
फोर्डो, इस्फहान और नतांज न्यूक्लियर साइट में भारी प्रहार झेलने के बाद भी ईरान ने घोषणा की है कि उसका परमाणु संवर्धन (Nuclear enrichment) कार्यक्रम जारी रहेगा. ईरान के उप विदेश मंत्री माजिद तख्त रवांची ने कहा है कि इजरायली और अमेरिकी हमले के बावजूद ईरान अपना न्यूक्लियर एनरिचमेंट जारी रखेगा. माजिद तख्त रवांची ने कहा कि कोई हमें ये न बताए कि हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है.
ईरान पर इजरायली हमले के बाद जिस शब्द की सबसे ज्यादा चर्चा है वो है यूरेनियम एनरिचमेंट. आखिर यूरेनियम के संदर्भ में ये प्रक्रिया क्या होती है. एटम बम बनाने के लिए क्यों जरूरी है यूरेनियम एनरिचमेंट? परमाणु बम के अलावा यूरेनियम का और क्या इस्तेमाल होता है? यूरेनियम एनरिचमेंट कैसे किया जाता है? आइए इन सवालों का जवाब एक-एक कर समझते हैं.
यूरेनियम क्या है, और रेडियोधर्मी धातु क्या होती है
यूरेनियम एक रेडियोधर्मी धातु है. यह पृथ्वी की सतह पर मिलने वाला सबसे भारी प्राकृतिक तत्व है. अब प्रश्न यह है कि रेडियोधर्मी (Radioactive) धातु क्या होते हैं. रेडियोधर्मिता एक प्राकृतिक परमाणु प्रक्रिया है जिसमें कोई परमाणु (nucleus) अस्थिर हो जाता है और खुद को स्थिर बनाने के लिए टूटता है.
रेडियोएक्टिव मेटल का मतलब है ऐसी धातु है जो खुद-ब-खुद टूटती है और इस टूटने के दौरान व्यापक मात्रा में ऊर्जा और हानिकारक किरणें (अल्फा, बीटा, गामा) निकलती हैं. इन हानिकारक किरणों को रेडिएशन कहते हैं.
यह प्रक्रिया बिना किसी बाहरी दबाव के अपने-आप चलती रहती है.
कहा जा सकता है कि रेडियोधर्मी धातु ऐसी धातुएं होती हैं जिनके परमाणु अस्थिर (unstable nuclei) होते हैं. जैसे- यूरेनियम, प्लूटोनियम और थोरियम.
इन धातुओं के परमाणु का अस्थिर होना ही इनकी सबसे बड़ी विशेषता और इंसान के लिए सबसे बड़ी ताकत और चुनौती दोनों ही है.
यूरेनियम के दो आइसोटोप
पृथ्वी पर पाए जाने वाले यूरेनियम में दो तरह के आइसोटोप होते हैं- U-238 और U-235. यहां आइसोटोप का अर्थ है एक ही तत्व के वे रूप जिनमें प्रोटोन समान लेकिन न्यूट्रॉन अलग होते हैं.

यूरेनियम के दोनों आइसोटोप के पास 92 प्रोटोन होते हैं, पर U-238 में 146 न्यूट्रॉन होते हैं और U-235 में 143 न्यूट्रॉन.
यूरेनियम का पहला आइसोटोप (92 प्रोटोन + 146 न्यूट्रान=238) की वजह से U-238 कहलाता है.
जबकि दूसरा आइसोटोप (92 प्रोटोन+143 न्यूट्रान=235 ) की वजह से U-235 कहलाता है.
3 न्यूट्रान बदल देते हैं पूरी कहानी
लेकिन ये 3 न्यूट्रान का अंतर ही इनकी खासियत में कई गुना बदलाव कर देता है. इन 3 न्यूट्रानों की बदौलत ही U-235, U-238 की तुलना में कई गुना बलशाली, विध्वंसक और खतरनाक बन जाता है.
लेकिन प्रकृति का इंसाफ यह है कि धरती पर U-238 बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है. यूरेनियम में इसकी मात्रा लगभग 93.7 प्रतिशत होती है. जबकि ताकतवर U-235 की मात्रा मात्र 0.7 प्रतिशत है. लेकिन यही 0.7 प्रतिशत न्यूक्लियर फ्यूल है यानी कि इसी से ही ऊर्जा या एटम बम बनता है.
