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भारत में आने वाली है 'फेफड़े की बीमारियों की सुनामी'... प्रदूषण पर डॉक्टरों की चेतावनी

भारत में कोविड के बाद सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट बन चुका है वायु प्रदूषण. ब्रिटेन में भारतीय डॉक्टरों ने चेताया कि उत्तर भारत में फेफड़ों की छिपी बीमारियां बढ़ रही हैं, भविष्य में बड़ा संकट आएगा. दिल्ली में सांस के मरीज 30% बढ़े. PM2.5 से सालाना लाखों मौतें हो रही हैं. तुरंत जांच-इलाज और स्वच्छ हवा के उपाय जरूरी हैं.

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दिल्ली में सैंटा क्लॉज बनकर वायु प्रदूषण के खिलाफ मास्क पहनकर विरोध करता एक युवक. (Photo: PTI)
दिल्ली में सैंटा क्लॉज बनकर वायु प्रदूषण के खिलाफ मास्क पहनकर विरोध करता एक युवक. (Photo: PTI)

ब्रिटेन में काम करने वाले भारतीय मूल के फेफड़े और हृदय विशेषज्ञ डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण भारत का कोविड महामारी के बाद सबसे बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुका है. अगर तुरंत कड़े कदम नहीं उठाए गए तो हर साल यह स्थिति और खराब होती जाएगी. डॉक्टरों का कहना है कि उत्तर भारत में लाखों लोगों के फेफड़ों को पहले ही गंभीर नुकसान पहुंच चुका है. एक बड़ी फेफड़े की बीमारियों का सुनामी आने वाली है. 

छिपी हुई बीमारियां बन रही हैं बड़ा खतरा

लिवरपूल के फेफड़े के विशेषज्ञ डॉ. मनीष गौतम ने कहा कि उत्तर भारत में रहने वाले करोड़ों लोगों के फेफड़ों को सालों से जहरीली हवा नुकसान पहुंचा रही है. अभी जो मरीज अस्पताल आ रहे हैं, वे सिर्फ एक सिरा हैं. नीचे बहुत बड़ी संख्या में ऐसी बीमारियां छिपी हुई हैं जिनका पता नहीं चल रहा.  

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डॉ. गौतम ने सरकार से अपील की कि फेफड़ों की बीमारियों की जल्दी जांच और इलाज के लिए एक विशेष लंग हेल्थ टास्क फोर्स बनाई जाए. उनका कहना है कि जैसे टीबी को नियंत्रित करने के लिए बड़े कार्यक्रम चलाए गए, वैसे ही अब फेफड़ों की बीमारियों के लिए जरूरी है.

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दिल्ली में 20-30% बढ़े सांस के मरीज

दिसंबर में दिल्ली के अस्पतालों में सांस की बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ गई है. इनमें कई युवा और पहली बार बीमार पड़ने वाले लोग भी शामिल हैं. डॉक्टरों के अनुसार सिरदर्द, थकान, हल्की खांसी, गले में जलन, आंखों में सूखापन, त्वचा पर चकत्ते और बार-बार संक्रमण जैसे लक्षणों को लोग मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन ये गंभीर बीमारियों के शुरुआती संकेत हो सकते हैं.

हृदय रोग भी बढ़ रहे हैं प्रदूषण से

लंदन के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राजय नारायण ने कहा कि दुनिया भर में पिछले दशक में हृदय रोग बढ़ने का एक बड़ा कारण वायु प्रदूषण है, न कि सिर्फ मोटापा. बर्मिंघम के हृदय विशेषज्ञ प्रोफेसर डेरेक कोनोली ने बताया कि हृदय रोग बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है. प्रदूषण के छोटे-छोटे कण (PM2.5) दिखाई नहीं देते, इसलिए लोग खतरे को समझ नहीं पाते. कारों, हवाई जहाजों और अन्य वाहनों से निकलने वाला धुआं इसका बड़ा कारण है.

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परिवहन से 40% प्रदूषण

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को स्वीकार किया कि दिल्ली में कुल प्रदूषण का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा परिवहन क्षेत्र से आता है, क्योंकि हम जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं. उन्होंने बायोफ्यूल जैसे स्वच्छ विकल्पों को जल्द अपनाने की जरूरत पर जोर दिया.

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सरकार का जवाब: सीधा संबंध साबित नहीं

हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने कहा कि हवा की खराब गुणवत्ता (AQI) और फेफड़ों की बीमारियों के बीच सीधा संबंध साबित करने वाले पक्के आंकड़े नहीं हैं. हालांकि सरकार ने माना कि वायु प्रदूषण सांस की बीमारियों को बढ़ाने वाला एक कारण जरूर है. पिछले तीन साल में दिल्ली में सांस की तीव्र बीमारियों के 2 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए, जिनमें करीब 30 हजार मरीजों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा.

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2022 में 17 लाख मौतें PM2.5 से

'द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज' की 2025 रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2022 में PM2.5 प्रदूषण से 17 लाख से ज्यादा मौतें हुईं. इनमें से 2.69 लाख मौतों का कारण सड़क परिवहन में पेट्रोल का इस्तेमाल था.

डॉक्टरों का कहना है कि प्रदूषण रोकने के उपाय तो जरूरी हैं, लेकिन अब सिर्फ ये काफी नहीं. जल्दी जांच, इलाज और जागरूकता पर भी उतना ही ध्यान देना होगा. अगर अभी नहीं चेते तो आने वाले सालों में स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर बहुत भारी बोझ पड़ेगा.

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