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तेज प्रताप की RJD में वापसी की संभावनाएं कितनी हैं, विकल्प तो NDA भी है

तेज प्रताप यादव की चुनौती आगे कुआं और पीछे खाई वाली थी, लेकिन बिहार चुनाव नतीजे के बाद लालू कुनबे की ताजा कलह ने उनके सामने नए विकल्प रख दिए हैं. रोहिणी आचार्य और तेजस्‍वी के झगड़े मेें उनके लिए कितनी जगह बनती है, और क्‍या इससे वे राजद में लौट पाएंगे, देखना होगा. वरना, तेज प्रताप ने एनडीए के साथ जाने का मजबूत संकेत दिया ही है. फैसला तेज प्रताप यादव को ही करना है.

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तेज प्रताप यादव घर से बाहर निकलकर खुद को आजमा चुके हैं, और अब दोराहे पर खड़े हैं. (Photo: PTI)
तेज प्रताप यादव घर से बाहर निकलकर खुद को आजमा चुके हैं, और अब दोराहे पर खड़े हैं. (Photo: PTI)

तेज प्रताप की RJD में वापसी की संभावना इसलिए भी बची हुई है, ये देखना दिलचस्‍प होगा. अब तक तो यह सिर्फ तेजस्‍वी बनाम तेजप्रताप वाला झगड़ा दिख रहा था. जिसमें लालू खुलेतौर पर तेजस्‍वी की ओर थे. लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद रोहिणी आचार्य के साथ हुई कलह ने तेजस्‍वी के सामने नई चुनौतियां पेश की हैं. और इसी परिस्थिति ने तेजप्रताप के सामने नया विकल्‍प रखा है. अब तक तेजस्‍वी के खिलाफ हमलावर रहे तेजप्रताप ने अब बहन को न्‍याय दिलाने का बीड़ा उठाया है. तेजस्‍वी के सहयोगी संजय यादव को वे 'जयचंद' कहते नहीं थकते हैं. लेकिन, रोहिणी के अपमान पर उनका कहना है कि 'बहन का जो अपमान करेगा, कृष्‍ण का सुदर्शन चक्र चलेगा.' उनकी बातों में दम इसलिए भी है क्‍योंकि न तो पशुपति कुमार पारस हैं, न ही शिवपाल यादव. ये दोनों क्रमशः मुलायम सिंह यादव और राम विलास पासवान के भाई हैं. जबकि तेज प्रताप, लालू यादव के बेटे हैं. राजनीतिक संपत्ति में वे तेजस्‍वी के बराबर के हिस्सेदार हैं. जब तक कि लालू यादव खुद उनको बेदखल नहीं करते.

लेकिन, ये भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर तेज प्रताप को बेदखल करने की कोशिश होती है, तो बेटियां भी संपत्ति पर दावा करेंगी. मामला अदालत भी जा सकता है. फैसला जो आए, लेकिन विवाद शुरू होने के बाद तेजस्वी यादव का एकछत्र राज तो नहीं ही रह पाएगा. 

1. लालू यादव के घर का जो मौजूदा माहौल है, सोशल मीडिया पर चर्चाओं के मुताबिक, तेज प्रताप के लिए उसमें फिट हो पाना आसान नहीं है. 

2. सिर्फ बहनों के सपोर्ट से तेज प्रताप के पक्ष में बहुत कुछ नहीं होने वाला - क्योंकि, ननदों से मुकाबले के लिए अब घर में एक भाभी भी है. फिलहाल, परिवार की बागडोर तेजस्वी की पत्नी राजश्री के हाथ में ही है. 

3. लालू परिवार में, बेटियों में मीसा भारती का थोड़ा बहुत दखल जरूर है, लेकिन वो भी अब मौके की नजाकत और समीकरण देखते हुए. राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते अभी वो तेजस्वी यादव के साथ खड़ी हैं. 

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4. लालू यादव और राबड़ी देवी के हाथ में कमान तो है, लेकिन औलाद के आगे जैसी मजबूरी होती है, वो बात वहां भी लागू होती है - और, तेजस्वी यादव को अपनी राजनीतिक विरासत तो खुद लालू यादव ने ही पूरे होशो-हवास में सार्वजनिक घोषणा करते हुए ही सौंपी है. 

5. तेज प्रताप के लिए एक बड़ी कमजोरी उनका तलाक का मामला भी है. अगर घर में बड़ी बहू होती, तो मामला इस तरह एकतरफा नहीं हो पाता. कहीं न कहीं चीजों को बैलेंस करने की कोशिशें निश्चित तौर पर आसान होतीं - ऐश्वर्या राय भी तेज प्रताप की बहनों के लिए घर में दखल देने के लिए अच्छा बहाना बन सकती थीं.  

