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BJP का 'देश' और 'तिरंगा' अपनी जगह, बिहार में राहुल गांधी का 'जातिगत राजनीति' पर साफ है फोकस

ये साफ है कि बीजेपी बिहार चुनाव में अपने परंपरागत राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ उतरने जा रही है, लेकिन राहुल गांधी के मिशन में कोई बदलाव नहीं आया है - कांग्रेस नेता का पूरा जोर जातीय राजनीति पर ही नजर आता है.

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बिहार चुनाव में राहुल गांधी को जातीय राजनीति पर सबसे ज्यादा भरोसा क्यों हो गया है?
बिहार चुनाव में राहुल गांधी को जातीय राजनीति पर सबसे ज्यादा भरोसा क्यों हो गया है?

राहुल गांधी बिहार चुनाव को लेकर पहले से ही खासे सक्रिय हैं. ऑपरेशन सिंदूर के कारण चुनावी राजनीति को कुछ दिन होल्ड जरूर करना पड़ा था, लेकिन सीजफायर में तो कांग्रेस को जैसे ग्रीन सिग्नल ही दिख गया है. विधानसभा चुनाव में करीब छह महीने बचे हैं, और बीते पांच महीने में राहुल गांधी बिहार के चौथे दौरे पर हैं. 

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कांग्रेस नेता के हर दौरे का एक खास मकसद होता है, लेकिन कास्ट पॉलिटिक्स कॉमन नजर आता है. जातिगत जनगणना की मुहिम तो वो पहले से ही चलाते आ रहे हैं, अब तो ज्यादा ही जोर लगता है. खासतौर पर दलित राजनीति पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दिया जा रहा है. 

ऐसे दौर में जब बीजेपी को ऑपरेशन सिंदूर के बाद फिर से राष्ट्रवाद की राजनीति का मौका मिला है, राहुल गांधी का फोकस जातिगत राजनीति पर ही टिका हुआ लगता है. दरभंगा में दलित छात्रों से मिलने के लिए छात्रावासों में जाने की कोशिश, और पटना के सिटी मॉल में दलित समाज के लोगों के साथ फिल्म 'फुले' देखने का कार्यक्रम एक ही पॉलिटिकल लाइन पर तो चल रहा है.

और, दलित राजनीति के लिए हर कदम पर प्रशासन से टकराव का भी ताना बाना पहले से ही बुना हुआ लगता है - राहुल गांधी की गाड़ी रोक दी जाती है, तो कुछ देर बैठते हैं और फिर मंजिल की तरफ पैदल ही बढ़ने लगते हैं. रास्ते में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से नोक-झोंक भी होती है, लेकिन राहुल गांधी अपना मतलब बड़े आराम से निकाल लेते हैं - और दिल्ली से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी सोशल मीडिया पर कवर फायरिंग की तरफ पोस्ट भी करती हैं. 

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निशाने पर नीतीश कुमार से लेकर केंद्र की एनडीए सरकार तक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो स्वाभाविक रूप से रहते हैं - और बड़े जोश के साथ राहुल गांधी समझाते हैं कि कैसे दबाव में आकर बीजेपी की सरकार जातिगत जनगणना के लिए तैयार हुई है.  

क्या कांग्रेस बिहार की राजनीतिक नब्ज पकड़ चुकी है?

बिहार की राजनीति में राहुल गांधी जिस तरह से कदम बढ़ा रहे हैं, उसमें बीजेपी से ज्यादा तो लालू और तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी का ही नुकसान लगता है. 

सवाल है कि क्या राहुल गांधी आरजेडी को भी बीजेपी के बराबर दुश्मन मानने लगे हैं? जैसे दिल्ली में कांग्रेस अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को टार्गेट कर रही थी, बिहार में निशाने पर तेजस्वी यादव ही नजर आ रहे हैं. 

राहुल गांधी के दरभंगा पहुंचने से पहले ही कांग्रेस कार्यकर्ता और पुलिस प्रशासन आमने-सामने आ गये थे. राहुल दलित छात्रों से मिलने हॉस्टल जाना चाहते थे, लेकिन वहां जाकर बातचीत की परमिशन नहीं मिली. 

