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अखिलेश यादव! सवाल मस्जिद का नहीं कानून का है. और दुर्गा शक्ति उसी का पालन करवा रही थीं

कल से सब सुन पढ़ और समझ रहे हैं कि 2009 बैच की तेज तर्रार और खनन माफिया की नकेल कसने वाली आईएएस अफसर दुर्गा नागपाल को यूपी सरकार ने सस्पेंड कर दिया. इस बारे में राज्य के युवा (अगर आप सपा समर्थक हैं, तो इसके बाद कई और विशेषण खर्च कर सकते हैं) मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सफाई है कि अधिकारी के एक कदम से सांप्रदायिक तनाव का खतरा हो गया था.

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किसको शह दे रही अखिलेश की मुस्कान
किसको शह दे रही अखिलेश की मुस्कान

कल से सब सुन पढ़ और समझ रहे हैं कि 2009 बैच की तेज तर्रार और ग्रेटर नोएडा में खनन माफिया की नकेल कसने वाली आईएएस अफसर दुर्गा नागपाल को यूपी सरकार ने सस्पेंड कर दिया. इस बारे में राज्य के युवा (अगर आप सपा समर्थक हैं, तो इसके बाद कई और विशेषण खर्च कर सकते हैं) मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सफाई है कि अधिकारी के एक कदम से सांप्रदायिक तनाव का खतरा हो गया था.

ये कदम क्या था, एक अवैध निर्माण को शुरुआती दौर में ढहाया जाना, जिसे सपाई एक संप्रदाय का प्रस्तावित धर्म स्थल बता रहे हैं. खतरा तो वाकई है अखिलेश जी. मगर सांप्रदायिक तनाव का नहीं. खतरा ये है कि अब आपके इस रवैये के बाद कितने काबिल और ईमानदार अधिकारी कितनी मेहनत से और कितने दिन तक काम कर पाएंगे. मगर वे काम करेंगे. क्योंकि वे सत्ता का नहीं उस संविधान का सच बचाने के लिए काम करते हैं, जिसकी उन्होंने शपथ ली है. और रही आपके सरकारी सच या कहें कि डर की बात, तो उसकी कुछ परतें हम उघाड़ देते हैं.

1 क्या सांप्रदायिक सदभाव के नाम पर अवैध निर्माण बनाया जा सकता है

अखिलेश यादव के पिता, सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने पिछले दिनों आज तक को दिए इंटरव्यू में छाती चौड़ी करके कहा था कि 1990 में मेरे सामने सवाल देश की एकता का था, इसलिए मैंने कारसेवकों पर गोली चलवाई. देश चलता है संविधान से और इस संविधान की रक्षा के लिए कानून का राज जरूरी है. कानून ये कहता है कि बिना प्रशासनिक अनुमति के कोई भी निर्माण नहीं हो सकता. मगर हो रहा था. न सिर्फ निर्माण हो रहा था, बल्कि ग्राम सभा की जमीन पर हो रहा था. यानी सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण हो रहा था.दुर्गा शक्ति उसी को रोकने गई थीं. ये उनकी जिम्मेदारी का हिस्सा था. ये जिम्मेदारी आपकी सरकार ने उन्हें दी थी. फिर उन्होंने क्या गलत किया. और अगर आपके सांप्रदायिक सदभाव के तर्क को मानें, तो फिर इस देश में कोई कहीं भी पत्थर गाड़कर, चद्दर बिछाकर सड़क पर, सरकारी जमीन पर कब्जा कर ले और हम देखते रह जाएं. क्योंकि कुछ करेंगे तो सदभाव बिगड़ जाएगा.

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2 जब सिर्फ एक दीवार ही बनी, तो उसे मस्जिद कैसे कह सकते हैं

किसी भी धर्म गुरु से बात करिए. सभी आपको बताएंगे कि जब तक धर्म स्थल पूरी तरह बनकर तैयार नहीं हो जाता और  सभी धार्मिक रीति रिवाज पूरे नहीं हो जाते, तब तक वहां प्रार्थना शुरू नहीं होती. और जब तक यह सब नहीं होता, उसे एक धर्म स्थल नहीं कहा जा सकता. ग्रेटर नोएडा के गांव में मस्जिद बनाने के इरादे से एक दीवार खड़ी की गई थी. दुर्गा शक्ति नागपाल को पता चला कि गांव में अवैध निर्माण हो रहा है, तो वह कार्रवाई करने पहुंचीं. उन्होंने निर्माण में प्रयुक्त मशीनें जब्त कीं और जो अवैध निर्माण हुआ था. यानी कि एक दीवार. उसे ध्वस्त कर दिया. सरकारी कानून भी यही कहता है.इस दौरान गांव वाले मौजूद थे, मगर किसी ने भी विरोध नहीं किया

