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उमर की गिरफ्तारी से मुख्तार फैमिली का क्या खत्म हो जाएगा सियासी वर्चस्व, बाहुबली बृजेश सिंह के लिए खुलेगा रास्ता

मुख्तार अंसारी के छोटे बेटे उमर अंसारी अपने भाई अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता जाने के बाद मऊ सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन रविवार देर रात यूपी पुलिस ने उन्हें फर्जी हस्ताक्षर मामले में गिरफ्तार कर लिया है. इसके बाद मऊ सीट से मुख्तार परिवार के सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है.

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मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी की गिरफ्तार के बाद मऊ से कौन लड़ेगा चुनाव (Photo-social media)
मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी की गिरफ्तार के बाद मऊ से कौन लड़ेगा चुनाव (Photo-social media)

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मुख्तार अंसारी परिवार की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही. मुख्तार अंसारी के छोटे बेटे उमर अंसारी को रविवार देर रात पुलिस ने लखनऊ के दारुलशफा स्थित विधायक निवास से गिरफ्तार किया है. उमर पर आरोप है कि उन्होंने अपनी मां अफसा अंसारी के फर्जी हस्ताक्षर करके अदालत में जाली दस्तावेज पेश किए थे. 

पुलिस के अनुसार गैंगस्टर अधिनियम की धारा 14(1) के तहत मुख्तार अंसारी के संपत्ति जब्तीकरण की कार्रवाई की गई थी. इस संपत्ति को अवमुक्त कराने के लिए अदालत में अंसारी परिवार की ओर से याचिका दायर की गई थी, जिसमें मुख्तार अंसारी के छोटे बेटे उमर अंसारी ने अवैधानिक लाभ लेने के उद्देश्य से अपनी मां अफसा अंसारी के फर्जी हस्ताक्षर बनाकर कोर्ट में दाखिल किया था. इस मामले में उमर अंसारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, जिसके तहत कई धाराएं लगाई गई हैं. अब इसी प्रकरण में उन्हें हिरासत में लिया गया है. 

उमर अंसारी की गिरफ्तारी के चलते मुख्तार परिवार की सियासी विरासत पर भी संकट गहरा गया है. मुख्तार के बड़े बेटे अब्बास अंसारी को भड़काऊ भाषण मामले में पहले ही अदालत ने दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधायकी चली गई है. इसके चलते रिक्त हुए मऊ विधानसभा सीट पर उमर अंसारी के चुनाव लड़ने की तैयारी थी, लेकिन अब उनकी के गिरफ्तारी से सवाल उठने लगे हैं कि मुख्तार परिवार का सियासी वर्चस्व मऊ सीट से खत्म हो जाएगा?

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उमर अंसारी की अब बढ़ेगी मुसीबत
उमर अंसारी पर फर्जी हस्ताक्षर दस्तावेज मामले में अलग-अलग धारों में कई मामले दर्ज किए गए हैं. उमर पर अपराध संख्या 245/2025 अंतर्गत धारा 319(2), 318(4),338, 336(3), 340(2) BNS पंजीकृत किया गया. उमर अंसारी को हिरासत में लेकर गाजीपुर में आगे की कानूनी कार्रवाई की जा रही है. 

उमर अंसारी पर जिन धाराओं में मुकदमा दर्ज किए गए हैं, उसमें फौरन जमानत मिलना आसान नहीं है. ऐसे में अगर वो दोषी पाए जाते हैं तो फिर धारा 319(2) के तहत उन्हें अधिकतम 5 साल की सजा हो सकती है. इसके अलावा 336 और 338 धारा भी लगाई गई है, जिसके तहत छह महीने से दो साल तक की सजाा का प्रावधान है. 

