
ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का 88 साल की उम्र में निधन हो गया. वेटिकन ने उनके निधन की पुष्टि करते हुए बताया कि वह लंबे समय से बीमार थे. हालांकि रविवार को ही अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने पोप फ्रांसिस से मुलाकात की थी और उसके बाद वह चार दिवसीय भारत दौरे पर सोमवार सुबह दिल्ली पहुंचे हैं. पोप को हाल ही में निमोनिया हो गया था और वह इससे रिकवर कर रहे थे.
लंबे वक्त तक अस्पताल में भर्ती रहे
वेटिकल में अपने बयान में कहा कि पोप फ्रांसिस इतिहास के पहले लैटिन अमेरिकी धर्मगुरु, जिन्होंने अपनी विनम्र शैली और गरीबों के प्रति चिंता से दुनियाभर में लोकप्रियता हासिल की थी. फ्रांसिस, जो फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित थे और युवावस्था में उनके एक फेफड़े का हिस्सा निकाल दिया गया था, को 14 फरवरी, 2025 को सांस की तकलीफ के कारण जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जो बाद में डबल निमोनिया में बदल गया. उन्होंने वहां 38 दिन बिताए, जो उनके 12 साल के पोप पद के दौरान सबसे लंबे वक्त के लिए एडमिट थे.
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उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान दुनिया से अपील की थी कि आर्थिक और राजनीतिक ढांचे पर पुनर्विचार करने के अवसर के रूप में इस समय का इस्तेमाल करें, जिसके कारण अमीर और गरीब एक-दूसरे के खिलाफ हो गए हैं. फ्रांसिस ने मार्च 2020 में खाली पड़े सेंट पीटर्स स्क्वायर में कहा था, 'हमें एहसास हो गया है कि हम एक ही नाव पर सवार हैं, हम सभी कमज़ोर और भ्रमित हैं.' लेकिन उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि महामारी ने यह ज़रूरत दिखा दी है कि हम सभी को एक साथ नाव चलाने की ज़रूरत है, हममें से हर एक को दूसरे को सांत्वना देने की ज़रूरत है.
दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक नेता
पोप को ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक गुरु कहा जाता है और उनके पास धार्मिक, प्रशासनिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक शक्तियां होती हैं. उनकी शक्तियों का दायरा काफी बड़ा है. लेकिन यह आधुनिक समय में कुछ सीमाओं के साथ आता है. वह पूरी दुनिया का आध्यात्मिक नेतृत्व करते हैं और पोप दुनियाभर के 1.4 अरब से ज्यादा कैथोलिकों के आध्यात्मिक नेता होते हैं. वह कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च अधिकारी हैं और विश्वास, नैतिकता, और धार्मिक शिक्षाओं के मामले में अंतिम फैसला लेने का अधिकार रखते हैं.
पोप को कुछ खास परिस्थितियों में 'अचूक' माना जाता है, यानी विश्वास और नैतिकता के मुद्दों पर उनकी शिक्षाएं गलत नहीं हो सकतीं. हालांकि, यह सिद्धांत सिर्फ विशेष अवसरों पर लागू होता है, जैसे एक्स कैथेड्रा बयान और इसका इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है. पोप के पास अगले पोप का ऐलान करने और कैनन लॉ स्थापित करने के साथ-साथ चर्च की शिक्षाओं को परिभाषित करने की शक्ति भी होती है.
पोप वेटिकन सिटी स्टेट के शासक होते हैं, जो एक संप्रभु राष्ट्र है. उनके पास कार्यकारी, विधायी और न्यायिक सभी शक्तियां हैं. वह वेटिकन के प्रशासन, वित्त और विदेश नीति को कंट्रोल करते हैं. इसके अलावा दुनियाभर में बिशप और कार्डिनल की नियुक्ति भी पोप ही करते हैं, जो चर्च के स्थानीय और वैश्विक प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह उन्हें चर्च की दिशा को आकार देने की अपार शक्ति देता है.
वेटिकन में पोप का फैसला अंतिम
इसके अलावा वेटिकन की सभी संस्थाओं पर पोप का पूरा नियंत्रण होता है. वेटिकन के विभिन्न विभागों (कॉन्ग्रिगेशन्स, काउंसिल्स) और वित्तीय संस्थानों जैसे वेटिकन बैंक पर पोप का फैसला अंतिम माना जाता है. पूरी दुनिया में ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. ऐसे में पोप के पास सीधे तौर पर सैन्य या आर्थिक शक्ति भले ही न हो, लेकिन उनकी नैतिक और आध्यात्मिक ताकत उन्हें वैश्विक मंच का सबसे प्रभावशाली नेता बनाती है. वह ग्लोबल लीडर्स के साथ मुलाकात करते हैं और शांति, पर्यावरण और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर असल डालते हैं.
वेटिकन के 180 से ज्यादा देशों के साथ राजनयिक संबंध हैं और पोप इन संबंधों के केंद्र में हैं. वह मध्यस्थता और शांति वार्ता में भूमिका निभा सकते हैं. उदाहरण के तौर पर 2014 में क्यूबा-अमेरिका संबंधों में पोप फ्रांसिस ने अहम रोल निभाया था. इसके अलावा पोप के बयान और पत्र (एन्साइक्लिकल्स) सरकारों और समाज पर नैतिक दबाव डाल सकते हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन या सामाजिक असमानता पर लिखे उनके लेखों को व्यापक असर होता है.
वैश्विक नीतियों को करते हैं प्रभावित
पोप के बयान और काम वैश्विक मीडिया के लिए चर्चा का विषय रहते हैं. इससे वह वैश्विक जनमत को प्रभावित कर सकते हैं. पोप फ्रांसिस की सादगी और सामाजिक मुद्दों पर प्रगतिशील रुख ने उन्हें विशेष रूप से लोकप्रिय बनाया था. पोप को पूरी दुनिया में दया, करुणा और एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है जो विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच संवाद को बढ़ावा देने का काम करते हैं.
पोप की शक्तियां धार्मिक और नैतिक क्षेत्र में सबसे अधिक प्रभावशाली है, जो वैश्विक कैथोलिक समुदाय और उससे परे समाज को प्रभावित करती हैं. प्रशासनिक रूप से, वह वेटिकन और चर्च के सबसे बड़े नेता होता हैं. राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से उनकी शक्ति अप्रत्यक्ष लेकिन गहरी है, जो नैतिक नेतृत्व और वैश्विक कूटनीति से आती है. पोप फ्रांसिस ने अपनी सादगी और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके इस शक्ति को आधुनिक संदर्भ में और प्रभावी बनाया था.