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पूर्णिमा

पूर्णिमा

पूर्णिमा

हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा (Purnima) कहा जाता है, जब चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ आकाश में चमकता है. यह दिन सिर्फ खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आस्था, अध्यात्म और परंपराओं से भी गहराई से जुड़ा हुआ है. भारत सहित कई संस्कृतियों में पूर्णिमा का विशेष महत्व है.

पूर्णिमा के दिन को देवी-देवताओं की उपासना, व्रत और पूजा-पाठ के लिए अत्यंत शुभ माना गया है. कुछ विशेष पूर्णिमाएं जैसे- गुरु पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा, होली की पूर्णिमा यानी फाल्गुन मास की पूर्णिमा, इस दिन होलिका दहन होता है.

इन सभी विशेष पूर्णिमाओं का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व अत्यधिक होता है.

मान्यता है कि पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणें धरती पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं. ध्यान, साधना और जप-तप के लिए यह दिन अत्यंत शुभ होता है. योग और ध्यान साधना करने वाले इस दिन का विशेष उपयोग आत्मिक उन्नति के लिए करते हैं.

पूर्णिमा के दिन व्रत रखने की परंपरा प्राचीन काल से रही है. आमतौर पर श्रद्धालु इस दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लेते हैं. भगवान विष्णु, शिव या विशेष अवसरों पर लक्ष्मी माता या बुद्ध की पूजा करते हैं. उपवास रखते हैं या फलाहार करते हैं. शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा पूर्ण करते हैं.

आयुर्वेद और योगशास्त्र में माना गया है कि चंद्रमा का सीधा संबंध मन से होता है. इसलिए पूर्णिमा पर भावनाएं अधिक तीव्र हो जाती हैं. यही कारण है कि इस दिन ध्यान, शांति और आत्मनिरीक्षण की सलाह दी जाती है.

पूर्णिमा की रात जब आकाश चंद्रमा की रौशनी से नहाया हुआ होता है, तब उसका सौंदर्य मन मोह लेता है. ग्रामीण भारत में इस रात को लोग चौपालों पर गीत-संगीत, कथा-कहानियों और भजन-कीर्तन के माध्यम से सामूहिक उल्लास प्रकट करते हैं.

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