ED यानी प्रवर्तन निदेशालय के ज्यादातर एक्शन पर सवाल उठते रहे हैं. खासकर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में. लेकिन, बीजेपी नेता सरकार का ये कहते हुए बचाव करते हैं कि जांच एजेंसी अपने हिसाब से बगैर किसी दबाव के काम करती है - और ये काम सिर्फ भ्रष्टाचारियों के खिलाफ होता है.
यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक बार ईडी सहित केंद्रीय जांच एजेंसियों की तारीफ कर चुके हैं. ये तो प्रधानमंत्री मोदी का ही ऑब्जर्वेशन रहा है कि जो काम जनता नहीं कर पाई, ED और CBI जैसी जांच एजेंसियों ने कर दिखाया है - फिर डर किस बात का. प्रधानमंत्री मोदी की ये तारीफ तो जांच एजेंसियों के लिए वैसी ही है, जैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एनकाउंटर के लिए यूपी पुलिस की पीठ ठोकते रहते हैं. जब टीवी शो में पूछा जाता है कि फिर गाड़ी पलटेगी, तो मुस्कुराते हुए कहते हैं, बिल्कुल... फिर गाड़ी पलटेगी.
कई मामलों में जमानत देते वक्त, अलग अलग अदालतों ने ईडी की गिरफ्तारी पर सवाल उठाये हैं, लेकिन तमलिनाडु के एक केस में ईडी की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी काफी गंभीर है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ईडी के एक्शन को उसी दिशा में ले जा रही है, जहां तमाम विपक्षी दल जांच एजेंसी पर सरकार के कहने पर या दबाव में काम करने के आरोप लगाते हैं.
तमिलनाडु की सरकारी शराब कंपनी TASMAC यानी तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की जांच और छापेमारी पर सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी तौर पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट का मानना है क ED की कार्रवाई न तो सही है, न संवैधानिक है, क्योंकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय होता है.
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई का मानना है कि प्रवर्तन निदेशालय एक राज्य निगम को निशाना बना रहा है. अदालत का मानना है कि ये देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन है, और जांच एजेंसी सारी सीमाएं पार कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट की ईडी को चेतावनी
ध्यान देने वाली बात ये है कि तमिलनाडु सरकार की दलील को भी देश की सबसे बड़ी अदालत ने सही माना है. तमिलनाडु सरकार की दलील है कि TASMAC केस में ईडी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रहा है. आरोप ये भी है कि ईडी ने महिला कर्मचारियों और TASMAC के अधिकारियों का उत्पीड़न किया, और तलाशी के दौरान लंबे समय तक हिरासत में रखा. कर्मचारियों के फोन और पर्सनल डिवाइस जब्त कर लिये गये, जो उनकी निजता और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. TASMAC की ओर से पेश सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि ईडी ने TASMAC अधिकारियों के फोन की क्लोन की गई प्रतियां ली हैं, जो उनकी निजता और गोपनीयता का उल्लंघन है,
चीफ जस्टिस बीआर गवई ने ईडी के वकील एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से सवाल किया कि कॉर्पोरेशन के खिलाफ अपराध कैसे बनता है?
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, आप व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज कर सकते हैं, लेकिन कॉर्पोरेशन के खिलाफ आपराधिक मामला? मिस्टर राजू, आपका ईडी सभी सीमाएं पार कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा, जब राज्य सरकार की जांच एजेंसी इस मामले में कार्रवाई कर रही है, तो ईडी को दखल देने की जरूरत नहीं है.
जब ईडी की जांच और कार्रवाई पर सवाल उठे
तमिलनाडु सरकार ने TASMAC पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी के खिलाफ अपनी याचिका में कहा है, ये केंद्रीय एजेंसी के पावर का अतिक्रमण और संविधान का उल्लंघन है. तमिलनाडु सरकार ने ईडी पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाते हुए छापेमारी को अवैध करार दिया है.
डीएमके नेता एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर राजनीतिक मकसद से सूबे की छवि खराब करने के लिए ईडी का बेजा इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. तमिलनाडु सरकार का इल्जाम है कि ये सब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए किया गया है.
हेमंत सोरेन केस: झारखंड हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन को जमानत देते हुए कहा था, प्रथम दृष्टया सबूतों को देखते हुए ये मानने के कारण हैं कि हेमंत सोरेन कथित अपराधों के लिए दोषी नहीं हैं. किसी भी रजिस्टर/रेवेन्यू रिकॉर्ड में उक्त जमीन के अधिग्रहण और कब्जे में प्रत्यक्ष भागीदारी का कोई जिक्र नहीं है.
संजय राउत केस: संजय राउत को जमानत देते वक्त मुंबई की सत्र अदालत ने ईडी की मंशा पर भी सवाल उठाये थे. कोर्ट का कहना था कि पूरे मामले को देखने पर साफ होता है कि अवैध तरीके से गिरफ्तार किया गया है. अदालत का कहना था, जरूरी होने पर गिरफ्तारी की कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन ईडी की ओर से पीएमएलए की धारा 19 के तहत की गई कार्रवाई अवैध है. अदालत ने माना था कि संजय राउत को बेवजह गिरफ्तार किया गया था, ये तथ्य हैरान करने वाला है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से 2022 के बीच 121 बड़े राजनेताओं से जुड़े मामलों की जाच ईडी कर रही है. इन नेताओं में से 115 नेता विपक्षी दलों के हैं - मतलब, 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं. और वैसे ही 2014 से पहले 2004 तक के मामलों पर गौर करने पर मालूम हुआ कि दस साल में ईडी ने 26 नेताओं की जांच की, जिनमें 13 विपक्षी दलों के नेता थे, जब केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार हुआ करती थी.