अवधेश प्रसाद लोकसभा चुनाव 2024 से पहले मिल्कीपुर से ही विधायक हुआ करते थे. फैजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीत जाने के बाद अब वो अयोध्या के सांसद के रूप में मशहूर हो गये हैं - अखिलेश यादव के साथ साथ नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी अवधेश प्रसाद को राष्ट्रीय नेता के रूप में पेश कर रहे हैं, और यहां तक दावा करने लगे हैं कि बीजेपी को गुजरात में भी हराएंगे.
अब तो ऐसा लगता है मिल्कीपुर विधानसभा सीट की लड़ाई फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र से भी ज्यादा अहम हो गई है. समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव की कोशिश है कि मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हर हाल में कब्जा बरकरार रखें, और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रयास है कि चाहे जैसे भी मुमकिन हो मिल्कीपुर की सीट बीजेपी की झोली में डाल दें. असल में, लोकसभा चुनाव में बीजेपी के समाजवादी पार्टी से पिछड़ जाने के बाद से योगी आदित्यनाथ अपनी ही पार्टी में निशाने पर आ गये हैं. लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें जीत ली थी, जबकि बीजेपी 33 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी.
अयोध्या में बीजेपी की हार इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गई, क्योंकि ये सब तब हुआ जब राम मंदिर का उद्घाटन हुआ है. जिस अयोध्या आंदोलन के बूते बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई, वहां मंदिर बनते ही ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी को लोकसभा चुनाव में शिकस्त झेलनी पड़ी? चाहे जितने भी कारण बताये जा रहे हों, लेकिन बीजेपी के लिए भी ये सबसे बड़ा सवाल है.
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ये चर्चा भी चल पड़ी है कि धर्म की राजनीति पर कास्ट पॉलिटिक्स हावी होने लगी है. मिल्कीपुर सीट पर फिर से लड़ाई, धर्म बनाम जाति की होती जा रही है. आखिर योगी आदित्यनाथ के ये बहस चलाने की जरूरत क्यों पड़ रही है कि बंटेंगे तो कटेंगे?
मिल्कीपुर उपचुनाव महत्वपूर्ण क्यों?
मिल्कीपुर का इतिहास देखें तो सबसे ज्यादा बार समाजवादी पार्टी ही जीती है. समाजवादी पार्टी के हिस्से में मिल्कीपुर सीट 6 बार आई है, जिसमें एक बार 2002 में आनंद सेन यादव भी शामिल हैं. खास बात ये है कि आनंद सेन यादव काफी दिनों से नाराज चल रहे थे, और हालत ये हो गई थी कि लोकसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद के कैंपेन से भी दूरी बना ली थी - मिल्कीपुर उपचुनाव में अखिलेश यादव के लिए पहली चुनौती आनंद सेन यादव की नाराजगी दूर करना भी था, और इस मिशन में वो कामयाब हो गये हैं.
आनंद सेन यादव 2007 में बीएसपी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन बाद में समाजवादी पार्टी में लौट आये. आनंद सेन यादव के पिता मित्रसेन यादव अकेले ही 5 बार मिल्कीपुर से विधायक रहे हैं, जिसमें चार बार सीपीआई की टिकट पर और आखिरी बार 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर.
अगर बीजेपी की बात करें तो तीन बार जीत मिली है, जिसमें पहली बार 1969 में भारतीय जनसंघ के रूप में, और आखिरी बार 2017 में. पिछली बार यानी 2022 में बीजेपी के बाबा गोरखनाथ समाजवादी पार्टी अवधेश प्रसाद से चुनाव हार गये थे. अब अवधेश प्रसाद के इस्तीफे की वजह से ही मिल्कीपुर में उपचुनाव हो रहे हैं.
बीजेपी कैसे जुटी है मिल्कीपुर के मैदान में?
ये कहना तो मुश्किल है कि मिल्कीपुर में जीत सुनिश्चित करने का दबाव बीजेपी पर ज्यादा है, या समाजवादी पार्टी पर - लेकिन ये तो साफ तौर पर नजर आ रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी कोशिशों में कोई कसर बाकी नहीं रखी है.
योगी आदित्यनाथ ने खुद तो कमान संभाल ही रखी है, चार-चार मंत्रियों की भी ड्यूटी लगा रखी है. बहुत पहले ही यूपी की सभी 10 सीटों के लिए योगी आदित्यनाथ की तरफ से मंत्रियों की सुपर-30 टीम बनाये जाने की खबर आई थी, जिसमें दोनो में से किसी भी डिप्टी सीएम को जगह नहीं मिली है - वैसे अब केशव प्रसाद मौर्य के सुर पूरी तरह बदल गये हैं.
