भारत में मौसम अब पहले जैसा नहीं रहा. साल 2025 के पहले 9 महीनों (जनवरी से सितंबर) में कुल 273 दिनों में से 270 दिन देश के किसी न किसी हिस्से में चरम मौसम (Extreme Weather) की घटनाएं हुईं. यानी करीब 99% दिन भारत ने लू, शीत लहर, आंधी-तूफान, भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन या बिजली गिरने जैसी आपदाएं झेलीं.
यह खुलासा सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) और डाउन टू अर्थ की नई रिपोर्ट क्लाइमेट इंडिया 2025 में हुआ है. रिपोर्ट कहती है कि अब चरम मौसम पूरे देश में फैल गया है. सभी 36 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रभावित हुए – यह पिछले 4 साल में पहली बार हुआ है. इससे मौतें भी 48% बढ़ गईं – 2025 में 4064 लोग मारे गए.
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फरवरी से सितंबर तक लगातार 8 महीने 30 राज्यों में हर महीने चरम घटनाएं हुईं. फरवरी, अप्रैल से सितंबर तक हर दिन देश में कहीं न कहीं ऐसी घटनाएं दर्ज हुईं.
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संयुक्त राष्ट्र के IPCC के अनुसार, चरम मौसम वो घटनाएं हैं जो किसी जगह पर सामान्य से बहुत अलग और खतरनाक होती हैं. भारत में IMD (मौसम विभाग) इन्हें इस तरह परिभाषित करता है...
IMD की वेबसाइट क्लाइमेट हजार्डस एंड वल्नेरेबिलिटी एटलस ऑफ इंडिया (2022 में लॉन्च) में ये परिभाषाएं हैं.

चरम मौसम क्यों बढ़ रहा है? वैज्ञानिकों के अनुसार, मुख्य कारण मानव गतिविधियां हैं जो जलवायु बदल रही हैं. यहां सरल भाषा में कारण...
ग्रीनहाउस गैसें और ग्लोबल वॉर्मिंग: हम कोयला, पेट्रोल-डीजल जलाते हैं तो CO2, मीथेन जैसी गैसें निकलती हैं. ये गैसें सूरज की गर्मी को धरती से बाहर नहीं जाने देतीं – इसे ग्रीनहाउस प्रभाव कहते हैं. 1957 के बाद 2024-25 में CO2 का सबसे बड़ा इजाफा हुआ. नतीजा: धरती का तापमान 1.1-1.5 डिग्री बढ़ गया, जिससे लू 30 गुना ज्यादा होने लगी. भारत में 2024 की एक-तिहाई लू जलवायु परिवर्तन से आई.
सीएसई और डाउन टू अर्थ की नई रिपोर्ट में खुलासा: पिछले चार वर्षों में चरम मौसमी घटनाओं में होने वाली मौतों में 48 फीसदी, जबकि फसलों के नुकसान में 400 फीसदी तक इजाफा हुआ है
— Down To Earth Hindi (@hindidown2earth) November 19, 2025
2025 में साल के पहले नौ महीनों में भारत ने 99% दिन झेली ‘चरम मौसम’ की मार https://t.co/d2kD3KWlJv
समुद्र गर्म होना और ज्यादा नमी: हिंद महासागर तेजी से गर्म हो रहा है. गर्म पानी से ज्यादा भाप हवा में जाती है, जिससे बादल भारी हो जाते हैं. तेज बारिश होती है. इससे बाढ़, भूस्खलन बढ़े. केरल, हिमाचल में यही कारण है.
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जेट स्ट्रीम कमजोर होना: उत्तर ध्रुव (आर्कटिक) तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे हवा की तेज धाराएं (जेट स्ट्रीम) कमजोर पड़ रही हैं. पहले मौसम तेज बदलता था, अब एक जगह पर लंबे समय तक अटक जाता है – जैसे लंबी लू या लगातार बारिश.
शहरीकरण और भूमि उपयोग में बदलाव: शहरों में कंक्रीट के जंगल बढ़ने से हीट आइलैंड प्रभाव होता है – शहर गांवों से 5-7 डिग्री गर्म हो रहे हैं. जंगल कटने से प्राकृतिक ठंडक कम हो गई. एरोसोल (धुंध) और भूमि बदलाव से बाढ़ का खतरा बढ़ा है.

अल नीनो का असर बढ़ना: प्राकृतिक चक्र जैसे अल नीनो अब जलवायु परिवर्तन से ज्यादा मजबूत हो गए, जिससे मॉनसून अनियमित होता है. इससे सूखा और बाढ़ दोनों बढ़े.
ये कारण कंपाउंड इवेंट्स (एक साथ कई आपदाएं) का खतरा बढ़ाते हैं. भारत में 71% लोग लू को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं.
रिपोर्ट कहती है कि CO2 उत्सर्जन कम करें – कोयला छोड़ें, सोलर-विंड एनर्जी बढ़ाएं, पेड़ लगाएं. हर राज्य अपनी जलवायु योजना बनाए. शहरों में हरा-भरा बढ़ाएं. यह रिपोर्ट चेतावनी है – चरम मौसम अब रोजमर्रा का हिस्सा बन गया है. अगर अभी नहीं जागे, तो आने वाले साल और भयानक होंगे.