इसरो वैज्ञानिकों ने 16 जुलाई की शाम चंद्रयान-3 की दूसरी ऑर्बिट मैन्यूवरिंग को पूरा कर लिया है. पहले यह 173 किलोमीटर की पेरीजी और 31,650 किलोमीटर की एपोजी वाली अंडाकार कक्षा में घूम रहा था. जिसकी एपोजी को 15 जुलाई की दोपहर बदल कर 41,762 किलोमीटर किया गया था.
दूसरी ऑर्बिट मैन्यूवरिंग में इसकी नजदीकी दूरी यानी 173 किलोमीटर को बढ़ाकर 220 किलोमीटर के आसपास किया है. इस दौरान चंद्रयान-3 के इंजनों को 42 सेकेंड तक चालू किया गया था. फिलहाल इसरो वैज्ञानिक इसकी कक्षा से संबंधित डेटा का एनालिसिस कर रहे हैं.

इसरो के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दूसरी ऑर्बिट मैन्यूवरिंग सही से हो चुकी है. अब चंद्रयान-3 धरती थोड़ा और दूर हो गया है. उम्मीद है कि इस हफ्ते ही तीन और ऑर्बिट मैन्यूवरिंग होगी. जिसमें लगातार तीसरी, चौथी और पांचवी ऑर्बिट को बदला जाएगा. इन तीनों ऑर्बिट की एपोजी बदली जाएगी. पेरीजी सिर्फ दूसरे ऑर्बिट की ही बदली गई है.
सिर्फ दूसरे ऑर्बिट में बदली है पेरीजी
लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-3 को 173X36,500 KM की पेरीजी-एपोजी वाली अंडाकार कक्षा में डाला गया था. कम दूरी यानी पेरीजी. लंबी दूरी मतलब एपोजी. पहले ऑर्बिट मैन्यूवर में एपोजी को बढ़ाया गया है. यही प्रक्रिया तीसरे, चौथे और पांचवें ऑर्बिट में भी की जाएगी. यानी धरती के चारों तरफ पांच बार चंद्रयान-3 की कक्षा बदली जाएगी.
चंद्रयान-3 की आगे की यात्रा?
31 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 धरती से दस गुना दूर जा चुका होगा. इसरो वैज्ञानिक एपोजी में बदलाव करके उसकी ज्यादा दूरी को बढ़ाते रहेंगे. तब तक बढ़ाएंगे जब तक वह धरती से करीब 1 लाख किलोमीटर दूर नहीं पहुंच जाता. यहां पहुंचने के बाद वैज्ञानिक उसे बनाएंगे गुलेल. यानी स्लिंगशॉट करके चंद्रयान-3 को ट्रांसलूनर इंसर्शन में भेजेंगे. यानी चंद्रमा के लिए तय लंबी दूरी वाली सोलर ऑर्बिट.

17 अगस्त को अलग होगा प्रोपल्शन मॉड्यूल
पांच दिन इन लंबे ऑर्बिट में यात्रा करने के बाद यानी 5-6 अगस्त को चंद्रयान-3 लूनर ऑर्बिट इंसर्शन स्टेज में होगा. तब चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन सिस्टम को ऑन किया जाएगा. उसे आगे की ओर धकेला जाएगा. यानी चंद्रमा की 100 किलोमीटर की ऊपरी कक्षा में भेजा जाएगा. 17 अगस्त को प्रोपल्शन सिस्टम चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर से अलग हो जाएगा.
ऐसे कम होगी गति, फिर होगी लैंडिग
प्रोपल्शन मॉड्यूल के अलग होने के बाद लैंडर को चंद्रमा की 100X30 किलोमीटर की कक्षा में लाया जाएगा. इसके लिए डीबूस्टिंग करनी होगी. यानी उसकी गति कम करनी पड़ेगी. ये काम 23 अगस्त को होगा. यहीं पर इसरो वैज्ञानिकों की सांसें थमी रहेंगी. क्योंकि ये होगा सबसे कठिन काम. यहीं से शुरू होगी लैंडिंग की प्रकिया.
लैंडिंग साइट का एरिया बढ़ाया गया
इस बार विक्रम लैंडर में के चारों पैरों की ताकत को बढ़ाया गया है. नए सेंसर्स लगाए गए हैं. नया सोलर पैनल लगाया गया है. पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल 500 मीटर X 500 मीटर चुना गया था. इसरो विक्रम लैंडर को मध्य में उतारना चाहता था. जिसकी वजह से कुछ सीमाएं थीं. इस बार लैंडिंग का क्षेत्रफल 4 किलोमीटर x 2.5 किलोमीटर रखा गया है. यानी इतने बड़े इलाके में चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर उतर सकता है.