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कंगना को थप्पड़ मारने वाली कुलविंदर कौर का 'आक्रोश' समझिये, पंजाब में बहुत गहरे हैं इसके मायने

देश का हर नेता किसी न किसी के बारे में आए दिन जहर उगलता रहता है. अगर हर नेता की बात पर सुरक्षा बलों के जवान इसी तरह रिएक्ट करना शुरू कर दें तो देश की व्यवस्था का क्या होगा? कुलविंदर कौर के थप्पड़ को सपोर्ट करने वाले आग से खेल रहे हैं.

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कंगना रनौत और कुलविंदर कौर
कंगना रनौत और कुलविंदर कौर

बॉलीवुड एक्ट्रेस और नवनिर्वाचित सांसद कंगना रनौत को चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर CISF की महिला कॉन्स्टेबल कुलविंदर कौर का थप्पड़ उतना मारक नहीं है जितना कि इस थप्पड़ को लेकर खुश होने वाले बुद्धिजीवियों की हंसी. यह ट्रेंड देश की शांति के लिए घातक है. हरसिमरत कौर जैसी सम्मानित नेता भी कुलविंदर कौर के इस दुस्साहस का सपोर्ट कर रही हैं. आरोपी सीआईएसफ कांस्टेबल का गुस्सा जायज हो सकता है पर वो देश की ऐसी सुरक्षा एजेंसी का हिस्सा हैं. जहां पर इस तरह के गुस्से को जगह नहीं दी जा सकती है. सीआईएसएफ देश के सभी एयरपोर्ट और मेट्रो जैसी संवेदनशील जगहों की सुरक्षा देखती है. कुलविंदर कौर के गुस्से को वैधता प्रदान करने वाले आग से खेल रहे हैं. इस प्रकार का अतिवाद ही आतंकवाद के लिए जगह बनाता है. शायद यही कारण है कि एक वर्ग यह बात कर रहा है कि इस तरह की विचारधारा को सिर उठाने के पहले कुचल देने की जरूरत है. कंगना की इस बात में जरा भी संदेह नहीं हो सकता कि पंजाब के हालत बेहद नाजुक हैं. एक बार फिर से इस राज्य में जिस तरह अलगाववाद फन फैला रहा है वो कभी भी पंजाब को उसके खूनी दौर में वापस पहुंचा सकता है. 

कंगना और पंजाबी सेलेब्रिटीज़ का झगड़ा पुराना है

एयरपोर्ट पर बोलते हुए सुरक्षाकर्मी कुलविंदर कौर का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वो कह रही हैं कि कंगना ने किसान आंदोलन के समय ये बयान दिया था कि धरने पर बैठने वाली महिलाएं 100-100 रुपए में किसान आंदोलन में शामिल होने आती हैं. कुलविंदर कहती है कि उस वक्त मेरी मां भी किसान आंदोलन में जाती थीं. इसी बात से नाराज होकर उन्होंने कंगना रनौत पर थप्पड़ जड़ा.

दरअसल, कंगना ने देश में हुए किसान आंदोलन के समय आंदोलनकारियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. शायद वो अकेली सेलेब्रेटी थीं जो किसानों के लिए पास तीनों कानूनों का जमकर समर्थन कर रहीं थीं. यही कारण रहा कि कंगना रनौत पंजाबी सिंगरों के निशाने पर थीं. 2022 में ही पंजाबी सिंगर और बॉलीवुड स्टार दलजीत दोसांझ से उनकी सोशल मीडिया साइट एक्स (ट्वीटर) पर जमकर बहस हुई थी. यह बहस कम, तू तड़ाक ज्यादा थी. दोसांझ के फेवर में पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री के साथ बॉलीवुड के कलाकार भी गाहे बगाए आ जाते थे पर कंगना सरकार के फेवर में अकेले लड़ाई लड़ रहीं थीं. शायद उसका ही इनाम था कि उन्हें बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश के मंडी से सांसद का टिकट दिया. कंगना ने तगड़ी लड़ाई में कांग्रेस कैंडिडेट विक्रमादित्य सिंह को चुनाव में हराया. अब वो सांसद बन चुकी हैं. उन्हें जनता ने चुनकर देश की संसद में भेजा है.

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उन पर हमला करने का विचार अचानक तो आया नहीं होगा. जरूर इसके पीछे कुछ लोगों की सजिश रही होगी. नहीं तो 6 जून का दिन ही क्यों चुना गया, जब ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी मनाई जा रही थी. जिन्हें भारत में लोकतंत्र पसंद नहीं है. बगल के देश पाकिस्तान में आज तक लोकतंत्र स्थापित नहीं हो पाया. इसलिए उसे यहां की शांति बहुत खटकती रहती है. इसीलिए पंजाब और कश्मीर को उसने हमेशा अपनी नापाक साजिशों से निशाना बनाया है.