3 तो फिर दुर्गा शक्ति के कदम से मिर्ची किसको लगी

जो उत्तर प्रदेश में रहते हैं और पिछले दस बरस में 1 बोरी भी मौरंग खरीदने बाजार गए हैं, उनसे पूछिए, जवाब मिलना शुरू हो जाएगा. अर्थशास्त्र के विद्यार्थी चाहें तो इस पर शोध कर सकते हैं कि मुलायम-मायावती-अखिलेश राज में यूपी में मौरंग और रेत की कीमतें किस दर से बढ़ी हैं. प्रदेश में कुछ बड़े घाट हैं, कुछ बड़े खनन इलाके हैं. जहां सत्ता की सरपरस्ती में काम चलता है. बताया जा रहा है कि ग्रेटर नोएडा में ऐसे ही तमाम खनन माफिया दुर्गा शक्ति नागपाल के कोड़े से पिट पिटकर खफा थे. वे किसी तरह से उन्हें यहां से चलता करना चाह रहे थे. इन दिनों अखिलेश दंगों पर सख्त कार्रवाई न करने के दाग को छुडा़ने में लगे हैं. सूबे से बाहर हैं. तो जैसे ही उन्हें खबर मिली की एक अधिकारी ने निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार गिरा दी, तो उन्होंने खुद उनके ही शब्दों में कहें तो ‘सख्त कार्रवाई’ कर दी.मगर अब हर ओर जायज हल्ला मचा है कि ये सख्त नहीं तंत्र की सड़ी हुई और सड़ांध पैदा करने वाले गुंडा बदमाशों की रक्षक कार्रवाई है.

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4 अगर मसला सिर्फ तनाव का था तो सस्पेंड क्यों किया

अब भोले भाले अखिलेश यादव की सरकार का एक और तोतला और कर्कश तर्क सुनिए. उनका कहना है कि यूपी में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव न भड़के, इसलिए ऐसा करना पड़ा. यानी अखिलेश मानते हैं कि अधिकारी नियमों के हिसाब से काम कर रही थी, मगर इसमें एक संप्रदाय की धार्मिक भावनाएं जुडी़ थीं, इसलिए उन्हें हटाया जाना जरूरी था. मगर गौर करिए कि अखिलेश सरकार ने दुर्गा का ट्रांसफर नहीं किया. उन्हें सस्पेंड किया है. यानी बाकायदा काम न करने की सजा सुनाई है. अब एक कर्मठ अधिकारी के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक क्या हो सकता है कि उसे काम ही न करने दिया जाए.अब लखनऊ सचिवालय में सफाई दी जा रही है कि ये फौरी कदम था और सीएम के लौटने के बाद बहाली हो सकती है

5 सरकार का रसूख कायम करना गुनाह है क्या

आप इस देश में रहते हैं. अकसर सुनते हैं, भारत सरकार, यूपी सरकार. कभी देखी है आपने ये सरकार. कभी मिले हैं इससे. क्या ये हर वक्त आपके साथ रहती है.जवाब है नहीं. सरकार कोई गुड्डा नहीं, जिसे कमर में खोंस चल दिए. सरकार एक भाव है. सुरक्षा का. अनुशासन का. एक यकीन है कि कहीं कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि सरकार हिफाजत कर रही है. व्यवस्था कर रही है. ये सरकार दिखती तो कभी कभी है अपने अमले के जरिए, मगर इसका रसूख हर वक्त रहता है. या कहें कि रहता नहीं है, मगर रहना चाहिए. तो अधिकारी सख्त ढंग से गलत कामों को कुचल कर, सही को बढ़ावा देकर, न्याय का राज स्थापित कर दरअसल सरकार का रसूख ही तो बना रहे होते हैं. वे सरकार को मजबूत कर रहे होते हैं. मगर नहीं. सख्त प्रशासन का दावा करने वाले अखिलेश इसे नहीं समझ पाए. उन्हें चुनावी गणित इतनी प्यारी लगी कि ईमान के गणित को गड़बड़ कर एक ऐसे अधिकारी को सजा दी गई, जिसका सार्वजनिक सम्मान किया जाना चाहिए था. मगर सम्मान तो हो रहा है. सरकार न करे, जनता कर रही है. और इसीलिए इस देश में जनतंत्र है. सत्ता के सिर पर सवार.

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