूसरी घटना ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर एक और बड़ा सवाल खड़ा कर दिया. थाना नांगल क्षेत्र में मिट्टी से भरे एक डंपर की टक्कर से क्रेटा कार सवार चार लोगों की मौत हो गई. आरोप है कि हादसे के बाद अवैध खनन को छिपाने और आरोपियों को बचाने के लिए पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की है.
दावा है कि जिस मिट्टी से भरे डंपर से हादसा हुआ, उसे हटाकर उसकी जगह एक खाली डंपर थाने में खड़ा कर दिया गया. इस खेल में थाना प्रभारी और एक सिपाही की भूमिका सामने आई, जिसके बाद दोनों को सस्पेंड कर दिया गया. आगरा और बिजनौर की घटनाएं बड़ा सवाल खड़ा करती हैं. क्या कुछ थानों में बैठे लोग अपराधियों को बचाने और निर्दोषों को फंसाने का काम कर रहे हैं.