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उपराष्ट्रपति को भारत माता के नमन के लिए सफाई क्यों देनी पड़ी? क्या है डीएमके की राजनीति

तमिलनाडु में 2026 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. डीएमके फिर से सत्ता में आने के लिए बीजेपी को टार्गेट कर रही है. हालांकि अभी पिछले विधानसभा चुनाव तक बीजेपी अन्य पार्टियों के मुकाबले बहुत पीछे थी.

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उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन  (Photo: PTI)
उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन (Photo: PTI)

तमिलनाडु में 2026 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. सत्ताधारी दल डीएमके जिस तरह भारतीय जनता पार्टी को हर मुद्दे पर आंख मूंदकर लपेट रहा है उससे कई तरह के संदेश मिल रहे हैं. द्रमुक को भारत माता की तस्वीर को नमन करना भी गंवारा नहीं है. काशी तमिल संगमम के दौरान उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन ने भारत माता की तस्वीर का सम्मान करते हुए उसका नमन किया.

मंगलवार को उपराष्ट्रपति ने  कहा कि भारत माता को नमन करना किसी को भी तमिल-विरोधी नहीं बनाता है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि राष्ट्रीय गौरव और तमिल पहचान एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं.उन्होंने कहा, हम रोज़ इस पवित्र भारत माता के चरणों में शीश नवाते हैं और कहते हैं—‘यह राष्ट्र समृद्ध हो’. क्या इससे हम तमिल-विरोधी हो जाते हैं? नहीं. अगर राष्ट्र एक आंख है, तो दूसरी आंख हमारी मातृभाषा तमिल है. इन्हें कौन अलग कर सकता है? सवाल यह उठता है कि भारत माता की मूर्ति के नमन करने पर सफाई करने की नौवत क्यों आ गई  दूसरा क्या डीएमके भारत माता का विरोध करता है. एक सवाल यह भी है कि क्या डीएमके को आने वाले विधानसभा चुनावों में इस प्रकरण में राजनीतिक लाभ की गुंजाइश दिख रही है. 

भारत माता का विरोध डीएमके के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है

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द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) को उपराष्ट्रपति का भारत माता की तस्वीर रास नहीं आती है. पार्टी के विचारक, प्रवक्ता और सहयोगी संगठन इसे उत्तर भारतीय संस्कृति का थोपना और तमिल अस्मिता पर हमला करार देते रहे हैं. DMK की प्रतिक्रिया मुख्य रूप से द्रविड़ विचारधारा से जुड़ी है, जो आर्य-संस्कृत प्रभाव और राष्ट्रीय प्रतीकों (जैसे भारत माता) को उत्तर का थोपना मानती है. 

 दो साल पहले तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले में पुलिस और प्रशासन की टीम ने भाजपा कार्यालय में रखी भारत माता की मूर्ति को हटा दिया था. तमिलनाडु के तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई 2 दिन बाद इस मूर्ति का अनावरण करने वाले थे. मूर्ति हटाने वाले अधिकारियों का कहना है कि मूर्ति बिना प्रशासन की अनुमति के रखी गई थी. वहीं, अन्नामलाई ने कहा था कि DMK की भ्रष्ट सरकार में पार्टी को अपनी जमीन पर भारत माता की मूर्ति लगाने का भी अधिकार नहीं है. 

DMK प्रवक्ता टी.आर.बी. राजा ने एक बयान में कहा था कि काशी तमिल संगमम जैसे कार्यक्रम BJP द्वारा तमिल संस्कृति का राजनीतिक उपयोग है. भारत माता की पूजा 'हिंदुत्व' का प्रतीक है, जो तमिल की स्वतंत्र पहचान को कमजोर करता है. उनका कहना था कि तमिलनाडु में थाई मन्नु (मातृभूमि) या तिरुवल्लुवर जैसे प्रतीक अधिक प्रासंगिक हैं, न कि उत्तर से आया भारत माता जैसे प्रतीक.

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DMK के एक नेता  ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी की कि हमारी तमिल पहचान 'तिरुक्कुरल' और 'संगम साहित्य' में है, न कि किसी 'आर्य' प्रतीक में है. उन्होंने इसे BJP की सांस्कृतिक साम्राज्यवाद करार दिया, जो तमिलनाडु को उत्तर के अधीन दिखाने की कोशिश है.

