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UP में आम को लेकर बच्चों के झगड़े में उलझे बड़े, मारपीट में शख्स की हुई थी मौत... अब 40 साल बाद SC ने उम्रकैद को 7 साल किया

घटना 19 अप्रैल, 1984 की है. यूपी के गोंडा जिले में आम को लेकर बच्चों के बीच लड़ाई से शुरू हुई थी, जो दुर्भाग्य से तब भड़क गई जब परिवार के वयस्क भी इसमें शामिल हो गए, जिसके कारण अंततः एक बच्चे के पिता, विश्वनाथ सिंह की मौत हो गई. विश्वनाथ सिंह घायल हो गए और उन्हें बैलगाड़ी से गोंडा के अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

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सुप्रीम कोर्ट ने 40 साल पहले के एक मामले में तीन दोषियों की उम्रकैद को 7 साल कारावास में बदला. (PTI/File Photo)
सुप्रीम कोर्ट ने 40 साल पहले के एक मामले में तीन दोषियों की उम्रकैद को 7 साल कारावास में बदला. (PTI/File Photo)

चार दशक पहले यूपी के एक गांव में आम को लेकर बच्चों के बीच हुई मामूली लड़ाई हुई थी, जो घर के बड़ों के बीच खून-खराबे की वजह बनी. इस मामले में पांच लोगों पर एक ग्रामीण की पीट-पीटकर हत्या करने का आरोप लगा और बाद में उन्हें कोर्ट ने दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. अब चालीस साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनमें से तीन की उम्रकैद को घटाकर सात साल जेल की सजा में बदल दिया है. 

जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष अपील लंबित रहने के दौरान पांच दोषियों में से दो की मृत्यु हो गई और उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई. मामला साल 1984 का है. ट्रायल कोर्ट ने 1986 में सभी आरोपियों को हत्या का दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जबकि 2022 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य के गोंडा जिले की ट्रायल कोर्ट द्वारा उन्हें दी गई सजा को बरकरार रखा था.

यह हत्या नहीं गैर इरादतन हत्या का मामला: SC
 
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा, 'मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता, मृतक को लगी चोटों की प्रकृति और इस्तेमाल किए गए हथियार जो 'लाठी' है, उसकी प्रकृति पर विचार करते हुए, हम इस तर्क को स्वीकार करने के लिए इच्छुक हैं कि यह वास्तव में गैर इरादतन हत्या का मामला है, इरादतन हत्या का नहीं. पीठ ने कहा कि मामले में सभी चश्मदीदों के बयान से यह रिकॉर्ड में आ गया है कि यह पूर्व नियोजित हत्या का मामला नहीं है.' 

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सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'इसलिए, हम आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के निष्कर्षों को आईपीसी की धारा 304 भाग-1 (गैर इरादतन हत्या जो हत्या की श्रेणी में नहीं आती) के निष्कर्षों में बदल रहे हैं, और इस तरह हमारे सामने आने वाले सभी अपीलकर्ताओं की आजीवन कारावास की सजा को सात साल के कठोर कारावास में तब्दील करते हैं. प्रत्येक अपीलकर्ता को 25,000 रुपये का जुर्माना देना होगा, जो उन्हें आज से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर जमा करना होगा, यदि पहले से जमा नहीं किया गया है तब.' पीठ ने 24 जुलाई को यह आदेश सुनाया था, जिसे हाल ही में शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया. 

जोश में आकर हुए झगड़े में हुई शख्स की मौत: SC

पीठ ने कहा कि जुर्माने के तौर पर जमा की जाने वाली राशि पीड़ित परिवार को दी जाएगी और आदेश के अनुपालन के लिए उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के जिला मजिस्ट्रेट को जिम्मेदारी सौंपी जाती है. तीन दोषियों मान बहादुर सिंह, भरत सिंह और भानु प्रताप सिंह ने अपने वकील सक्षम माहेश्वरी के माध्यम से तर्क दिया था कि यह हत्या का मामला नहीं है, बल्कि गैर इरादतन हत्या का मामला है, क्योंकि यह मामला भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 300 के अपवाद 4 के तहत आएगा. भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अपवाद 4 में कहा गया है, 'गैर इरादतन हत्या तब हत्या नहीं है, जब यह हत्या बिना सोचे-समझे, जोश में आकर, अचानक हुए झगड़े में और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाए बिना या असामान्य ढंग से कोई क्रूर कार्य किए बिना की गई हो.'

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यूपी के गोंडा जिले में 40 साल पहले हुई थी यह घटना

शीर्ष अदालत ने कहा कि 19 अप्रैल, 1984 की घटना आम को लेकर बच्चों के बीच लड़ाई से शुरू हुई थी, जो दुर्भाग्य से तब भड़क गई जब परिवार के वयस्क भी इसमें शामिल हो गए, जिसके कारण अंततः एक बच्चे के पिता, विश्वनाथ सिंह की मौत हो गई. विश्वनाथ सिंह घायल हो गए और उन्हें बैलगाड़ी से गोंडा के अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया और उनके शव का पोस्टमार्टम किया गया. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में दर्ज पांच मृत्युपूर्व चोटों में से दो चोटें घातक प्रतीत होती हैं. विश्वनाथ सिंह के सिर पर लाठी की चोट से उनकी खोपड़ी टूट गई थी. यही चोट उनकी मृत्यु का कारण बनी. घटना के चश्मदीद गवाह थे, खासकर तीन चश्मदीद जिनमें से एक घायल हो गया था.

दोषियों की अपील का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 'ट्रायल के दौरान घटना के चश्मदीदों से लंबी जिरह की गई, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं आया जिससे उनकी गवाही पर कोई संदेह हो. इन परिस्थितियों में, यह तथ्य कि मौत हत्या है, इसका सवाल नहीं उठता है. और यह तथ्य कि मृतक की मृत्यु अपीलकर्ताओं के लाठियों के प्रहार से लगी चोटों के कारण हुई थी, अभियोजन पक्ष द्वारा रखे गए सबूतों से स्पष्ट रूप से स्थापित हो गया है.' वकील सक्षम माहेश्वरी ने कहा कि दोषियों ने मामले में कुछ साल जेल में बिताए हैं, लेकिन उच्च न्यायालय में अपील लंबित होने के दौरान उन्हें जमानत दे दी गई थी. 21 दिसंबर, 2022 को उच्च न्यायालय द्वारा उनकी आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखने के बाद से वे जेल में हैं.'

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