जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने तीन तलाक कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उन्होंने इसपर रोक की मांग की है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मुताबिक तीन तलाक कानून का एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम पतियों को दंडित करना है. ये भी कहा गया है कि मुस्लिम पतियों के साथ अन्याय है.
इससे पहले जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने तलाक को लेकर कानून पारित होने पर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था कि इस कानून से मुस्लिम तलाकशुदा महिला के साथ न्याय नहीं, बल्कि अन्याय की आशंका है.
महमूद मदनी ने कहा था कि कानून के तहत पीड़ित महिला का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा, उसके लिए दोबारा निकाह व नई जिंदगी शुरू करने का रास्ता बिल्कुम खत्म हो जाएगा और इस तरह तलाक का असल मकसद ही खत्म हो जाएगा.
तीन तलाक भारत में अपराध है. तीन तलाक बिल में तीन तलाक को गैर कानूनी बनाते हुए 3 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान शामिल है.
अगर मौखिक, लिखित या किसी अन्य माध्यम से पति अगर एक बार में अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा. तीन तलाक देने पर पत्नी स्वयं या उसके करीबी रिश्तेदार ही इस बारे में केस दर्ज करा सकेंगे.
महिला अधिकार संरक्षण कानून 2019 बिल के मुताबिक एक समय में तीन तलाक देना अपराध है. इसलिए पुलिस बिना वारंट के तीन तलाक देने वाले आरोपी पति को गिरफ्तार कर सकती है. एक समय में तीन तलाक देने पर पति को तीन साल तक कैद और जुर्माना दोनों हो सकता है. मजिस्ट्रेट कोर्ट से ही उसे जमानत मिलेगी.
मजिस्ट्रेट बिना पीड़ित महिला का पक्ष सुने बगैर तीन तलाक देने वाले पति को जमानत नहीं दे पाएंगे. तीन तलाक देने पर पत्नी और बच्चे के भरण पोषण का खर्च मजिस्ट्रेट तय करेंगे, जो पति को देना होगा. तीन तलाक पर बने कानून में छोटे बच्चों की निगरानी और रखावाली मां के पास रहेगी. नए कानून में समझौते के विकल्प को भी रखा गया है.