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यूपी में यूं ही नहीं टूटी सपा-कांग्रेस की दोस्ती, पंचायत चुनाव में अकेले-अकेले लड़ने के पीछे ये हैं दांव

उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव को 2027 का सेमीफाइल माना जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस ने सपा के साथ नाता तोड़कर पंचायत चुनाव में अकेले दम पर किस्मत आजमाने का फैसला किया है. कांग्रेस और सपा ही नहीं, बल्कि एनडीए के सभी घटकदल भी एकला चलो की राह पर हैं.

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यूपी पंचायत चुनाव में टूटी दो लड़कों की जोड़ी (Photo-PTI)
यूपी पंचायत चुनाव में टूटी दो लड़कों की जोड़ी (Photo-PTI)

उत्तर प्रदेश की सियासत में 'दो लड़कों की जोड़ी' टूट गई है. बिहार चुनाव के बाद कांग्रेस ने यूपी को लेकर बड़ा राजनीतिक निर्णय लिया है. पंचायत चुनाव से पहले काग्रेस और सपा के रिश्ते खत्म हो गए हैं. यूपी कांग्रेस नेताओं की राहुल गांधी के साथ बुधवार को हुई बैठक के बाद पार्टी ने फैसला लिया है. यूपी के कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा कि आगामी पंचायत चुनाव में पार्टी अकेले लड़ेगी. 

2024 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस ने मिलकर यूपी में बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए को मात देने में सफल रहे हैं. इसके बाद से माना जा रहा था कि यूपी में सपा और सपा की दोस्ती लंबी चलेगी, लेकिन अब पंचायत चुनाव से पहले दोनों के रास्ते अलग हो गए हैं. 

हालांकि, सपा ने पहले ही यूपी पंचायत चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच चुकी है. इसके बाद भी कांग्रेस ने क्यों सपा से अलग पंचायत चुनाव लड़ने का फैसला किया. इसके अलावा कांग्रेस ही नहीं बल्कि एनडीए गठबंधन के भी घटकदल अपना दल (एस), निषाद पार्टी, आरएलडी और सुभासपा ने बीजेपी से अलग पंचायत चुनवा लड़ने का ऐलान कर रखा है. ऐसे में सवाल उठता है कि यूपी में सभी दल क्यों अकेले-अकेले पंचायत चुनाव लड़ना चाह रहे? 

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यूपी पंचायत चुनाव अप्रैल 2026 में होंगे
उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अप्रैल से जुलाई 2026 के बीच होंगे, जिसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है.  यूपी के ग्राम प्रधानों का कार्यकाल 26 मई 2026 को खत्म हो रहा है तो ब्लाक प्रमुखों का कार्यकाल 19 जुलाई 2026 को और जिला पंचायत अध्यक्षों का कार्यकाल 11 जुलाई 2026 को खत्म हो रहा है. 

चुनाव आयोग यूपी में ग्राम पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी), ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. सूबे में करीब 57694 ग्राम पंचायतें, जहां पर ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्य चुने जाने हैं. इसके अलावा बीडीसी के 74345 सदस्यों के चुनाव होने हैं, जो बाद में ब्लाक प्रमुख का चुनाव करेंगे.  जिला पंचायत सदस्य की सीटें 3011 करीब हैं, जो बाद में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करेंगे.  

यूपी में टूट गई दो लड़कों की जोड़ी?
सोनिया गांधी के आवास दस जनपथ पर बुधवार को मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी की मौजूदगी में यूपी कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक हुई. इस दौरान फैसला लिया गया कि कांग्रेस यूपी पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी. यूपी कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा कि कांग्रेस यूपी पंचायत चुनाव में अकेले दम पर किस्मत आजमाएगी. माना जा रहा है कि कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़कर अपनी सियासी ताकत को समझ लेना चाहती है, जिसके चलते अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. 

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यूपी में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी को दो लड़कों की जोड़ी बताई गई थी, लेकिन पंचायत चुनाव में अकेले लड़ने के ऐलान के बाद अब दो लड़कों की जोड़ी टूट गई है. हालांकि, 2027 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा अभी भी गठबंधन के पक्ष में है, लेकिन पंचायत चुनाव के बाद यह तस्वीर साफ होगी कि सपा और कांग्रेस की दोस्ती कितनी बरकरार रहती है. 

एकला चलो की राह पर BJP के सहयोगी
यूपी की योगी सरकार से लेकर केंद्र की मोदी सरकार तक में अनुप्रिया पटेल की अपना दल, जयंत चौधरी की आरएलडी तक शामिल हैं. इसके अलाया यूपी में संजय निषाद की निषाद पार्टी और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा का बीजेपी के साथ गठबंधन है. सरकार के सहयोगी हैं, लेकिन यूपी में होने वाले पंचायत चुनाव में बीजेपी के चारो सहयोगी दल अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर चुके हैं. 

अनुप्रिया पटेल से लेकर  जयंत चौधरी और संजय निषाद तक अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा हैं. इस तरह से यूपी में बीजेपी के चारो सहयोगी एकला चलो की राह पर है. बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल ने कई महीने पहले ही यह बात साफ कर दी थी कि उनकी पार्टी पंचायत चुनाव में अकेले किस्मत आजमाएगी. एनडीए के चारो सहयोगी दलों ने बीजेपी को दो-टूक में कह दिया है कि वे आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे. 

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क्यों एकला चलो की राह पर यूपी के दल...
यूपी पंचायत चुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव का रिहर्सल माना जा रहा है. यूपी पंचायत चुनाव में अकेले लड़कर अपनी सियासी ताकत की थाह लेने के साथ-साथ अपने कार्यकर्ताओं के चुनाव लड़ने की इच्छा को पूरी कर देना चाहती हैं. इसके अलावा 2027 से पहले अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाना है. हालांकि, पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जाते हैं, लेकिन जिला पंचायत के सदस्य सीट पर अपने नेता को उतारती रही है. 

गठबंधन में रहते हुए राजनीतिक दलोके लिए संभव नहीं था कि अपने कार्यकर्ताओं को पंचायत चुनाव लड़ा सकें इसलिए अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है. इस तरह राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़कर संगठन की स्थिति कितनी मजबूत है, इस बात समझते हैं.अगले साल शुरू में यूपी पंचायत के चुनाव होंगे. 

पंचायत चुनाव 2027 का सेमीफाइल है?
उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव को 2027 का सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा, क्योंकि पंचायत चुनाव के बाद सीधे विधानसभा चुनाव होने हैं. यूपी की दो तिहाई विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाके से आती हैं, जहां पर पंचायत चुनाव होते हैं. राजनीतिक दलों को पंचायत चुनाव के जरिए अपनी सियासी ताकत के आकलन करते हैं. यूपी में औसतन चार से छह जिला पंचायत सदस्यों को मिलाकर विधानसभा का एक क्षेत्र हो जाता है. यही वजह है सभी दल अपनी ताकत का अंदाजा लगाना चाहते हैं. 

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राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जिला पंचायत के सदस्यों को मिलने वाले वोट का आधार बनाकर राजनीतिक दलों इस बात का यह एहसास होता है कि वो कितने पानी में है. इससे यह भी पता चल जाएगा कि 2022 विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव की तुलना में कितने मतों में बढ़ोतरी या कमी का आकलन करती है. यूपी में अपना दल का प्रभाव है वहां, मुख्य रूप से कुर्मी समाज के बीच पार्टी की पकड़ है.

पंचायत चुनाव आधार पर वोटों के समीकरण को दुरुस्ती करने की कवायद करते हैं. सियासी दल ये भी समझते हैं और आकलन करते हैं कि क्षेत्रवार और जातिवार के आधार पर आगे कैसी रणनीति बनानी. यूपी पंचायत चुनाव के आधार पर 2027 के विधानसभा चुनाव की सियासी जमीन नापना चाहती इसलिए गठबंधन की परवाह किए बगैर सभी दलों ने अपनी सियासी एक्सरसाइज शुरू कर दी है. 

पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वालों के लिए 2027 विधानसभा चुनाव का भी मार्ग प्रशस्त रहेगा. मतलब पंचायत चुनाव जीतने वाले कई लोगों को विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी भी बना सकती है. इस तरह अपनी सियासी बार्गेनिंग को बढ़ाने की स्टैटेजी मानी जा रही है.

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