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नहीं रहे पोप फ्रांसिस, जानिए कैसे चुना जाएगा अगला वेटिकन लीडर, कौन-कौन दावेदार

दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक पद पर आसीन कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का निधन हो गया है. वे पिछले 5 हफ्तों से फेफड़ों में संक्रमण के चलते अस्पताल में भर्ती थे. 14 फरवरी को उन्हें इटली के रोम स्थित जेमेली अस्पताल में भर्ती किया गया था.

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 जानिए कैसे चुना जाएगा अगला वेटिकन लीडर, कौन-कौन दावेदार (Reuters)
जानिए कैसे चुना जाएगा अगला वेटिकन लीडर, कौन-कौन दावेदार (Reuters)

दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक पद पर आसीन कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का निधन हो गया है. वे पिछले 5 हफ्तों से फेफड़ों में संक्रमण के चलते अस्पताल में भर्ती थे. 14 फरवरी को उन्हें इटली के रोम स्थित जेमेली अस्पताल में भर्ती किया गया था. निमोनिया और एनीमिया के इलाज के दौरान उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई. वेटिकन की ओर से जारी मेडिकल बुलेटिन में बताया गया था कि उनके ब्लड टेस्ट में किडनी फेल होने और प्लेटलेट्स की संख्या में गिरावट के लक्षण सामने आए थे.

एक साधारण पादरी से वेटिकन तक का सफर
पोप फ्रांसिस अर्जेंटीना के रहने वाले थे और एक जेसुइट पादरी के रूप में चर्च की सेवा कर रहे थे. साल 2013 में उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च का 266वां पोप चुना गया. खास बात यह थी कि वह पिछले 1000 वर्षों में पहले गैर-यूरोपीय पोप बने थे.

कौन होगा अगला पोप?
क्या अब वेटिकन की गद्दी एशिया या अफ्रीका के किसी चेहरे को मिल सकती है? क्या कोई भारतीय कार्डिनल भी रेस में है? जल्द ही वेटिकन की 'कॉन्क्लेव' मीटिंग बुलाई जाएगी, जिसमें अगला पोप चुना जाएगा. आइए जानते हैं अगला पोप कौन हो सकता है और इसकी प्रक्रिया क्या होती है.

कौन-कौन है दावेदार

पोप फ्रांसिस के निधन के बाद अब अगला पोप कौन होगा, इस पर दुनियाभर की नजरें टिकी हैं. फिलीपींस के कार्डिनल लुइस टैगल सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं, जबकि इटली के पिएत्रो पारोलिन  वेटिकन में अनुभव के चलते चर्चा में हैं. घाना के पीटर टर्कसन  सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं और अफ्रीकी पोप बनने की दौड़ में हैं. हंगरी के पीटर एर्डो  और इटली के एंजेलो स्कोला  परंपरावादी चेहरों के रूप में उभर रहे हैं. अब देखना है कि अगला पोप कौन हो सकता है.

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इस तरह होता है नए पोप का चुनाव
कैमरलेंगो एक बैठक बुलाते हैं, जिसमें 80 साल से कम उम्र के सभी कार्डिनल्स शामिल होते हैं. यह पूरी प्रक्रिया बेहद गोपनीय होती है और वोट करने वाले कार्डिनल्स से गोपनीयता की शपथ दिलवाई जाती है. उनका बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह खत्म कर दिया जाता है ताकि चुनाव में कोई दखल न हो सके. कार्डिनल्स वोट करते हैं और दो-तिहाई बहुमत पाने वाले को पोप का दर्जा मिल जाता है. कार्डिनल चैपल यानी वह इमारत जहां मतदान चल रहा होता है, वहां से मतदान के दौरान काला धुआं निकलता है, जो चुनाव के बाद सफेद धुएं में बदल जाता है. यही संकेत होता है कि नए पोप का चयन हो चुका है.

क्या नॉन-वाइट पोप भी हो सकते हैं?
पोप के चुनाव में इस बार कुल 138 कार्डिनल्स भाग लेंगे, जिनमें से 4 भारतीय हैं. बीते कुछ वर्षों में यह सवाल भी उठने लगा है कि भारत सहित एशिया या अफ्रीका के किसी व्यक्ति को रोम का सर्वोच्च पद क्यों नहीं मिल सकता? दोनों ही क्षेत्रों में कैथोलिक धर्म को मानने वाली आबादी दुनिया में सबसे अधिक है, और यह आंकड़ा चीन को छोड़कर है. 2022 में यह संख्या 1.4 बिलियन तक पहुंच चुकी थी. वहीं यूरोप और अमेरिका में न केवल जनसंख्या कम हो रही है, बल्कि लोग धर्म से भी दूर होते जा रहे हैं.

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लगभग एक दशक से पोप ऑफ कलर की मांग उठ रही है. हालांकि यह अभी संभव नहीं दिखता क्योंकि पोप का चुनाव कार्डिनल्स के वोट से होता है और इनमें यूरोप के कार्डिनल्स की संख्या सबसे अधिक है. ऐसे में यूरोप का पलड़ा भारी रहना तय माना जाता है.भारत से केवल 4 कार्डिनल्स हैं और अफ्रीका की स्थिति भी मिलती-जुलती है. जब तक इन क्षेत्रों से कार्डिनल्स की संख्या नहीं बढ़ेगी, तब तक गैर-पश्चिमी पोप की संभावना कम रहेगी.

एक अन्य वजह यह भी है कि एशिया या अफ्रीका के कार्डिनल्स का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव सीमित होता है जबकि पोप के लिए वैश्विक प्रभाव वाला व्यक्तित्व होना आवश्यक माना जाता है.

एशिया या अफ्रीका के कार्डिनल्स की संख्या क्यों कम है?

कार्डिनल्स का चयन योग्यता के आधार पर पोप करते हैं। मौजूदा पोप फ्रांसिस 8वीं सदी के बाद पहले गैर-यूरोपीय पोप थे. उनके कार्यकाल में यूरोप से बाहर के कार्डिनल्स की संख्या जरूर बढ़ी, लेकिन अब भी यूरोप का दबदबा कायम है. वेटिकन का मुख्यालय रोम में है, इसलिए यूरोपीय प्रभाव लंबे समय से बना हुआ है.

कई बार यह तर्क भी दिया गया है कि एशिया और अफ्रीका में यूरोप से अधिक कैथोलिक हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. हालांकि यह मुद्दा काफी जटिल है. वेटिकन चीन के कैथोलिक्स को शामिल नहीं करता क्योंकि वहां सरकार धर्म पर नियंत्रण रखती है और पोप को मान्यता नहीं देती. चीन में गुप्त चर्च भी सक्रिय हैं जो सीधे वेटिकन से जुड़े हैं और केवल इन्हें ही गिना जाता है. इसके अलावा चीन और वेटिकन के बीच ताइवान को लेकर भी राजनयिक विवाद है. वेटिकन दुनिया का इकलौता यूरोपीय देश है जो ताइवान को मान्यता देता है और इसी वजह से चीन उससे नाराज रहता है.

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