तमिल साहित्य और तमिल फिल्में भारतीय राष्ट्रीयता की भावना से भरी हुईं हैं

द्रमुक चाहे जो कहती रहे पर तमिल सिनेमा और साहित्य में भारत माता (Bharat Mata) की अवधारणा का चित्रण तमिल अस्मिता और द्रविड़ गौरव के बीच जमकर होता रहा है. तमिल साहित्य और फिल्में मुख्य रूप से तमिल माता (Thamizh Thai) या तिरुवल्लुवर जैसे स्थानीय प्रतीकों पर केंद्रित रहती हैं, लेकिन देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में भारत माता का उल्लेख हमेशा से होता रहा है. 

तमिल साहित्य के महाकवि सुब्रमण्यम भारती (1882-1921) ने भारत माता को तमिल साहित्य में सबसे प्रमुख स्थान दिया. उनकी कविताएं जैसे वंदे मातरम (तमिल में अनुवाद) और भारत देशम में भारत माता को एक मां के रूप में चित्रित किया गया है, जो तमिल भाषा और संस्कृति को भी गले लगाती है.

तमिल फिल्मों में भी मां भारती को प्रमुखता से जगह मिली है. भारती (2000)  सुब्रमण्यम भारती पर आधारित फिल्म में भारत माता को कई दृश्यों में दिखाया गया. भारती (सयाजी शिंदे) के माध्यम से राष्ट्र-प्रेम और भारत माता की पूजा दिखाई गई है. फिल्म ने राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता. 1996 में आई  निर्देशक शंकर की मूवी इंडियन में भारत माता की जय के नारे लगते हैं. अंत में नायक देश के लिए बलिदान देता है, जो भारत माता के प्रति समर्पण दिखाता है.

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1992 में आई रोजा निर्देशक मणि रत्नम की फिल्म में राष्ट्र-प्रेम और भारत माता की भावना भरी हुई है.पुन्निया भूमि (1978)  मदर इंडिया (1957) का तमिल रीमेक, जहां नायिका (राधा) को भारत माता का प्रतीक माना गया है.

क्या DMK को राजनीतिक लाभ दिख रहा है?

भारत माता की अवधारणा (जो 19वीं सदी में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय से उभरी) DMK को आर्य-संस्कृत प्रभाव का प्रतीक लगती है. पार्टी इसे उत्तर का थोपना मानती है, जो तमिल की स्वतंत्र पहचान को कमजोर करता है. DMK 1960 के हिंदी विरोधी आंदोलन से उभरी पार्टी है. तमिलनाडु में तमिल पहचान सबसे बड़ा वोट बैंक है. इस घटना को DMK BJP द्वारा तमिल संस्कृति का अपहरण बताकर लोगों में भावनाएं भड़का सकती है. यह उत्तर vs दक्षिण की पुरानी बहस को फिर से जगा सकता है, जो DMK के लिए फायदेमंद हो सकता है.

2024 लोकसभा में BJP ने तमिलनाडु में 10% से ज्यादा वोट शेयर हासिल किया. काशी तमिल संगमम जैसे कार्यक्रम BJP को तमिलनाडु में घुसने का मौका देते हैं. DMK इसे BJP की सांस्कृतिक साजिश बताकर BJP को एंटी तमिल दिखा सकती है. यह DMK के लिए BJP के विस्तार को रोकने का हथियार बन सकता है.

2026 विधानसभा चुनावों में DMK सत्ता बचाने की कोशिश कर रही है. इस मुद्दे से DMK तमिल रक्षक की छवि मजबूत कर सकती है. पार्टी पहले भी हिंदुत्व vs द्रविड़वाद की बहस से फायदा उठाती रही है. यह विवाद DMK को युवाओं और तमिल राष्ट्रवादियों के बीच समर्थन बढ़ाने का मौका दे सकता है. DMK इस मुद्दे को AIADMK और अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर इस्तेमाल कर सकती है. यह तमिल एकता का नारा बन सकता है, जो BJP के खिलाफ गठबंधन का आधार बन सकता है.

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