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दो बार खारिज हो चुके बेअदबी बिल को भगवंत मान फिर क्‍यों लेकर आए हैं?

पंजाब में धार्मिक ग्रंथों का अपमान को रोकने के लिए भगवंत मान सरकार ने सख्त कानून की पहल की है. प्रस्तावित कानून में 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. लुधियाना उपचुनाव जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल 2027 के चुनाव की तैयारियों में जुट गये हैं, और ये बिल भी कैंपेन का ही एक हिस्सा है.

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पंजाब विधानसभा में लाया गया बेअदबी बिल, दरअसल, अरविंद केजरीवाल की चुनावी तैयारियों का हिस्सा है.
पंजाब विधानसभा में लाया गया बेअदबी बिल, दरअसल, अरविंद केजरीवाल की चुनावी तैयारियों का हिस्सा है.

पंजाब में बेअदबी का मामला बड़ा संवेदनशील मुद्दा रहा है. 2022 के पंजाब चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ये मुद्दा जोर शोर से उठाया था. अब जबकि अरविंद केजरीवाल लुधियाना उपचुनाव पंजाब में कैंपेन शुरू कर चुके हैं, ये बिल चुनावी वादा पूरा करने की कोशिश के रूप में सामने आई है. और, इसी क्रम में पंजाब विधानसभा में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी को लेकर बिल पेश किया गया है. 

बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक, अगर कोई किसी भी धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी यानी अपमान करता है तो उसे 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. प्रस्तावित कानून में धार्मिक ग्रंथों में सिखों के गुरु ग्रंथ साहिब के साथ साथ हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता, मुस्लिमों के कुरान शरीफ और ईसाई धर्म के बाइबल को भी शामिल किया गया है.

पंजाब की भगवंत मान सरकार का कहना है कि बेअदबी विरोधी कानून का मकसद धार्मिक ग्रंथों के जानबूझकर अपमान करने वालों पर शिकंजा कसना, और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिशों को रोकना है. किसी भी पवित्र ग्रंथ या उसके हिस्से का अपमान, अनादर, क्षति पहुंचाना, नष्ट करना, विकृत करना, कुरूप बनाना, रंग बिगाड़ना, सामग्री निकाल देना, सड़ाना, जलाना, तोड़ना या फाड़ना - ऐसा कोई भी कृत्य बेअदबी माना जाएगा.

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ऐसा भी नहीं कि पंजाब में इस तरह का कानून बनाने का प्रयास पहली बार हो रहा है. असल बात है कि ये तीसरी कोशिश है - और ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 2027 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कोई फायदा भी होगा?

बेअदबी विरोधी विधेयक - 2025

धार्मिक भावनाओं की संवेदनशीलता को देखते हुए कानूनी प्रावधान पहले से ही हैं. IPC में पहले 295 धारा थी, जिसे 2014 में संशोधन करके 295A बनाया गया. BNS में भी ऐसे प्रावधान हैं. 

मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रवक्ता का इसके बारे में कहना था, भारतीय न्याय संहिता की धारा 298, 299 और 300 ऐसे ही मामलों के लिए बनाई गई हैं, लेकिन वे ऐसी घटनाओं को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए कठोर सजा का प्रस्ताव नहीं कर पातीं.

1. अगर कोई किसी भी धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी करता है, तो उसे प्रस्तावित कानून के तहत 10 साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है. और, 5 से 10 लाख रुपये तक जुर्माना भी हो सकता है.

2. बेअदबी का आरोपी अगर कोई नाबालिग है, या दिव्यांग है, तो माता-पिता को भी पक्षकार बनाया जा सकता है. माता-पिता या अभिभावक जानबूझकर नाबालिग बच्चे या मानसिक विक्षिप्त-दिव्यांग व्यक्ति को संभाल नहीं पाते, उनको भी कानून के तहत आरोपी बनाया जा सकता है.