बाद में राहुल गांधी के शिक्षा न्याय संवाद के लिए दरभंगा के टाउन हॉल में अनुमति दे दी गई, लेकिन वो टाउनहॉल जाने के बजाय पैदल ही हॉस्टल की तरफ बढ़ चले. हालांकि, हॉस्टल के अंदर नहीं जा पाये. 

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छात्रों से मुखातिब राहुल गांधी कह रहे थे, 90 फीसदी आबादी के लिए देश में कोई रास्ता नहीं है… सीनियर ब्यूरोक्रेसी में आपके लोग जीरो, डॉक्टरी पेशे में आपके कितने लोग… जीरो… एजुकेशन सिस्टम में आपके कितने लोग, जीरो… मेडिकल सिस्टम के मालिकों को देखो तो, जीरो.

और वैसे ही, राहुल गांधी बोले, मनरेगा की लिस्ट देखो तो सारे के सारे लोग आपके हैं… मजदूरों की लिस्ट निकालो तो आपके लोगों से भरी पड़ी है… सारा का सारा पैसा और ठेकेदारी 8 से 10 प्रतिशत लोगों के हाथों में जाता है.

राहुल गांधी ने छात्रों को बताया, आपको इधर-उधर की बात सुनाकर ध्यान भटका दिया जाता है, लेकिन आपको एक साथ खड़ा होना है. बिहार की पुलिस ने मुझे रोकने की कोशिश की, लेकिन मुझे नहीं रोक पाई… क्योंकि आप सभी की शक्ति मेरे पीछे है… दुनिया की कोई शक्ति नहीं रोक पाएगी.

ये जरूर है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की भी सीटें आरजेडी के बराबर ही आई हैं, लेकिन उसके लिए निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को भी कांग्रेस के कोटे में ही जोड़ना होगा. वैसे चुनावों में पप्पू यादव कांग्रेस के साथ तो खड़े हैं ही. 

लेकिन राहुल गांधी को देश नेशनलिज्म भरे माहौल में बिहार की राजनीति में जातीय प्रभाव ज्यादा क्यों लग रहा है?

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ये जानते हुए भी कि बीजेपी बिहार चुनाव में अपने परंपरागत राष्ट्रवाद के साथ उतरने जा रही है, राहुल गांधी के मिशन में कोई बदलाव नहीं आ रहा है. बीजेपी के लिहाज से देखें तो दस्तूर तो है ही, अब तो मौका भी है. 

क्या राहुल गांधी को छात्रों से मिलने नहीं दिया जा रहा है?

जैसे राहुल गांधी लोकसभा में बोलने न दिये जाने के आरोप लगाते हैं, बिहार दौरे में भी छात्रों से बात न करने देने का इल्जाम लगाया है. 

लेकिन दरभंगा DM राजीव रौशन कहते हैं, जगह बदलने में किसी मंत्री या अन्य व्यक्ति की भूमिका नहीं है… देश में कहीं भी हॉस्टल में कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी जाती है. उनके अनुरोध पर ही टाउन हॉल में कार्यक्रम की परमिशन दी गई है. 

JDU नेता संजय झा का भी ऐसा ही कहना है, हॉस्टल में जाकर कोई पॉलिटिकल मीटिंग होती है क्या? टाउन हॉल में परमिशन दी गई थी… किसी कॉलेज के हॉस्टल में इस तरह के कार्यक्रम की परमिशन नहीं दी जाती… बिहार में किसी को कोई रोक नहीं है, लेकिन राहुल गांधी राजनीति करने आये थे.

बेशक बिहार चुनाव में जातीय राजनीति का दबदबा रहता है, लेकिन क्या बीजेपी जाति जनगणना का क्रेडिट नहीं लेगी? ये ठीक है कि लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी अयोध्या भी हार गई, और समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीत ली - लेकिन 2019 में बीजेपी के राष्ट्रवाद का एजेंडा तो सफल ही रहा. 
 

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