मिल्कीपुर में बीजेपी सरकार के जिन मंत्रियों की ड्यूटी लगी है, वे हैं - सूर्य प्रताप शाही, मयंकेश्वर शरण सिंह, गिरीश यादव और सतीश शर्मा. देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ ने भूमिहार, ठाकुर, यादव और ब्राह्मण समाज सभी के मंत्रियों को मोर्चे पर उतार दिया है, जबकि मिल्कीपुर सुरक्षित सीट है. तभी तो उम्मीदवार के बारे में चर्चा है कि बीजेपी उम्मीदवार भी अवधेश प्रसाद की बिरादरी का ही हो सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, मिल्कीपुर विधानसभा में 3.57 लाख वोटर हैं, जिनमें सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति से हैं. उसके बाद ओबीसी तबके के वोटर हैं. अनुसूचित जाति से पासी समाज का वोट सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी को मिलता रहा है, और साथ में यादव-मुस्लिम वोटों के समीकरण से समाजवादी पार्टी बार बार बाजी मार ले जाती है - और इसी कारण बीजेपी भी पासी समाज के उम्मीदवार पर गंभीरता से विचार कर रही है.
अखिलेश यादव कैसे बचाएंगे मिल्कीपुर का गढ़?
आनंद सेन यादव को मनाने के बाद अखिलेश यादव निश्चित तौर पर काफी राहत महसूस कर रहे होंगे. अखिलेश यादव ने अयोध्या के समाजवादी पार्टी नेताओं की बैठक बुलाकर कहा कि अयोध्या की मिल्कीपुर सीट को हर हाल में जीतना है. खास बात ये रही कि बैठक में आनंद सेन यादव भी मौजूद थे.
मिल्कीपुर के लिए अजीत प्रसाद का नाम आगे बढ़ाते हुए अखिलेश यादव ने सभी नेताओं से उनकी जीत पक्की करने के लिए जुट जाने की अपील की. ये आनंद सेन यादव ही बताये जाते हैं जो अजीत प्रसाद की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे. अजीत प्रसाद कोई और नहीं बल्कि अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद के ही बेटे हैं - और अवधेश प्रसाद को ही मिल्कीपुर जिताने की जिम्मेदारी अखिलेश यादव ने दे रखी है.
अखिलेश यादव ने आनंद सेन यादव के साथ साथ अजीत प्रसाद के बाकी विरोधियों को भी मना लिया है. अखिलेश यादव के सामने ही आनंद सेन यादव ने मंच पर पहुंच कर कहा कि वो मिल्कीपुर से समाजवादी पार्टी को जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. माना जाता है कि आनंद सेन यादव की नाराजगी के कारण ही उनके प्रभाव वाले इलाकों में लोकसभा चुनाव के दौरान अवधेश प्रसाद को काफी कम वोट मिल पाये थे.
मिल्कीपुर में मायावती की क्या भूमिका होगी?
बीजेपी और समाजवादी पार्टी का आमने सामने होने की वजह साफ है, लेकिन मायावती भी बीएसपी को मिल्कीपुर सहित सभी सीटों पर चुनाव लड़ा रही हैं. ये बात इसलिए भी खास हो जाती है क्योंकि मायावती आम तौर पर उपचुनावों से दूर ही रहती आई हैं.
उपचुनावों में मायावती की दिलचस्पी की एक बड़ी वजह नगीना से चुनाव जीत कर चंद्रशेखर आजाद का संसद पहुंच जाना भी है. तभी तो मायावती ने लोकसभा चुनाव के नतीजे आते ही मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद का वनवास एक झटके में वापस ले लिया और पुरानी जिम्मेदारियों सहित बहाल कर दिया था.
मिल्कीपुर से मायावती ने रामगोपाल कोरी को बीएसपी का उम्मीदवार बनाया है. रामगोपाल कोरी 2017 में भी बीएसपी के टिकट पर मिल्कीपुर से चुनाव लड़ चुके हैं, जब वो तीसरे स्थान पर रहे थे.
2017 में रामगोपाल कोरी को करीब 50 हजार वोट मिले थे, और मौजूदा माहौल में बहुत कुछ हासिल कर पाएंगे, ये भी नहीं लगता. लोकसभा चुनाव में बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिल पाई और वोट शेयर भी घटकर सिंगल नंबर में पहुंच चुका है. यूपी विधानसभा में बीएसपी के पास सिर्फ एक विधायक है - ये तो नतीजे आने पर ही साफ हो पाएगा कि रामगोपाल कोरी की मिल्कीपुर उपचुनाव में क्या भूमिका रही?
और सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि अयोध्या क्षेत्र की राजनीति में धर्म भारी पड़ेगा या जातीय राजनीति? और कुछ हो न हो, मिल्कीपुर का रिजल्ट देश में जातीय राजनीति को भी नई राह दिखाएगा.