एक छोटा सा एस्टेरॉयड धरती के इतने करीब से गुजरा कि उसने वैज्ञानिकों की हालत खराब कर दी. लेकिन वैज्ञानिकों को यह बात घंटों बाद पता चली. यह एस्टेरॉयड स्पेस स्टेशन के नीचे से गुजरा. ऐसा ही हुआ पिछले सप्ताह. इसका नाम है 2025 टीएफ. यह जिराफ के आकार का (3.3 से 9.8 फुट चौड़ा) छोटा पिंड था, जो भारतीय समय के हिसाब से 1 अक्टूबर को रात 8:47 बजे अंटार्कटिका के ऊपर से गुजरा.
ऊंचाई सिर्फ 265 मील (428 किलोमीटर) – यानी अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) जितनी. लेकिन खुशकिस्मती से कोई अंतरिक्ष यान इसके रास्ते में न था. यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) ने इसका डेटा जारी किया.
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उल्कापिंड दक्षिण ध्रुव (अंटार्कटिका) के ऊपर से तेजी से गुजरा. ईएसए के अनुसार, यह धरती की सतह से उपग्रहों की कक्षा से भी करीब था. वैज्ञानिकों ने इसे घंटों बाद देखा – कैटालिना स्काई सर्वे (नासा फंडेड मिशन) की मदद से. यह सर्वे धरती के पास आने वाले ऑब्जेक्ट्स को ट्रैक करता है.

अगर यह वायुमंडल में घुसा होता, तो चमकदार फायरबॉल बनकर जल जाता. लेकिन धरती पर कोई खतरा न था. ईएसए ने कहा कि यह छोटा पिंड था, लेकिन अंतरिक्ष यान के लिए समस्या पैदा कर सकता था.
नासा और ईएसए हजारों नीयर-अर्थ ऑब्जेक्ट्स (धरती के पास आने वाले) ट्रैक करते हैं. 'पोटेंशियली हेजर्डस' (खतरनाक) उल्कापिंड कम से कम 140 मीटर चौड़ा होना चाहिए. धरती से 74.8 लाख किमी के अंदर आना चाहिए. 2025 टीएफ इससे बहुत छोटा था, इसलिए पहले नजर न आया. नासा ने अमेरिकी गवर्नमेंट शटडाउन के कारण कोई घोषणा न की, लेकिन अपनी वेबसाइट पर अपडेट किया. अगली बार यह अप्रैल 2087 में गुजरेगा.
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वैज्ञानिक कहते हैं कि छोटे उल्कापिंड भी खतरनाक हो सकते हैं. आईएसएस की कक्षा 250 मील ऊपर है, और यह उल्कापिंड 265 मील पर था. अगर टकरा गया होता, तो स्टेशन को नुकसान हो सकता था. ले
इस उल्कापिंड की घटना से धरती बची, लेकिन आकाश में रोशनी का मजा लेने का मौका है. 8 अक्टूबर को ड्रैकॉनिड मेटियोर शावर चरम पर होगी. यह उल्कापिंडों की वर्षा है, जो हर साल आती है. पूर्णिमा (हार्वेस्ट मून) की रोशनी से थोड़ा कम दिखेगी, लेकिन चमकदार फायरबॉल संभव. यह 21पी/जियाकोबिनी-जिनर धूमकेतु के बर्फीले टुकड़ों से बनती है, जो हर 6.5 साल में सूर्य के पास आता है.