उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार की गढ़ रही दो सीटें रायबरेली और अमेठी से उम्मीदवारों के नाम तय हो गए हैं. अपनी परंपरागत सीट अमेठी को छोड़कर राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे. जबकि अमेठी से गांधी परिवार के करीबी किशोरी लाल शर्मा (केएल शर्मा) को टिकट दिया गया है. इस सबके बीच प्रियंका गांधी को एक बार फिर मायूसी हाथ लगी है. हालांकि कांग्रेस कह रही है कि प्रियंका ने खुद चुनाव लड़ने की बजाय प्रत्याशियों के लिए प्रचार करना ज्यादा जरूरी समझा है. सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर क्या वजह है कि राहुल गांधी ने अमेठी के बजाय रायबरेली सीट को चुना ? कांग्रेस समर्थक इस फैसले को मास्टर स्ट्रोक कह रहे हैं. पर समझ में नहीं आ रहा है कि इसका आधार क्या है?
क्या कांग्रेस ने अमेठी में वॉकओवर दे दिया
अमेठी में बीजेपी पहले ही अपना प्रत्याशी स्मृति इरानी को घोषित कर चुकी है. स्मृति ने 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को करीब 50 हजार वोटों से हराया था. यह कोई बड़ा मार्जिन नहीं था. राहुल गांधी मेहनत करते तो इस बार वो इस अंतर को पार कर सकते थे. अमेठी की जनता इस बार हो सकता है कि उन्हें सिर आंखों पर बैठा लेती. सारा खेल भरोसे का ही होता है. राहुल गांधी को अमेठी की जनता पर भरोसा करना चाहिए था. वैसे भी सिटिंग एमपी से थोड़ी बहुत नाराजगी तो रहती ही है और हारे हुए प्रत्याशी के साथ हमेशा सहानुभूति होती है. अगर इस फॉर्मूले को माने तो राहुल गांधी इस बार अमेठी से जीत जाते. प्रसिद्ध सेफोलॉजिस्ट यशवंत देशमुख सोशल मीडिया एक्स पर लिखते हैं- 'क्या विचित्र निर्णय है भाई? अमेठी में वाकओवर दे दिया, वो फिर भी समझ आता है. राय बरेली की सीट क्यों खराब कर रहे हैं? सोचिए की अगर रायबरेली और वायनाड दोनों जीतेंगे तो एक सीट खाली करनी पड़ेगी. केरल में अगला विधानसभा अच्छे से जीतने का मौका है कांग्रेस के पास, ऐसे में वायनाड़ खाली करना गलत होगा. और रायबरेली खाली करना और भी गलत. बेहतर होता प्रियंका जी को रायबरेली से लड़ाते. ये मास्टरस्ट्रोक अपनी छोटी समझ में तो नहीं आया.'
बात परसेप्शन की क्यों है
हो सकता है कि रायबरेली सीट राहुल गांधी को सेफ लग रही हो. कारण कि पिछली बार भी सोनिया गांधी ने यह सीट डेढ़ लाख से भी अधिक सीटों से जीत ली थी. पर चुनावी गणित हर बार के चुनावों में बदल जाया करती है. इस बार बहुजन समाज पार्टी का समर्थन रायबरेली में कांग्रेस को नहीं मिल रहा है. करीब 34 प्रतिशत के करीब दलित आबादी वाली सीट पर बीएसपी को कम से कम इतने वोट की उम्मीद की ही जा सकती है जितने वोट से सोनिया ने पिछली बार चुनाव जीता था. इसलिए ये कोई जरूरी नहीं है कि राहुल गांधी रायबरेली की सीट जीत ही जाएं. इसलिए यह कहना बिल्कुल सही नहीं लग रहा है कि अमेठी से रायबरेली आने की वजह सेफ सीट हो सकती है. इसके साथ ही कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए आम लोगों में बनने वाले परसेप्शन की भी है.