मुख्तार परिवार का खत्म हो जाएगा वर्चस्व
बाहुबली रहे मुख्तार अंसारी 1996 से लेकर 2017 लगातार पांच बार मऊ विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं. मुख्तार जेल में रहते हुए भी मऊ सीट से  अपनी जीत का परचम फहराते रहे हैं, लेकिन योगी सरकार आने के बाद कानूनी शिकंजा कसा. ऐसे में 2022 में मुख्तार अंसारी ने चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछ खींच लिए. ऐसे में मुख्तार के सियासी विरासत को उनके बड़े बेटे अब्बास अंसारी ने संभाली थी. ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा के टिकट पर अब्बास अंसारी विधायक चुने गए थे, सुभासपा का सपा से गठबंधन था. 

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2022 के चुनाव प्रचार के दौरान अब्बास अंसारी ने अधिकारियों के हिसाब-किताब करने का बयान दिया था. इस मामले में अब्बास अंसारी की इस साल जून में दो साल की अदालत ने सजा सुनाई, जिसके चलते उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई. ऐसे में खाली हुई मऊ विधानसभा सीट से मुख्तार के छोटे बेटे उमर अंसारी के उपचुनाव लड़ने की प्लानिंग थी.सपा से उन्हें टिकट की हरी झंडी भी मिल चुकी थी, लेकिन अब फर्जी हस्ताक्षर मामले में गिरफ्तार किए जाने के बाद सियासी संकट गहरा गया है. 

मऊ सीट पर अंसारी परिवार से कौन लड़ेगा
अब्बास अंसारी की सदस्यता जाने के बाद मऊ सीट खाली हो गई है, जिसके बहाने यूपी में राजनीति का नया समीकरण गढ़े जाएंगे. सपा इस सीट पर उमर अंसारी को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रखी थी, जिनके गिरफ्तार किए जाने के बाद अंसारी परिवार का संकट गहरा गया है. मुख्तार अंसारी ने 35 साल पहले जिस सीट को अपनी परंपरागत सीट में तब्दील किया है, उस पर अंसारी परिवार के कब्जा जमाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. 

मुख्तार अंसारी के बड़े बेटे अब्बास अंसारी को सजा होने के चलते पांच साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. उपचुनाव ही नहीं 2027 के चुनाव लड़ने पर भी संकट मंडरा रहा है.मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ पांच आपराधिक मामले दर्ज हैं. गाजीपुर से लोकसभा सांसद है, लेकिन अफजाल अंसारी पर गैंगस्टर एक्ट के एक मामले में उन्हें चार साल की सजा हुई थी. उनकी सदस्यता भी चली गई थी, लेकिन उच्च अदालत से राहत मिल मिलने के बाद सदस्यता बची है. 

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मुख्तार अंसारी की पत्नी अफसा अंसारी फरार घोषित हैं, 50 हजार का इनाम घोषित है. अब्बास अंसारी चुनाव नहीं लड़ सकते. ऐसे में मऊ उपचुनाव में मुख्तार अंसारी की विरासत को बचाने के लिए उनके छोटे बेटे उमर अंसारी को उतरने की तैयारी थी, लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बाद सियासी चर्चा तेज हो गई है कि मऊ सीट पर अंसारी परिवार से कौन किस्मत आजमाएगा?  

मऊ से बृजेश सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा
मऊ विधानसभा सीट सपा के लिए काफी मुफीद मानी जाती है जबकि बीजेपी के लिए मुश्किल भरी रही है. मऊ की सदर विधानसभा सीट में मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता है, जिसके कारण बीजेपी कभी नहीं जीत सकी. ऐसे में  सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर मऊ सीट पर अपना दावा ठोंक रहे हैं और माफिया बृजेश सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा तेज है. ओम प्रकाश राजभर सार्वजनिक रूप से कह भी चुके हैं कि बृजेश सिंह के साथ उनके अच्छे संबंध हैं. 