क्यों खतरनाक है कुलविंदर जैसी सोच

बात सिर्फ इसलिए ये शोचनीय हो जाती है क्योंकि कुलविंदर कौर के इस थप्पड़ के सपोर्ट में तमाम सोशल मीडिया एन्फ्लुएंसर ने कमान संभाल ली जो कांग्रेस,समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के लिए दिन रात कैंपेन चलाते रहते हैं. इन्हें लगता है कि कंगना को लगा थप्पड़ मोदी सरकार को थप्पड़ है. ये भूल जाते हैं कि ऐसे ही सिरफिरों ने इंदिरा गांधी को गोलियों से भून दिया था. यह एक सोच है जो बहुत ही खतरनाक है. कुलविंदर कौर कोई सामान्य महिला नहीं थी. वो एक एयरपोर्ट जैसे सेंसिटिव जगह की सुरक्षा में तैनात थी. यह प्रवृति किसी दिन अपोजिट भी हो सकती है. किसी दिन किसान कानूनों का कोई समर्थक या पीएम नरेंद्र मोदी का कोई भक्त भी ऐसी हरकत कर सकता है. हो सकता है कि वह थप्पड़ से आगे भी बढ़ जाए. इस तरह की सोच को बढ़ावा देने वालों को यह भी सोचना चाहिए कि किसान आंदोलनों का समर्थक थप्पड़ से आगे बढ़कर किसी प्लेन की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है. इस तरह का कोई दूसरा कुंठित शख्‍स अगर किसी भड़काने वाले आतंकियों की बात में आ गया तो क्या हो सकता है? क्योंकि ऐसी सोच अतिवादी होती है. जिसका आतंकवाद से बस एक महीन अंतर होता है.

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पंजाब की राजनीति क्यों खतरनाक मोड़ पर जा रही है

पंजाब में संगरूर और खडूर साहब सीट पर दो ऐसी शख्सियतों ने चुनाव लड़ा है जिनका किसान आंदोलन से कहीं से संबंध नहीं है. पर यहां से निर्दलीय की हैसियत से चुनाव लड़ने वाली शख्सियतों के पीछे विभाजनकारी ताकतों के हाथ से इनकार नहीं किया जा सकता है. दोनों ही सीटों पर पंजाब की चारों बड़ी पार्टियों के उम्मीदवार थे. पंजाब की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, कांग्रेस , बीजेपी ही नहीं पंथक मुद्दों और ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने की बात कहकर वोट मांगने वाले शिरोमणि अकाली दल का उम्मीदवार भी यहां से चुनाव लड़ रहा था. पर इन सबके बीच आम जनता ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्‍या करने वाले बेअंत सिंह के पुत्र सरबजीत सिंह को संगरूर से विजयी बनाया तो खडूर साहिब से खलिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह को चुनाव जितवा द‍िता है. ये दोनों ही उम्मीदवार किसी तुक्के में नहीं चुनाव जीते हैं. ये भारी बहुमत के साथ संसद में पहुंचे हैं. जाहिर है कि पंजाब में इस समय का जो माहौल है उसमें यदि कुलविंदर कौर कहीं से विधानसभा चुनाव लड़े तो उसकी जीत सुनिश्चित है. पर यह एक गलत ट्रेड है.

'वारिस पंजाब दे' संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब से करीब दो लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. यह राज्य में सबसे बड़ी जीत तो है ही. दूसरी ओर, सरबजीत सिंह ने फरीदकोट से 70 हजार वोटों से जीत दर्ज की. गुरुवार को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 40वीं बरसी की पूर्व संध्या पर अमृतसर में एकत्र हुए कट्टरपंथी खालिस्तान समर्थक नारे लगाते हुए अमृतपाल की तस्वीरों के साथ नजर आए. सबसे चिंताजनक बात ये है कि अमृतपाल और सरबजीत की जीत दो लोकसभा क्षेत्रों तक सीमित नहीं है. इससे पंजाब में बेचैनी पैदा हो सकती है जिसने दशकों से चले आ रहे उग्रवाद के बाद शांति बहाली के लिए भारी कीमत चुकाई है. कट्टरपंथी आने वाले दिनों में पांच विधानसभा उपचुनाव भी लड़ सकते हैं. 

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सोशल मीडिया पर वायरल हुए अमृतपाल के विवादित चुनावी घोषणापत्र में मीट, शराब और तंबाकू की दुकानों के अलावा सभी नाई की दुकानें और ब्यूटी पार्लर बंद करने का वादा किया गया था. इसमें यह भी कहा गया था कि डेरा, राधा स्वामी सत्संग, निरंकारी मिशन जैसे संप्रदाय, चर्च और मस्जिदों को भी काम नहीं करने दिया जाएगा. इसमें सिख युवकों को आधुनिक हथियारों की ट्रेनिंग देने की भी बात कही गई थी. हालांकि, अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह ने इस बात से इनकार किया है कि अमृतपाल ने ऐसा कोई घोषणापत्र जारी किया है. अमृतपाल के परिवार ने कहा था कि वे 6 जून तक उनकी जीत का जश्न नहीं मनाएंगे. अमृतपाल की मां ने कहा कि लोकसभा चुनाव में उनकी सफलता मारे गए खालिस्तायों को समर्पित है.

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