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भारत को इंडिया न बोलने देने के संघ के स्टैंड में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है या राजनीति?

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की सलाह है कि भारत को 'इंडिया' नहीं कहना चाहिए, क्योंकि इससे देश की सांस्कृतिक पहचान कमजोर होती है. संघ असल में भारत को शक्ति संपन्न बनाकर दुनिया में एक महाशक्ति के रूप में सम्मान दिलाने का पक्षधर है.

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भारत को भारत ही बनाये रखना चाहते हैं, इंडिया नहीं. (Photo: PTI)
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भारत को भारत ही बनाये रखना चाहते हैं, इंडिया नहीं. (Photo: PTI)

भारत को दुनिया भर में ताकतवर बनाने के लिए मोहन भागवत ने कई सुझाव दिये हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक भागवत का कहना है दुनिया शक्ति को ही अहमियत देती है, इसलिए शक्ति संपन्न जरूर होना चाहिये. ऐसा हो, इसलिए भारत का महाशक्ति बनना बहुत जरूरी है, क्योंकि दुनिया तभी बात भी सुनती है. 

मोहन भागवत का कहना है कि भारत के सोने की चिड़िया बने रहने से अब काम नहीं चलने वाला है. दुनिया में भारत को महाशक्ति के रूप में पेश करने के लिए शेर बनना होगा. संघ प्रमुख का ये नजरिया, ऐसे दौर में सामने आया है जब देश की संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा चल रही है. ऑपरेशन सिंदूर सफल रहा है, ऐसा विपक्ष भी मान रहा है. सिर्फ केंद्र की बीजेपी सरकार का ही ये दावा नहीं है.  

और इसी क्रम में मोहन भागवत ने ये भी कहा है कि भारत को इंडिया के रूप में ट्रांसलेट नहीं किया जाना चाहिये. वैसे तो ये आरएसएस के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से मेल भी खाता है, लेकिन क्या कोई राजनीतिक मतलब भी है. 

इंडिया पर भारत को तरजीह देने का पक्षधर संघ

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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ‘भारत’ का अनुवाद न करने की सलाह दी है, क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा हुआ तो भारत अपनी पहचान और दुनिया में जो सम्मान मिला हुआ है, वो खो देगा.

मोहन भागवत समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत का मतलब महज किसी भौगोलिक सीमा में रहना या नागरिकता पा लेना भर नहीं है. कहते हैं,  भारतीयता एक दृष्टिकोण है, जो पूरे जीवन के कल्याण की सोच रखता है. 

संघ प्रमुख कहते हैं, भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है. इसका अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए… ये सच है कि ‘इंडिया दैट इज भारत’ कहा गया है, लेकिन भारत, भारत है… बातचीत, लेखन और भाषण के दौरान, चाहे वो व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक… हमें भारत को भारत ही रखना चाहिए.

समझाते हैं, भारत को भारत ही रहना चाहिए… भारत की पहचान का सम्मान किया जाता है, क्योंकि ये भारत है… अगर आप अपनी पहचान खो देते हैं तो चाहे आपके कितने भी अच्छे गुण क्यों न हों… आपको दुनिया में कभी सम्मान या सुरक्षा नहीं मिलेगी… यही मूल सिद्धांत है.

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद या राजनीति

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को ही संघ अपना मूल काम बताता है, जिसमें व्यक्ति निर्माण भी शामिल है. लेकिन राजनीति के लिहाज से देखें तो ये सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कम और राजनीतिक राष्ट्रवाद ज्यादा प्रभावी हो जाता है - और संघ की लाइन पर राजनीति करने वाली बीजेपी का राष्ट्रवाद हाल फिलहाल पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर में नजर आता है. 

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भारत बनाम इंडिया की चर्चा उस वक्त जोर पकड़े हुए थी, जब 2023 में G-20 शिखर सम्मेलन दिल्ली में हुआ था. तब डिनर के लिए भेजे गये निमंत्रण कार्ड पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया था, आमतौर पर ये प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया रहता है. 

तब ये भी चर्चा थी कि संविधान में बदलने के मकसद से फीडबैक लेने की कोशिश हो रही है.

1. इंडिया असल में औपनिवेशिक काल की याद दिलाता है, और भारत उससे मुक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.

2. इंडिया अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक स्थापित नाम है. कारोबार से लेकर कूटनीति तक इंडिया वैश्विक मानस पटल पर रचा बसा नाम है, देश में तो चलेगा लेकिन दुनिया में भारत को नये सिरे से स्थापित करना होगा.

3. भारतीय संविधान में देश का नाम ‘इंडिया दैट इज भारत’ लिखा गया है. मतलब, दोनों नामों को बराबरी का दर्जा और मान्यता देता है.

4. बीते दिनों इंडिया की जगह मान्यता देने से जुड़ी याचिकाएं अदालत तक पहुंची हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट का कहना है कि दोनों नाम संवैधानिक रूप से मान्य हैं.

राष्ट्रवाद पर मोहन भागवत अक्सर ऐसे विचार रखते रहे हैं. बाकी दिनों में तो ये सब संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अभियान का ही हिस्सा लगता है, लेकिन केरल जाकर उनका ये सब कहना उसके आगे की बात लगती है - केरल में अगले ही साल विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. केरल ही नहीं पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी चुनाव होने हैं, जो बीजेपी के एजेंडे में सबसे ऊपर हैं. 
 

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