एनडीए के साथ जाने के संकेत कितने मजबूत

Y+ कैटेगरी की सुरक्षा विरोधी दल के किसी नेता को यूं तो मिलती नहीं. केंद्र की एनडीए सरकार ने तेज प्रताप के मामले में जो बड़ा दिल दिखाया है, बहुत कुछ तो इसी बात से साफ हो जाता है. तेज प्रताप यादव आगे जो भी रास्ता अख्तियार करें, मुसीबत की घड़ी में सिक्योरिटी मिलने के एहसान का बदला तो चुकाना ही होगा.

जनशक्ति जनता दल के नेता तेज प्रताप पहले भी कह चुके हैं कि जो पलायन और रोजगार की बात करेगा उसका सपोर्ट करेंगे. चुनाव नतीजे आने से पहले ही न्यूज एजेंसी ANI से तेज प्रताप यादव ने कहा था, किसी की भी सरकार रहे, जो आम आदमी को रोजगार देगी, पलायन रोकेगी, बिहार में बदलाव लाएगी, हम उसके साथ रहेंगे... जनता मालिक है. जनता ही चीजें बनाती और बिगाड़ती है. विरासत लोहिया जी और कर्पूरी ठाकुर की है.

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मतलब, तेजस्वी यादव और उनके पीछे खड़े लालू यादव की तो कतई नहीं है. और, नतीजे आने के बाद तो तेज प्रताप ने तस्वीर और भी साफ कर दी है. JJD की बैठक में फैसला हुआ है कि तेज प्रताप यादव एनडीए सरकार को नैतिक समर्थन देंगे. जेजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम यादव ने मीडिया को बताया है, तेज प्रताप यादव ने रोहिणी आचार्य को पार्टी का राष्ट्रीय संरक्षक बनाए जाने का भी प्रस्ताव रखा था. प्रेम यादव के मुताबिक, तेज प्रताप ने कहा है कि वो जल्दी ही रोहिणी दीदी से बात करेंगे, और पार्टी का राष्ट्रीय संरक्षक बनने की रिक्वेस्ट करेंगे.

दोराहे पर खड़े हैं तेजस्‍वी...

तेज प्रताप ने अपने लिए एक व्यवस्था तो बना ही ली है. तेज प्रताप यादव को मां राबड़ी देवी का आशीर्वाद चुनावी कामयाबी भले न दिला पाया हो, लेकिन छोटा सा ही सही, अपना एक मुकाम तो हासिल कर ही लिया है. अपना अलग रास्ता तो बना ही लिया है. 

और जो भी हासिल है, वो तेज प्रताप के अपने हिस्से का है. परिवार और पार्टी के सपोर्ट के बगैर. और, सपोर्ट की बात कौन कहे, विरोध के बावजूद बनाया है. बस अपने हिस्से के मां के आशीर्वाद की बदौलत. घर और परिवार से बहुत दूर जाकर. 

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महुआ में तेजस्वी यादव ने समझाने की कोशिश की थी कि परिवार और पार्टी के बिना किसी का कोई अस्तित्व नहीं होता. चुनावी रैली में तेजस्वी यादव का कहना था, कोई आए, कोई जाए... पार्टी से बड़ा कोई नहीं है... पार्टी ही मां-बाप है. पार्टी है तो सब है, पार्टी नहीं तो कुछ भी नहीं... महुआ से लालटेन और लालू यादव का झंडा लहराएगा... लालटेन जलेगी तभी तेजस्वी यादव की सरकार बनेगी.

तेजस्वी की सरकार नहीं बनी. तेज प्रताप ने जवाब तो तभी दे दिया था, हमारे छोटे और नादान भाई ने कहा कि पार्टी से बड़ा कोई नहीं होता... लेकिन, मैं उनसे कहना चाहता हूं... पार्टी से बड़ी जनता होती है... वही असली मालिक है... लोकतंत्र में सबसे बड़ा केवल जनता होती है, न कोई पार्टी और न कोई परिवार.'

तेज प्रताप ने जनता को सर्वोपरि मानकर जो हासिल किया, और तेजस्वी ने पार्टी और परिवार के बूते जो हासिल किया, वो तो बराबर ही माना जाएगा. व्यावहारिक तौर पर देखें, तो तेज प्रताप की हार और तेजस्वी यादव की 25 बराबर ही तो हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में, इस हिसाब से तेज प्रताप और तेजस्वी का प्रदर्शन तो बराबर ही माना जाएगा.

आज की तारीख में तेज प्रताप यादव ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां से एक रास्ता घर से बहुत दूर चला जाता है. और, दूसरा रास्ता घर वापसी का है. मुश्किलों का लेवल बराबर है, बस चुनौतियों की टाइप अलग अलग हो सकती है.

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