बिहार में नई सरकार के गठन के साथ ही विपक्ष भी एक्टिव हो गया है. जब नीतीश कुमार एनडीए विधायकों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तब प्रशांत किशोर जन सुराज पार्टी की हार के लिए प्रायश्चित के तौर पर उपवास पर बैठ गए थे.
अपने एक दिन के मौन उपवास के बारे में प्रशांत किशोर का कहना है कि ये कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि 'आत्मिक प्रायश्चित' है. चुनाव नतीजे आने के बाद प्रशांत किशोर ने प्रेस कांफ्रेंस में ही एक दिन के अपने मौन उपवास की घोषणा की थी.
बिहार में विपक्ष की नेता की भूमिका में तो तेजस्वी यादव ही होंगे, लेकिन बाहर लगता है प्रशांत किशोर ही मैदान में बने रहना चाहते हैं. प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत किशोर ने कहा भी था कि वे लोग विधानसभा में नहीं हैं, लेकिन बाहर से ही बिहार की जनता की आवाज बने रहने की कोशिश करेंगे.
मैदान में उतरे प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर ने अपने मौन उपवास के लिए वही दिन चुना जब नीतीश कुमार को नए सिरे से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी थी. जगह भी वही चुनी है, जहां से तीन साल पहले बिहार यात्रा शुरू की थी. प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर, 2022 को पश्चिम चंपारण में भितिहरवा के गांधी आश्रम से जन सुराज अभियान शुरू किया था. और, लंबी बिहार यात्रा के बाद 2 अक्टूबर, 2024 को जन सुराज पार्टी की स्थापना की थी.
जन सुराज पार्टी ने पहले ही चुनाव में ध्यान खींचा था. पिछले साल बिहार की चार विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में जन सुराज पार्टी को 10 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी 3.5 फीसदी वोट ही पा सकी - पूरे बिहार से सीट तो एक भी नहीं मिली. हां, करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर जन सुराज पार्टी की हार-जीत में भूमिका जरूर मानी गई.
चुनाव से पहले प्रशांत किशोर के एक बयान को लेकर राजनीति से उनके संन्यास को लेकर सवाल जरूर उठ रहे थे, लेकिन प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने अपना इरादा साफ कर दिया. दरअसल, प्रशांत किशोर ने कहा था कि अगर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को 25 से ज्यादा सीटें मिलीं, तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे. जेडीयू की बिहार चुनाव में 85 सीटें आई हैं.
प्रशांत किशोर हार के लिए प्रायश्चित जरूर कर रहे हैं, लेकिन बिहार न छोड़ने का संकल्प लिया है. वो एनडीए नेताओं पर लगाए अपने भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी कायम हैं, और कहा है कि लोगों के बीच भी जाएंगे और कोर्ट भी जा सकते हैं. प्रशांत किशोर ने अपनी तरफ से 'दागी' बताए गए नेताओं को मंत्री न बनाए जाने की सलाह दी थी - लेकिन नीतीश कुमार ने सम्राट चौधरी, अशोक चौधरी, दिलीप जायसवाल और मंगल पांडेय सभी को अपनी कैबिनेट में शामिल करके प्रशांत किशोर को अपनी तरफ से जवाब दे दिया है.
हो सकता है, प्रशांत किशोर भी ऐसा ही मौका चाहते हों. हो सकता है, मंत्री न बनाने की सलाह या अपील नहीं बल्कि राजनीतिक उकसावा हो. अगर वास्तव में ऐसा है, तो प्रशांत किशोर अपनी मुहिम में कुछ तो सफल हो ही गए हैं. उनके निशाने पर आए नेताओं के मंत्री बन जाने के बाद तो प्रशांत किशोर को जनता के बीच और कोर्ट जाने का भी बहाना मिल गया है - नतीजा कुछ निकले या न निकले, राजनीति का मौका तो मिलेगा ही.
प्रशांत किशोर की रणनीति देखकर तो यही लगता है कि तेजस्वी यादव के मोर्चा संभालने से पहले ही वो मैदान में उतर गए हैं - और कहीं भी शुरुआत करने वाले को फायदा तो ज्यादा ही होता है.
तेजस्वी यादव अभी तैयारी कर रहे हैं
एक तरफ मौन व्रत से प्रशांत किशोर ने अपनी मुहिम के नये चरण की शुरुआत कर दी है, और दूसरी तरफ तेजस्वी यादव लगता है अभी घर के झगड़े से ही नहीं उबर पाए हैं. वैसे नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की नई सरकार बनने पर तेजस्वी यादव ने बधाई की रस्म अदा कर दी है. बधाई संदेश में तेजस्वी यादव ने लिखा है, 'आशा है नई सरकार जिम्मेदारीपूर्ण लोगों की आशाओं, और अपेक्षाओं पर खरा उतर, अपने वादों एवं घोषणाओं को पूरा करेगी... तथा बिहारवासियों के जीवन में सकारात्मक व गुणात्मक परिवर्तन लाएगी.'
चुनाव नतीजे आने के बाद आरजेडी नेताओं की बैठक में तेजस्वी यादव ने भावुक होते हुए किसी और को नेता चुन लेने की सलाह दी थी. लेकिन, तभी लालू यादव ने दखल देते हुए नेताओं को समझाया कि तेजस्वी ने मुश्किल वक्त में राष्ट्रीय जनता दल को संभाला है. लेकिन जल्दी ही वो मान भी गए, और आरजेडी विधायक दल का नेता भी चुन लिया गया.
उसी बैठक में लालू यादव ने दावा किया था कि वो मौजूद हैं और परिवार का झगड़ा खुद ही सुलझाएंगे. लालू यादव की बेटी रोहिणी यादव ने तेजस्वी यादव और उनके सहयोगी संजय यादव पर सवाल उठाते हुए परिवार से ही नाता तोड़ लिया है. लेकिन, लगता नहीं कि तेजस्वी यादव अब भी संजय यादव के मामले में कोई समझौता करने वाले हैं. तेजस्वी यादव का कहना है, संजय यादव ने पार्टी के लिए जो मेहनत की है, उसे दूसरे लोग नहीं जानते हैं... उन्होंने जितनी मेहनत की है वो हम जानते हैं.
अच्छी बात ये है कि आरजेडी को 25 विधानसभा सीटें मिल गई हैं, जिससे नेता प्रतिपक्ष का पद पार्टी के पास ही रहेगा. एक भी सीट कम होती तो वही हाल होता जो 2014 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस का हाल हुआ था. अभी तो राहुल गांधी ही लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं.
जन सुराज मुहिम से तेजस्वी यादव को जो नुकसान हुआ वो तो हुआ ही, अब मैदान में भी प्रशांत किशोर चुनौती खड़ा करने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं - प्रशांत किशोर का इरादा तो लगता है विपक्ष की राजनीति में भी तेजस्वी को चैन से नहीं रहने देना है.