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Mahavir Jayanti 2024: राजकुमार वर्धमान कैसे बने भगवान महावीर? पंचशील सिद्धांत भी समझिए

Mahavir Jayanti 2024: महावीर जी का जन्म चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था. इनके जन्मोत्सव को ही महावीर जयंती कहा जाता है. इस दिन जैन धर्म के लोग भगवान महावीर की पूजा करते हैं और इनके उपदेशों में कही गई बातों को याद करते हैं.

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महावीर जयंती के दिन जैन धर्म के लोग भगवान महावीर की पूजा करते हैं और इनके उपदेशों में कही गई बातों को याद करते हैं.
महावीर जयंती के दिन जैन धर्म के लोग भगवान महावीर की पूजा करते हैं और इनके उपदेशों में कही गई बातों को याद करते हैं.

Mahavir Jayanti 2024: आज देशभर में जैन धर्म का प्रमुख त्योहार महावीर जयंती मनाया जा रहा है. यह पर्व जैन धर्म के अंतिम व 24वें तीर्थंकर स्वामी महावीर को समर्पित है. जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, महावीर जी का जन्म चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था. इनके जन्मोत्सव को ही महावीर जयंती कहा जाता है. इस दिन जैन धर्म के लोग भगवान महावीर की पूजा करते हैं और इनके उपदेशों में कही गई बातों को याद करते हैं. भगवान महावीर ने संसार को जो पंचशील सिद्धांत दिया था, वो आज भी लोगों को मार्गदर्शक बना हुआ है. आइए आज आपको बताते हैं कि राजा के घर मे जन्मे वर्धमान जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर कैसे बन गए.

वर्धमान कैसे बने स्वामी महावीर?

भगवान महावीर स्वामी का जन्म वज्जि गणराज्य के राजा सिद्धार्थ के यहां ईसा से 599 वर्ष पूर्व हुआ था. इनकी माता का नाम त्रिशाला था, जिन्हें प्रियकारीनी भी कहते हैं. भगवान महावीर स्वामी का जन्म कुंडग्राम में हुआ था, जो वर्तमान में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में पड़ता है. राजा सिद्धार्थ के घर वर्धमान के पैदा होते ही राज्य में सुख-संपन्नता बढ़ गई. मान-सम्मान, प्रतिष्ठा से लेकर धनधान्य में वृद्धि होने लगी. इसलिए इनका नाम वर्धमान रखा गया.

वर्धमान शुरू से ही साहसी और निर्भीक स्वभाव के थे. वर्धमान ने 30 वर्ष की आयु में संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्म कल्याण के पथ पर निकल गए. इन्होंने  राजसी सुख-सुविधाओं का त्याग कर दिया. करीब 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद इन्होंने अपनी इच्छाओं और विकारों पर नियंत्रण पा लिया. इस दौरान उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई. इस कठोर तप के बाद ही वर्धमान महावीर कहलाए. स्वामी महावीर को 72 वर्ष की आयु में पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई.

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कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी ने चार तीर्थों की स्थापना की. इसमें साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका शामिल हैं. यह कोई लौकिक तीर्थ नहीं बल्कि एक सिद्धांत हैं. इसमें जैन धर्म के सिद्धांत सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और अस्तेय ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपनी आत्मा को तीर्थ बनाने की राह दिखाते हैं.

क्या है स्वामी महावीर का पंच सिद्धांत?
भगवान महावीर ने लोगों को समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति पाने के लिए पांच सिद्धांत बताए थे. इन्हीं को महावीर का पंच सिद्धांत कहा जाता है. आइए आपको इनके बारे में विस्तार से बताते हैं.

अहिंसा- भगवान महावीर का पहला सिद्धांत है अहिंसा, इस सिद्धांत में उन्होंने जैनों लोगों को हर परिस्थिति में हिंसा से दूर रहने का संदेश दिया है. उन्होंने बताया कि भूल कर भी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए.

सत्य- भगवान महावीर का दूसरा सिद्धांत है सत्य. भगवान महावीर कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ. जो बुद्धिमान सत्य के सानिध्य में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है. यही वजह है कि उन्होंने लोगों को हमेशा सत्य बोलने के लिए प्रेरित किया.

अस्तेय- भगवान महावीर का तीसरा सिद्धांत है अस्तेय. अस्तेय का पालन करने वाले किसी भी रूप में अपने मन के मुताबिक वस्तु ग्रहण नहीं करते हैं. ऐसे लोग जीवन में हमेशा संयम से रहते हैं और सिर्फ वही वस्तु लेते हैं जो उन्हें दी जाती है.

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ब्रह्मचर्य- भगवान महावीर का चौथा सिद्धांत है ब्रह्मचर्य. इस सिद्धांत को ग्रहण करने के लिए जैन व्यक्तियों को पवित्रता के गुणों का प्रदर्शन करने की आवश्यकता होती है. जिसके अंतर्गत वो कामुक गतिविधियों में भाग नहीं लेते हैं.

अपरिग्रह- पांचवा अंतिम सिद्धांत है अपरिग्रह, यह शिक्षा सभी पिछले सिद्धांतों को जोड़ती है. माना जाता है कि अपरिग्रह का पालन करने से जैनों की चेतना जागती है और वे सांसारिक एवं भोग की वस्तुओं का त्याग कर देते हैं.

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