बृजेश सिंह के लोग मऊ विधानसभा सीट पर सक्रिय हैं. ऐसे में माना ज रहा है कि मऊ सीट बीजेपी अगर सुभासपा को देती है तो बृजेश सिंह उपचुनाव में किस्मत आजमाने उतर सकते हैं. मुख्तार अंसारी से बृजेश सिंह के अदावत जगजाहिर रही है. एक दूसरे के जानी-दुश्मन रहे हैं. मुख्तार अंसारी का अब निधन हो चुके है और उनके बड़े बेटे अब्बास पांच साल चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं है और अब उमर की गिरफ्तारी ने बृजेश सिंह की सियासी राह को आसान कर सकती है. 

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मुख्तार अंसारी के वर्चस्व को बृजेश सिंह तोड़ पाएंगे

मऊ सीट पर बीजेपी कभी जीत नहीं सकी जबकि ठाकुर से लेकर मुस्लिम और ओबीसी दांव तक खेल चुकी है. मुस्लिम बहुल सीट होने के चलते 1991 में बीजेपी ने मुख्तार अब्बास नकवी को उतारा, लेकिन वो जीत दर्ज नहीं कर सके. सीपीआई के इम्तियाज अहमद ने बहुत मामूली वोटों से जीतकर विधायक बने थे, उसके बाद 1996 में मुख्तार अंसारी ने मऊ को अपनी कर्मभूमि बनाया. बसपा से विधानसभा पहुंचे. मुख्तार अंसारी बसपा से दो बार, दो बार निर्दलीय और एक बार अपनी कौमी एकता दल से विधायक रहे. 2022 में मुख्तार अंसारी की जगह अब्बास अंसारी चुनाव लड़े और सुभासपा से विधायक बने थे.

मऊ विधानसभा सीट पर मुख्तार अंसारी और उसके परिवार का वर्चस्व लगातार बना रहा. पांच बार मुख्तार अंसारी अलग-अलग पार्टियों से विधायक बने.2022 में अब्बास अंसारी को जीत तो मिली, लेकिन हेट स्पीच मामले सजा के कारण विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई. यहां के सियासी समीकरण के चलते मुख्तार अंसारी का दबदबा बना रहा, बीजेपी ने कई प्रयोग आजमाए, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो सका. राम मंदिर का माहौल रहा हो या फिर मोदी राज, बीजेपी का जादू मऊ विधानसभा सीट पर नहीं चला. सपा के लिए यह सीट काफी मुफीद इसलिए मानी जा रही है कि अंसारी परिवार उनके साथ हैं. मुस्लिम वोटों का समीकरण भी उनके पक्ष में है.

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राजभर के जरिए सियासी जमीन तलाश रहे बृजेश

अब ओम प्रकाश राजभर बीजेपी के साथ हाथ मिला रखा है और योगी सरकार में मंत्री हैं. इसके चलते राजभर मऊ सीट पर अपना दावा ठोक रहे हैं तो दूसरी तरफ सपा अब अपना प्रत्याशी उतारेगी. कांग्रेस और बसपा उपचुनाव से दूरी बनाए हुए हैं और मऊ सीट पर चुनाव नहीं लड़ते हैं तो फिर सपा और एनडीए के घटक दल के सीधा मुकाबला होगा. बीजेपी गठबंधन के तहत सुभासपा से बृजेश सिंह चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. 

मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है और उनके बेटे अब्बास अंसारी को सजा हो चुकी है. ऐसे में बीजेपी को मऊ सीट पर कमल खिलाने का मौका दिख रहा. 2024 के बाद जिस तरह से बीजेपी ने निषाद पार्टी के कोटे वाले मझवां सीट पर चुनाव लड़कर जीत का परचम फहराया. इसी तरह कुंदरकी मुस्लिम बहुल सीट पर बीजेपी उपचुनाव में ही जीतने में कामयाब रही थी. इसी आधार पर बीजेपी मऊ सीट पर भी कब्जा जमाने की सपना देख रही है, लेकिन  मऊ सीट का सीन दूसरा है.  

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