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'भारत ने इलेक्ट्रिक शॉक की बजाय दुश्मन के गले में लंबा रस्सा डाल दिया है...', पाकिस्तान पर अमरुल्लाह सालेह बोले

जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 26 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 16 लोग घायल हुए थे. इस हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच बहुत तनाव है. भारत आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई को लेकर प्रतिबद्ध है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आतंक के खिलाफ बिगुल बजा चुके हैं. वहीं, पाकिस्तान हाई अलर्ट मोड पर है.

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अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (फाइल फोटो)
अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (फाइल फोटो)

पहलगाम आतंकी हमले को लेकर लोगों में आक्रोश बना हुआ है. इस बीच अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह (Amrullah Saleh) ने इस हमले को लेकर प्रतिक्रिया दी है.

उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि भारत ने अपने दुश्मनों को सजा देने के लिए इलेक्ट्रिक चेयर का इस्तेमाल करने के बजाए उनके गले में लंबी रस्सी लपेट दी है. इस बयान से उनका मतलब है कि भारत अपने दुश्मनों का एक झटके में काम तमाम करने के बजाए उस पर पूरी तरह से शिकंजा कसकर तिल-तिलकर सजा दे रहा है. 

बता दें कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 26 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 16 लोग घायल हुए थे. इस हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच बहुत तनाव है. भारत आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई को लेकर प्रतिबद्ध है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आतंक के खिलाफ बिगुल बजा चुके हैं. वहीं, पाकिस्तान हाई अलर्ट मोड पर है.

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पहलगाम अटैक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) ने सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया था. यह पहली बार है जब भारत ने इतनी बड़ी और सख्त कार्रवाई की गई. भारत और पाकिस्तान के बीच तीन बड़ी जंग हो चुकी है लेकिन पहले कभी भी इस संधि को स्थगित नहीं किया गया.

कैबिनेट कमेटी की बैठक में लिए गए फैसलों के बारे में विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया था कि 1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दी गई. यह रोक तब तक रहेगी, जब तक पाकिस्तान क्रॉस बॉर्डर टेरेरिज्म को अपना समर्थन देना बंद नहीं करता.

कौन हैं अमरुल्ला सालेह?

पंजशीर प्रांत में अक्टूबर 1972 में जन्मे अमरुल्ला ताजिक एथनिक ग्रुप के परिवार से संबंध रखते हैं. कम उम्र में ही उनके ऊपर से परिवार का साया उठ गया था. ऐसे में उन्होंने छोटी उम्र में ही अहमद शाह मसूद की अगुवाई में एंटी-तालिबानी मूवमेंट को ज्वॉइन कर लिया.

जानकारी के मुताबिक, अमरुल्ला सालेह को तालिबान ने निजी तौर पर नुकसान पहुंचाया है. 1996 में तालिबानियों ने उनकी बहन को टॉर्चर कर मार डाला. सालेह बताते हैं कि तब से ही तालिबान के प्रति उनका रुझान पूरी तरह बदल गया. ऐसे में उन्होंने तालिबान को हराने के लिए लड़ाई में हिस्सा लिया. साल 1997 में अमरुल्ला सालेह को मसूद द्वारा यूनाइटेड फ्रंट के अंतराष्ट्रीय दफ्तर में नियुक्त किया गया. जो ताजिकिस्तान के दुशान्बे में था. वहां उन्होंने विदेशी इंटेलीजेंस के साथ मिलकर काम किया.

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