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3. कानून के दायरे में ग्रंथी, रागी, सेवादार, ढाडी, पंडित, पुजारी, मौलवी या पादरी भी धार्मिक क्रियाकलापों के लिए जिम्मेदार बनाया गया है. अगर ये लोग भी बेअदबी के दोषी पाये जाते हैं, तो उनको भी कानून के तहत सजा मिलेगी.

4. अगर किसी व्यक्ति को सबसे कड़ी सजा मिलती है, या वो जुर्माना नहीं भर पाता, तो उसे पैरोल या फरलो नहीं मिलेगा. अगर कोई व्यक्ति दूसरी बार या बार-बार बेअदबी करता है, तो उसे उम्रकैद या पूरी जिंदगी जेल में बितानी पड़ सकती है.

पहले के विधेयकों को केंद्र से नहीं मिली हरी झंडी

पंजाब में बेअदबी के खिलाफ पहले भी कानून बनाने के प्रयास हुए हैं. तब भी जब अकाली दल और बीजेपी की गठबंधन सरकार थी, और तब भी जब कांग्रेस सत्ता में थी.

2016 में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने ऐसा कानून बनाया था, जिसमें उम्रकैद की सजा का प्रावधान था. लेकिन, केंद्र सरकार ने लौटा दिया. ऐसे ही 2018 में, कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने भी कानून को अमली जामा पहनाने की कोशिश की थी, लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिल सकी. 

ये AAP के चुनावी वादे का हिस्सा है

पंजाब में पहले से ही बेअदबी की घटनाएं होती रही हैं, और उनकी संख्या भी बढ़ी है. और ये तब हो रहा है, जब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की कड़ी निगरानी होती है. निश्चित तौर पर ये कानून बना तो SGPC के लिए मददगार साबित होगा. वैसे कानून तो सिखों के साथ साथ हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्मों के लिए भी होगा. लेकिन, मानवाधिकार संगठन कानून पर सवाल उठा रहे हैं. 

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बिल लाये जाने से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सर्व धर्म बेअदबी रोक्को कानून मोर्चा के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी. मोर्चे के कार्यकर्ता गुरजीत सिंह खालसा पिछले 275 दिनों से एक 400 फुट ऊंचे टेलीकॉम टावर पर चढ़कर बेअदबी विरोधी कानून की मांग को लेकर धरना दे रहे हैं.

हालांकि, मानवाधिकार संगठनों ने कानून के बेजा इस्तेमाल की आशंका जताई है. वे पाकिस्तान में ईश निंदा कानून की मिसाल देते हुए कह रहे हैं कि कट्टरपंथी इसका फायदा उठाएंगे. सवाल ये भी उठाया जा रहा है कि बिल में सिर्फ चार ग्रंथों को ही क्यों शामिल किया गया है, पारसी, जैन और बाकी धर्मों को प्रस्तावित कानून के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है?

2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी भी एक बड़ा मुद्दा बना था. आम आदमी पार्टी ने तत्कालीन कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार पर बेअदबी के मामलों में नरम रवैया बनाने का आरोप लगाया, और वादा किया था कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो बेअदबी को लेकर कड़ा कानून लाया जाएगा. AAP की भगवंत मान सरकार का आधा कार्यकाल बीत जाने के बाद ये बिल लाया गया है, जाहिर है नजर आने वाले विधानसभा चुनाव पर भी है. 

अव्वल तो कानून तभी बनेगा जब केंद्र सरकार की मुहर के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलेगी, लेकिन चुनावों में फायदा तो उठाया ही जा सकता है. अरविंद केजरीवाल अपनी पॉलिटिकल स्टाइल में केंद्र को कठघरे में खड़ा करके बोल ही सकते हैं कि बीजेपी ने कानून नहीं बनने दिया - फिर भी ये सवाल खत्म नहीं होता कि क्या आम आदमी पार्टी को इस कोशिश का फायदा मिल पाएगा?

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