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SIR का विरोध करते करते अखिलेश यादव सपोर्टर क्यों बन गए?

बिहार चुनाव के नतीजे राजनीतिक स्टैंड और समीकरण सभी पर भारी पड़ रहे हैं. बिहार पहुंचकर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ SIR का विरोध कर चुके अखिलेश यादव अब यूपी में समाजवादी पार्टी नेताओं को फार्म भरवाने की हिदायत दे रहे हैं, और चेतावनी दी गई है कि लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

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क्या बिहार चुनाव के नतीजे ने अखिलेश यादव को SIR पर स्टैंड बदलने पर मजबूर किया है? (Photo: ITG)
क्या बिहार चुनाव के नतीजे ने अखिलेश यादव को SIR पर स्टैंड बदलने पर मजबूर किया है? (Photo: ITG)

SIR का विरोध थमा तो नहीं है, लेकिन मामला पहले जैसा भी नहीं रहा. विपक्ष संसद में चर्चा कराना चाहता है, और सरकार बड़े आराम से वंदे मातरम पर चर्चा कराने जा रही है. संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने कहा था, अगर एसआईआर पर चर्चा नहीं हुई तो संसद चलने नहीं देंगे - लेकिन, अखिलेश यादव के हाव भाव तो अलग ही नजर आ रहे हैं. 

एसआईआर का विरोध करने तो अखिलेश यादव बिहार तक पहुंच गए थे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी लीडर तेजस्वी यादव के साथ बिहार वोटर अधिकार यात्रा में शामिल होकर अखिलेश यादव ने भी विरोध जताया था. लेकिन, जिस तरीके से वो सभी लोगों से एसआईआर कराने की अपील कर रहे हैं, समाजवाजी पार्टी के नेताओं को हिदायत दे रहे हैं - लगता है, जैसे वो एसआईआर का विरोध करते करते सीधे सपोर्टर बन गए हैं. 

आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि अखिलेश यादव अचानक लोगों को एसआईआर करने की सलाह देने लगे हैं, और अपने नेताओं को तो लग रहा है जैसे चेतावनी दे रहे हों. 

SIR पर समाजवादी पार्टी का यू-टर्न

SIR पर भी समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का रुख कोविड वैक्सीन जैसा ही लग रहा है. अखिलेश यादव ने शुरू में कोविड वैक्सीन का भी विरोध किया था. कहने को तो अखिलेश यादव एसआईआर को 'वोट कटवा अभियान' तक बता चुके हैं, लेकिन व्यवहार में चीजें अलग ही दिखाई दे रही हैं. 

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मालूम होता है कि अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं से हर बूथ और ब्लॉक में जाकर काम करने को कह रहे हैं. कहते हैं, वोटों को बचाने के लिए जो भी जतन करना पड़े, किया जाए. फार्म कैसे भरा जाए, उसके लिए ट्रेनिंग भी दी जा रही है. जिला स्तर पर नेताओं और कार्यकर्ताओं की बैठकें हो रही हैं

अब तो एसआईआर फार्म भरवाने के टास्क को चुनाव लड़ने के लिए मिलने वाले टिकट से भी जोड़ दिया गया है. विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट के दावेदार नेताओं से एसआईआर के मामले लोगों के संपर्क में बने रहने को बोल दिया गया है. ग्राउंट लेवल पर काम करके रिपोर्ट भी तैयार करनी है, और ये रिपोर्ट ही उन नेताओं के टिकट की दावेदारी का आधार बनने जा रही है. 

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कहते हैं, ये समय जागने का है, और एक एक वोट बचाने का है. अखिलेश यादव ने सभी विपक्षी दलों के साथ साथ एनडीए के सहयोगी दलों से भी एकजुट होकर बीजेपी के महा-षड्यंत्र का पर्दाफाश करने की अपील की है. 

समाजवादी पार्टी में पीडीए प्रहरी बनाने के सख्त निर्देश दिए गए हैं. और, नेताओं से साफ साफ बोल दिया गया है कि वे गांव गांव जाकर समर्थकों को जागरुक करें, साथ ही फार्म भरने में मदद भी करें. किसी भी तरह की लापरवही न बरतने की हिदायत के साथ ही, साफ साफ बोल दिया गया है कि अगर किसी वजह से वोट कटा, तो संबंधित नेता का टिकट भी कट जाएगा. 

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SIR का विरोध महज राजनीतिक है

केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी का कहना है कि SIR को लेकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के अंदर भय व्याप्त है, और इसीलिए वो लोगों को डराने का काम कर रहे हैं. जयंत चौधरी की आरएलडी और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन भी रहा है, और अखिलेश यादव ने ही जयंत चौधरी को राज्यसभा भी भेजा था. 

जयंत चौधरी कहते हैं, हम सभी को SIR से डरने की जरूरत नहीं है, और हमें अपना वोट सुरक्षित रखने के लिए सहयोग करना चाहिए.

एक और एनडीए नेता उपेंद्र कुशवाहा ने भी अखिलेश यादव के SIR विरोध पर कटाक्ष किया है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है, वो बिहार में एसआईआर को लेकर बहुत क्रांति कर रहे थे, लेकिन प्रदेश की जनता ने उन्हें बता दिया कि ये कोई मुद्दा नहीं है.

उत्तर प्रदेश में चल रहे SIR अभियान के बीच हाल ही में अखिलेश यादव ने खुद फॉर्म भरकर वीडियो शेयर किया था, और कहा था, सभी सच्चे वोटरों को शामिल करें, कोई नाम न कटे.

बिहार चुनाव में SIR को मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश की गई थी, लेकिन चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही मामला फुस्स हो गया. चुनाव के दौरान तो राहुल गांधी को छोड़कर SIR का कोई नाम लेने वाला भी नहीं नजर आ रहा था. ऊपर से बिहार चुनाव के नतीजे तो डराने ही लगे हैं. 

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बात भी सही है. जब वोटर लिस्ट में नाम ही नहीं रहेगा, तो वोट कहां से मिलेगा. और, जब वोट ही नहीं मिलेगा तो राजनीति किस बूते होगी?

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