पत्रकार प्रेमशंकर मिश्र लिखते हैं कि कांग्रेस की लड़ाई करो-मरो की है, तो नेतृत्व की 'सेफ सीट' तलाशने की कवायद सियासी संदेश के लिहाज से ठीक नहीं दिखती. लड़ता दिखना जरूरी होता है. 77 की करारी हार के बावजूद 78 में आजमगढ़ में मोहसिना को उपचुनाव लड़ा और जिता कर इंदिरा गांधी ने फिजा बदल दी थी.
राहुल गांधी की हार अमेठी में हुई थी. राहुल को अपनी परंपरागत सीट छोड़कर भागना कहीं से भी सही नहीं दिख रहा है. हो सकता है कि वो अमेठी में हार जाते पर पीठ दिखाने को जनता कभी याद नहीं रखती. लड़ते-लड़ते शहीद होने भी पीठ दिखाने वाले के मुकाबले ज्यादा सम्मान का हकदार होता है.
राहुल गांधी 2019 के बाद से अमेठी से दूरी बनाए हुए हैं. हालांकि अमेठी को वो अपना परिवार मानते रहे हैं. 1976 में संजय गांधी ने खेरौना (अमेठी) में युवक कांग्रेस का एक माह का श्रमदान शिविर लगाया. हालांकि 1977 के चुनाव में जनता पार्टी की आंधी में अमेठी से संजय गांधी को हार मिली. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 1980 में फिर चुनाव लड़े.जीत दर्ज करके वापसी दर्ज की. राहुल गांधी अमेठी से लगातार तीन जीत के बाद भी एक हार ने उनका दिल तोड़ दिया.
रणनीति के तहत रायबरेली जाने की बात कितनी सही?
कुछ कांग्रेस समर्थक लोग राहुल गांधी के अमेठी सीट छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ने के फैसले के पीछे मजबूत रणनीति का उदाहरण दे रहे हैं. 2024 का चुनावी माहौल पूरी तरह से मोदी बनाम राहुल के इर्द-गिर्द नजर आ रहा है. कहा जा रहा है कि अगर राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ते तो चुनावी माहौल राहुल बनाम इरानी हो जाता. इसके साथ ही अगर स्मृति इरानी दूसरी बार राहुल गांधी को चुनाव में हरातीं तो राहुल गांधी का राजनीतिक करियर धरातल पर आ जाता . रायबरेली से अगर वो हार जाते हैं तो भी यह परसेप्शन नहीं बनेगा कि राहुल की राजनीति खत्म हो गई. राहुल गांधी के रायबरेली से उतरने का एक पहलू यह भी है कि उन पर प्रदेश छोड़कर भागने का आरोप न लग सके. क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि अमेठी के मुकाबले रायबरेली राहुल गांधी के लिए सेफ सीट है. गांधी परिवार के किसी भी सदस्य के चुनाव लड़ने का जो यूपी में कांग्रेस उठाना चाहती थी वो रायबरेली से भी उतना ही मिलती नजर आ रही है.
क्या राजनीतिक विरासत के चलते रायबरेली पहुंचे राहुल
अमेठी छोड़कर रायबरेली से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर एक बात और कही जा रही है कि उन्होंने रायबरेली की विरासत वरीयता दी.दरअसल गांधी परिवार का रायबरेली से चार पीड़ियों का नाता रहा है. जबकि अमेठी से रिश्ता 1977 से जुड़ा. कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल की माने तो राहुल गांधी का रायबरेली से इमोशनल अटैचमेंट है, क्योंकि यहां से इंदिरा गांधी ने चुनाव लड़ा है और सोनिया गांधी ने उस परंपरा को आगे बढ़ाया है.
रायबरेली लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास की बात करें तो यह सीट 1957 के आम चुनाव से अस्तित्व में है. रायबरेली सीट के अस्तित्व में आने के बाद फिरोज गांधी ने दूसरे आम चुनाव में इस सीट का रुख कर लिया और चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. इस सीट से चुनाव-उपचुनाव मिलाकर कुल 16 बार कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीत मिली है जबकि तीन बार गैर कांग्रेसी उम्मीदवार विजयी रहे हैं. रायबरेली और नेहरू-गांधी परिवार का नाता पुराना है. इस सीट का पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं