बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने उत्तर प्रदेश में हर स्तर पर बिगडी कानून व्यवस्था पर आलोचना के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर पार्टी मुखिया मायावती के खिलाफ ‘बेतुकी’ बयानबाजी करने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की मांग की है.
पार्टी महासचिव सतीश मिश्रा ने कहा, ‘प्रदेश में हर स्तर पर बिगडी कानून और व्यवस्था की आलोचना करने पर मुख्यमंत्री द्वारा अपने विरोधियों को प्रदेश छोड़कर जाने जैसा बयान देना शर्मनाक है और अगर उन्हें सच बर्दाश्त नहीं होता तो जनहित में उन्हें (अखिलेश) अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.’
गौरतलब है कि मायावती द्वारा गिरती कानून व्यवस्था की आलोचना करते हुए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की मांग करने पर मुख्यमंत्री अखिलेश ने कहा था, ‘हम तो कह नहीं सकते. हम तो रोक भी नहीं सकते. आप लोग (मीडिया) कह दिया करें कि यहां मत आया करें.’
मिश्रा ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री इस आरोप से बचना चाहते हैं तो उन्हें कानून और व्यवस्था में युद्वस्तर पर सुधार लाना होगा और आपराधिक तत्वों को जेल की सलाखों के पीछे भेजना होगा.
सपा सरकार में गुंडो माफियाओं का राज कायम हो जाने का आरोप लगाते हुए बीएसपी महासचिव ने कहा कि अखिलेश सरकार में ईमानदार अधिकारियों का या तो ट्रांसफर कर दिया जाता है या उसे निलंबित कर दिया जाता है. उन्होंने कहा कि खनन माफिया के विरुद्व अभियान चलाने के लिए चर्चा में रही गौतमबुद्वनगर (सदर) की उपजिलाधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल का शनिवार देर रात किया गया निलंबन इसका प्रमाण है.
मिश्रा ने पार्टी मुखिया मायावती के हवाले से कहा कि समाजवादी पार्टी द्वारा बीएसपी राज में दलितों और पिछडे वर्गों में जन्मे संत महात्माओं के नाम पर स्मारकों के निर्माण की आलोचना किए जाने को भ्रामक करार देते हुए दावा किया कि सपा जिन स्मारकों के निर्माण की आलोचना कर रही है वे दबे कुचले समाज के लोगों के लिए ‘श्रद्वा स्थल’ हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि अगर सपा सरकार द्वारा लोहिया पार्क बनाया जा सकता है तो बीएसपी राज में दलित और पिछड़े वर्ग के महानायकों के नाम पर पार्क और स्मारक बनवाया जाना किस तर्क से गलत है. बीएसपी मुखिया ने अखिलेश सरकार के इस आरोप को भी गलत बताया कि बीएसपी राज में विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ.
उन्होंने बीएसपी राज में बने मेडिकल कॉलेजों और इंजीनियरिंग संस्थानों से लेकर यमुना एक्सप्रेस वे तक कई विकास कार्यों का जिक्र करते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी सरकार ने दुर्भावना के तहत दलित नायकों के नाम पर बने संस्थानों का नाम बदल कर एक ऐसी गलत परंपरा शुरू की है जिसका खामियाजा उसे आगे चल कर भुगतना पड सकता है.