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तेजस्वी यादव और RJD का बुरा हाल करने के लिए ये चार किरदार जिम्मेदार

तेजस्वी यादव के लिए इससे बुरा हाल क्या होगा कि महागठबंधन तो चुनाव हार ही गया, अपनी सीट पर भी कड़ा संघर्ष करना पड़ा है. लेकिन, तेजस्वी यादव इस हालत के लिए अकेले ही जिम्मेदार नहीं हैं - और जिम्मेदार लोगों में राहुल गांधी भी शामिल हैं.

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तेजस्वी यादव का बिहार चुनाव में बुरा हाल होने में राहुल गांधी का भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. (Photo: PTI)
तेजस्वी यादव का बिहार चुनाव में बुरा हाल होने में राहुल गांधी का भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. (Photo: PTI)

राघोपुर सीट पर तेजस्वी यादव ने संघर्ष के बारे में कभी वैसे ही नहीं सोचा होगा, जैसे राहुल गांधी ने 2019 में अमेठी की हार के बारे में. जैसे अमेठी कांग्रेस और गांधी परिवार का गढ़ रहा है, बिल्कुल वैसे ही राघोपुर आरजेडी और लालू परिवार का मजबूत गढ़ रहा है. जैसे राहुल गांधी के माता-पिता सोनिया गांधी और राहुल गांधी संसद में अमेठी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, तेजस्वी यादव से पहले उनके माता-पिता राबड़ी देवी और लालू यादव भी राघोपुर के विधायक रह चुके हैं. 

बिहार विधानसभा का चुनाव आरजेडी और कांग्रेस मिलकर लड़ रहे थे, लेकिन तेजस्वी यादव का ये हाल करने में राहुल गांधी का कोई कम योगदान नहीं है. और, वैसे ही तेजस्वी यादव का बुरा हाल करने वालों में राहुल गांधी अकेले नेता नहीं हैं, मुकेश सहनी का भी काफी महत्वपूर्ण रोल लगता है. 

राहुल गांधी और मुकेश सहनी के अलावा घर का झगड़ा तो तेजस्वी यादव पर भारी पड़ा ही है, तीन साल से पूरे बिहार में जो 'नौवीं फेल' कैंपेन चलाया गया, डैमेज तो उससे भी हुआ है - सबसे खराब बात है कि ये सब बिहार में लालू यादव की मौजूदगी में हुआ है. 

1. राहुल गांधी

वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी का आगे बढ़कर दबदबा बनाए रखना, और तेजस्वी यादव का पीछे-पीछे बड़े भैया करते रहना, लालू यादव के लिए बर्दाश्त कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा होगा. फिर भी वो चुप रहे. करीब करीब वैसे ही जैसे तेज प्रताप यादव के केस में कुछ बोल पाना मुश्किल हो रहा था - लेकिन, मौका मिलते ही हिसाब भी बराबर कर लिया.

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तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा लालू यादव आखिरकार कांग्रेस नेता के मुंह से घोषित कराकर ही माने. बल्कि, अशोक गहलोत से वो सब कुछ कहलवाया जो मन में दबा रखा था. काफी दिनों तक दूरी बनाए रखने के बाद राहुल गांधी बिहार में चुनाव कैंपेन के लिए गए जरूर, लेकिन किए तो मनमानी ही.

शुरू से ही राहुल गांधी वही काम करते आ रहे थे, जो तेजस्वी यादव के खिलाफ जा रहे थे. पहले दौरे में ही राहुल गांधी ने बिहार में कराए गए कास्ट सेंसस को फर्जी करार दिया था, जिसका तेजस्वी यादव बढ़ चढ़कर क्रेडिट ले रहे थे - और जब चुनाव कैंपेन के लिए पहुंचे तो सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टार्गेट करने लगे.

निजी हमले हमेशा ही घाटे का सौदा साबित हुए हैं, लेकिन राहुल गांधी को तो मालूम था कि बिहार में उनका क्या जाएगा - जो भी नुकसान होना होगा, तेजस्वी यादव का होगा. 

2. मुकेश सहनी

महागठबंधन में मुकेश सहनी ही ऐसे नेता थे, जो कल तक सबसे ज्यादा फायदे में नजर आ रहे थे. तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित हों न हों, उनको हर हाल में महागठबंधन के डिप्टी सीएम का उम्मीदवार बनना था. और, जब तक ये घोषणा नहीं हुई, भरपूर दबाब बनाए रखा.

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मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी का हाल तो उससे भी बुरा हुआ है, जैसा 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का हाल हुआ था. कांग्रेस ने तो अपने हिस्से की मिली सीटों में 19 सीटें जीत भी ली थी. मुकेश सहनी तो जीरो बैलेंस पर पहुंच गए हैं. महागठबंधन में मुकेश सहनी ने कड़ा मोलभाव करके 15 सीटें ले ली थी.

डिप्टी सीएम तो मुकेश सहनी तब बनते जब तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन पाते, लेकिन उनकी पार्टी का तो खाता भी नहीं खुल सका है. चुनाव से पहले ओवर कॉन्फिडेंस तो सातवें आसमान पर था, गठबंधन सहयोगी पार्टी के साथ फ्रेंडली फाइट का मतलब तो यही होता है. 

3. प्रशांत किशोर

प्रशांत किशोर ने तो तेजस्वी यादव की जड़ें खोदना तीन साल पहले ही शुरू कर दिया था, जब वो जन सुराज मुहिम पर निकले थे. पूरे अभियान के दौरान तेजस्वी यादव को प्रशांत किशोर 'नौंवी फेल' कह कर संबोधित करते रहे. प्रशांत किशोर के निशाने पर तो नीतीश कुमार भी हुआ करते थे, लेकिन जिस स्तर पर वो तेजस्वी यादव के खिलाफ लगे थे, वो तो अलग ही लेवल का था. 

हासिल की बात करें तो प्रशांत किशोर के हाथ भी कुछ नहीं लगा है, लेकिन तेजस्वी यादव का तो सब कुछ डुबो ही दिया है. जिस मुकाम पर तेजस्वी यादव पहुंचे थे, अब तो बहुत पीछे चले जाएंगे, और बैकबाउंस करने के लिए नये सिरे से जुटना होगा. 

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जेडीयू के 25 सीटों के अंदर सिमट जाने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर संन्यास लेने की बात से भले ही पलट जाएं, लेकिन तेजस्वी यादव के रास्ते में गड्ढे तो खोद ही डाले हैं. 

4. तेज प्रताप यादव

तेजस्वी यादव ने बड़े भाई तेज प्रताप यादव को काफी हल्के में ले लिया था, लेकिन अपना चुनाव हारकर भी वो छोटे भाई पर भारी ही पड़े हैं. राघोपुर का चुनावी संघर्ष तेजस्वी यादव ताउम्र शायद ही भूल पाएं. 

तेज प्रताप को परिवार में मिला ही क्या था? लालू यादव के अपनी राजनीतिक विरासत तेजस्वी यादव को सौंप देने के बाद से तेज प्रताप यादव बांसुरी बजाने और भजन कीर्तन में खुद को व्यस्त रहने लगे थे. पार्टी और परिवार से बेदखल किए जाने से पहले तक वो तेजस्वी को अर्जुन और खुद को उनका कृष्ण बताते रहे.

तेज प्रताप ने अपने लिए तो कभी कुछ नहीं कहा, वो तो तेजस्वी यादव को ही मुख्यमंत्री बनाने की बात करते रहे - ये तो तेजस्वी यादव ही हैं, कुल्हाड़ी पर पैर दे मारे. 

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