जब टूटता है U-235
न्यूक्लियर विखंडन के दौरान जब न्यूट्रान U-235 से टकराता है तो यह टूट जाता है. इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है, साथ में 2-3 और न्यूट्रॉन निकलते हैं, ये न्यूट्रॉन अगले यूरेनियम नाभिक से टकराते हैं और फिर ऊर्जा निकलती है. इससे चेन रिएक्शन शुरू होता है. अगर आप इस इस चेन रिएक्शन को कंट्रोल कर लेते हैं तो इस ऊर्जा को आप बिजली के रूप में प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन यहीं चेन रिएक्शन जब अनियंत्रित होता है तो यह एटम बम बन जाता है.
गौरतलब है कि U-238 से जब न्यूट्रान टकराता है तो ऐसी प्रतिक्रिया नहीं होती है, क्योंकि वह न्यूट्रॉन को पकड़ लेता है लेकिन टूटता नहीं है.
क्या होता है यूरेनियम संवर्धन (Uranium enrichment)
जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि यूरेनियम खदानों से मिलने वाला प्राकृतिक यूरेनियम बहुत कम उपयोगी होता है, क्योंकि इसमें U-235 की मात्रा 0.7 फीसदी ही होती है. इसका उपयोग करने के लिए इसमें U-235 की मात्रा बढ़ानी होती है. यही प्रक्रिया यूरेनियम संवर्धन (Uranium Enrichment) कहलाती है. यानी कि प्राकृतिक यूरेनियम में U-235 की मात्रा को बढ़ाने और U-238 को घटाने की प्रक्रिया को यूरेनियम एनरिचमेंच कहते हैं.
यूरेनियम का कितना संवर्धन, किस काम के लिए जरूरी है
बिजली उत्पादन ( 3 से 5 फीसदी)
अगर आप यूरेनियम से बिजली बनाना चाहते हैं तो आपको यूरेनियम को 3 से 5 फीसदी तक एनरिच करना पड़ेगा. यानी कि जिस U-235 में 3 से 5 फीसदी यूरेनियम है उसका इस्तेमाल परमाणु बिजली घरों में किया जा सकता है और इससे बिजली बनाई जा सकती है. इस यूरेनियम को Low enriched Uranium कहते हैं. दुनिया भर के परमाणु बिजली घर इसी लेवल का यूरेनियम अपने परमाणु रिएक्टरों में बिजली बनाने के लिए करते हैं.
न्यूक्लियर रिसर्च रिएक्टर, कैंसर ट्रीटमेंट (20 फीसदी)
जब यूरेनियम का एनरिचमेंट 20 फीसदी तक हो जाता है तो इसका इस्तेमाल नौसेना के जहाजों और पनडुब्बियों के रिएक्टरों में किया जाता है. यूरेनियम की ये अवस्था Highly enriched Uranium कहलाती है. इस लेवल तक आकर यूरेनियम काफी शक्तिशाली और विध्वंसक हो चुका होता है. यूरेनियम-235 का एनरिचमेंट जितना ज्यादा होता है ये उतना ही घातक, विध्वंसक और ताकतवर होता जाता है.
एटम बम (90 फीसदी)
जब यूरेनियम का एनरिचमेंट 90 फीसदी तक हो जाता है तो यह 'सामग्री' एटम बम बनाने के लिए तैयार हो जाती है. यानी कि यूरेनियम अब उस अवस्था को प्राप्त कर चुका है जब अगर उसमें न्यूट्रान को टकराया जाए तो चेन रिएक्शन शुरू हो सकता है और ऊर्जा की अकूत मात्रा रिलीज होगी. अर्थात एटम बम बन सकता है. इसे Weapon grade Uranium कहते हैं.
जब नरसिम्हा राव ने अटल से कहा था- सामग्री तैयार है
यहां आपको भारत के परमाणु कार्यक्रम का संक्षिप्त किस्सा बता दें. जब भारत के पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव का निधन हुआ था. तो 2004 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने एक किस्सा बताया था.
