टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया ( TRAI) टेली-कम्युनिकेशन सेक्टर को नियंत्रित करने वाला भारत का मुख्य नियामक संगठन है. 1997 में संसद द्वारा पारित ‘टेली-कम्युनिकेशन नियामक प्राधिकरण अधिनियम’ के तहत इसे स्थापित किया गया. TRAI का गठन 20 फरवरी 1997 को हुआ. यह प्राधिकरण एक अध्यक्ष, दो पूर्णकालिक सदस्य और दो अंश-कालिक सदस्यों सहित संचालित होता है.
यह दूरसंचार सेवाओं और टैरिफ (शुल्क) को नियंत्रित करता है. एक निष्पक्ष और पारदर्शी वातावरण बनाता जहां सेवा प्रदाता और उपभोक्ता का संतुलन बने. साथ ही गुणवत्ता-सेवा, इंटरकनेक्शन, मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी जैसे विषयों पर दिशा-निर्देश जारी करता है.
जनवरी 2016 में TRAI ने हर ड्रॉप कॉल के लिए उपभोक्ता को 1 रुपया मुआवजा देने की पहल की थी, लेकिन मई 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे निराधार मानकर रद्द कर दिया. TRAI स्वतंत्र तौर पर कार्य करता है, लेकिन केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अधीन भी है.
TRAI ने भारत के दूरसंचार क्षेत्र को सरकारी एकाधिकार से खुले-मुक्त प्रतिस्पर्धा वाले युग में बदलने में अहम भूमिका निभाई है. सेवा-गुणवत्ता से लेकर शुल्क निर्धारण तक, उपभोक्ताओं की रक्षा और सेवा प्रदाताओं के बीच संतुलन बनाने में यह संस्थान महत्वपूर्ण है.
संचार साथी ऐप को लेकर काफी हंगामा हुआ है. DoT ने एक आदेश जारी कर मोबाइल मैन्युफैक्चर्र्स को भारत में इस्तेमाल होने वाले सभी फोन्स में इस ऐप को प्री-इंस्टॉल करने के लिए कहा था. विपक्ष के इसका विरोध करते हुए सरकार पर लोगों की जासूसी का आरोप लगाया. वहीं ऐपल इस मामले में सरकार को इनकार करने की तैयारी में है. आइए जानते हैं पूरा मामला.
संचार साथी चर्चा में है, जो जल्द ही आपके फोन में इंस्टॉल्ड होगा. डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन ने इस ऐप को इंस्टॉल करने के लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया है. अगले कुछ दिनों में तमाम कंपनियों को ये ऐप यूजर्स के फोन में इंस्टॉल करना होगा. इस ऐप की मदद से आप फ्रॉड को रिपोर्ट कर सकेंगे, अपने खोए फोन को ब्लॉक या अन-ब्लॉक कर सकेंगे. आइए जानते हैं इसकी खास बातें.
Fake OTP message detection: साइबर फ्रॉड से जुड़ा कोई-ना-कोई मामला हर दिन सामने आता है. कई सारे फ्रॉड्स सिर्फ OTP की मदद से होते हैं.
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी TRAI ने DOT के एक प्रपोजल को मंजूरी दे दी है. डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन के इस प्रपोजल के मुताबिक कॉल करने वाला के नंबर के साथ ही उसका नाम भी रिसीवर के फोन पर नजर आना चाहिए. इस फीचर को कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन (CNAP) कहा गया है, जो कॉलर की जानकारी उसके रजिस्ट्रेशन के आधार पर देगा.