1996 में जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे तो भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण की तैयारी शुरू की थी. राव ने यह सुनिश्चित किया कि परमाणु हथियारों के लिए आवश्यक सामग्री और तकनीक तैयार हो. सामग्री का अर्थ है कि यूरेनियम का एनरिचमेंट पर्याप्त स्तर तक हो जाए. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव और अमेरिकी खुफिया जानकारी के कारण 1995 में परीक्षण टाल दिया गया था.
1996 में राव का कार्यकाल समाप्त होने पर अलट बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों वाली सरकार बनी. तब राव ने वाजपेयी को परमाणु परीक्षण की तैयारियों के बारे में बताया और कहा, "सामग्री तैयार है," यानी हथियार और तकनीक तैयार हैं. वाजपेयी की सरकार अल्पकालिक थी, इसलिए परीक्षण नहीं हुआ. बाद में 1998 में वाजपेयी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने पर पोखरण-II परीक्षण सफलतापूर्वक हुआ.
कैसे होता है यूरेनियम का संवर्धन
यूरेनियम का संवर्धन एक जटिल वैज्ञानिक प्रक्रिया है. यह वह प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक यूरेनियम में मौजूद यूरेनियम-235 (U-235) की सांद्रता को बढ़ाया जाता है, जो प्राकृतिक अवस्था में केवल 0.7% होता है. इसका बाकी हिस्सा यूरेनियम-238 होता है.
संवर्धन के लिए सबसे पहले यूरेनियम अयस्क (जैसे पिचब्लेंड) से खनन कर यूरेनियम ऑक्साइड (U₃O₈, येलोकेक) बनाया जाता है. येलोकेक को यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (UF₆) गैस में बदला जाता है, यह एक उड़ने वाली और हल्की गैस है. जो संवर्धन के लिए उपयुक्त है.
UF₆ को उच्च गति (लगभग 100,000 rpm) से घूमने वाले सेंट्रीफ्यूज में डाला जाता है. U-235, जो हल्का होता है जो केंद्र की ओर खींचा जाता है, जबकि भारी U-238 बाहर रहता है. इससे U-235 की सांद्रता बढ़ती है.
सेंट्रीफ्यूज को कैस्केड में जोड़ा जाता है, जहां UF₆ को बार-बार संवर्धित किया जाता है.
बता दें कि कि यूरेनियम को 0.7% से 3-5% तक फिर 20%, 60%, और अंततः 90% तक पहुंचने के लिए कई चरणों की आवश्यकता होती है.
60% से 90% तक का एनरिचमेंट अपेक्षाकृत तेज है, क्योंकि अधिकांश U-238 को पहले ही हटा दिया जाता है.
एनरिचमेंट के आखिरी चरण में आखिरकार U-235 (90%) को धातु या ऑक्साइड के रूप में परमाणु हथियारों के लिए तैयार किया जाता है. यानी कि अब यूरेनियम एटम बम बनने के लिए तैयार है. बस इस पर न्यूट्रानों से प्रहार की जरूरत है.
बता दें कि अगर कोई भी देश 20% से ऊपर यूरेनियम का संवर्धन कर लेता है तो वह जल्द ही 90% तक पहुंच सकता है. इसलिए यह अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय होता है.
कहां तक पहुंचा है ईरान का यूरेनियम संर्वधन (Uranium enrichment)
ईरान का यूरेनियम संवर्धन 60% तक पहुंच चुका है, जो हथियार-ग्रेड के करीब है, और उसका यूरेनियम भंडार 9 परमाणु हथियारों के लिए पर्याप्त है. 13 जून को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसी बात को दोहराया था. फरवरी 2023 में IAEA ने 84% तक संवर्धित यूरेनियम के कण पाए थे, इस पर ईरान ने सफाई देते हुए कहा था कि ये प्रयोगशाला में हुई गलती है.
गौरतलब है कि 60% से 90% तक संवर्धन अपेक्षाकृत तेज है, क्योंकि 60% तक 90% से अधिक तकनीकी कार्य पूरा हो चुका होता है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि गैर सैन्य उद्देश्य के लिए यूरेनियम का 20 फीसदी तक ही एनरिचमेंट पर्याप्त है. इससे आगे का एनरिचमेंट परमाणु और सैन्य महात्वाकांक्षा को दर्शाता है.