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रायपुर में कांग्रेस के अधिवेशन से पहले पार्टी में मचा आंतरिक घमासान, CWC चुनाव को लेकर बंटे दो गुट

कांग्रेस की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बैठक 24 से 26 फरवरी तक रायपुर में तीन दिनों के लिए होने जा रही है. उम्मीद लगाई जा रही है कि यह अधिवेशन संभवत: 2024 के ग्रैंड फिनाले तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए एक खाका तैयार कर सकता है. इससे पहले CWC चुनावों को लेकर पार्टी में ही 2 गुट बंट गए हैं.

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रायपुर में होगा कांग्रेस का तीन दिवसीय अधिवेशन
रायपुर में होगा कांग्रेस का तीन दिवसीय अधिवेशन

कांग्रेस के आगामी पूर्ण अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी के इस्तीफे, जी 23 के विद्रोह और नए अध्यक्ष के रूप में खड़गे के चुनाव के साथ शुरू हुए कांग्रेस मेगा नाटक की परिणति देखी जाएगी. कांग्रेस की यह सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बैठक 24 से 26 फरवरी तक रायपुर में तीन दिनों के लिए होने जा रही है. उम्मीद लगाई जा रही है कि यह अधिवेशन संभवत: 2024 के ग्रैंड फिनाले तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए एक खाका तैयार कर सकता है.

इस अधिवेशन में CWC चुनाव पर रहेगा फोकस 

हालांकि यह अधिवेशन इस बात पर केंद्रित रहेगा कि कांग्रेस की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) का चुनाव होगा या नहीं. बता दें कि CWC में कुल 23 सदस्य होते हैं जिनमें से 11 मनोनीत होते हैं और 12 निर्वाचित होते हैं. हालांकि, पिछले पच्चीस वर्षों से निकाय का चुनाव नहीं हुआ है और इस धारणा को जोड़ा गया है कि सीडब्ल्यूसी गांधी चाटुकारों की एक चौकड़ी बन गई है, जिनकी कोई राजनीतिक स्थिति नहीं है.

1996 में आखिरी बार हुआ था CWC का चुनाव

G23 के आह्वान ने सीडब्ल्यूसी को फिर से फोकस में ला दिया था क्योंकि उन्होंने मांग की थी कि इसके चुनाव होने बेहद जरूरी हैं. तब मांग की गई थी कि नए पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पूर्ण सत्र के साथ नई G23 टीम को भी गठित करने की आवश्यकता है. इससे पहले 1996 में सीताराम केसरी के नेतृत्व में कलकत्ता पूर्ण अधिवेशन में CWC के चुनाव हुए थे, लेकिन इसके बाद पार्टी के भीतर राज्य की राजनीतिक उथल-पुथल मच गई. उसी सीडब्ल्यूसी ने केसरी के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया और इसका परिणाम एक तरह का तख्तापलट हुआ. इससे पहले 1992 के तिरुपति पूर्ण सत्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सीडब्ल्यूसी का चुनाव किया गया था. उन्होंने तब खेद व्यक्त किया था कि निर्वाचित सदस्यों में महिलाओं और दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं था.

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CWC के चुनाव को लेकर पार्टी में बंटे दो गुट

सीडब्ल्यूसी चुनावों ने कांग्रेस पार्टी के भीतर सत्ता समीकरण को बिगाड़ दिया है. चुनाव एक अच्छा विचार है या नहीं, इस बारे में बहुत बात हो रही है और इस पर होने वाली खींचतान ने आंतरिक हलचल पैदा कर दी है. कुछ लोग चुनाव चाहते हैं लेकिन पार्टी के ही भीतर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो चाहते हैं कि यथास्थिति बनी रहे. इससे पार्टी में ही विकट स्थिति पैदा हो गई है. जो चुनाव के पक्ष में नहीं हैं उनका तर्क है कि निर्वाचित सदस्य शायद क्षेत्रीय क्षत्रप हो सकते हैं और निर्णय लेने और कांग्रेस अध्यक्ष के सुचारू कामकाज में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं. 

पार्टी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अध्यक्ष चुनाव तो हो गए हैं, उन्हें अपनी टीम चुनने और पार्टी में नई जान फूंकने की आजादी होनी चाहिए. अगर चुनाव करा जाएंगे तो फिर पार्टी के कामों में कोई भी अड़ंगा लगा सकता है. उन्होंने कहा कि अन्य राजनीतिक दलों में से किसी के पास ऐसी निर्वाचित इंटरनल बॉडी नहीं है

चुनाव के पक्ष में दिया जा रहा ये तर्क

वहीं CWC चुनाव चाहने वालों का कहना है कि यह राहुल गांधी की इच्छा है और विरोध करने वाले राहुल का मजाक उड़ा रहे हैं. कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने उन लोगों की आलोचना की जो चुनाव के पक्ष में नहीं हैं. उन्होंने कहा, अगर आप पार्टी को बचाना चाहते हैं तो आपको सीडब्ल्यूसी के चुनाव कराने होंगे. राहुल गांधी चाहते हैं कि पार्टी के कार्यकर्ताओं का सम्मान हो और अगर ऐसा करना है तो चुनाव जरूरी है. उन्होंने कहा कि 'ऐसे नेता हैं जो एक भी वोट नहीं जीत सकते, उनका कोई स्टैंड नहीं है, कार्यकर्ताओं का फोन नहीं उठाते हैं, कार्यकर्ताओं से नहीं मिलते हैं, उन्हें बार-बार नामांकित किया गया है, वे अपना पद जाने नहीं देना चाहते हैं वे आनंद ले रहे हैं इसलिए वे राहुल गांधी की इच्छा के विरुद्ध काम करने की कोशिश कर रहे हैं.

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पृथ्वी राज चौहान, राज बब्बर, मिलिंद देवड़ा भी सीडब्ल्यूसी के चुनाव के लिए पक्ष में हैं. कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा, जो G23 के एक हस्ताक्षरकर्ता भी थे, ने कहा कि 'अपने अध्यक्ष का चुनाव करके हमने दुनिया को दिखाया है कि हमारी पार्टी आंतरिक लोकतंत्र में विश्वास करती है. यदि हम सीडब्ल्यूसी चुनाव कराते हैं तो यह हमें अन्य सभी राजनीतिक दलों से ऊपर ले जाएगा और यही कांग्रेस के बारे में है, यही कांग्रेस की वास्तविक भावना है.'

कुछ और भी हैं जो इसके बारे में मुखर हैं. लाल बहादुर शास्त्री के पोते विभाकर शास्त्री का मानना ​​है कि इससे पार्टी को आंतरिक मजबूती मिलेगी और यहां तक ​​कि राहुल गांधी ने भी कहा था कि आंतरिक लोकतंत्र बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए चुनाव होने चाहिए.

CWC में यह नाम हो सकते हैं शामिल

खड़गे की टीम 23 में कौन होगा? क्या राहुल गांधी के कई वफादार होंगे? क्या नामांकित सूची में नए चेहरे होंगे या दिग्गज होंगे या कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा चुने गए होंगे? ये ऐसे सवाल हैं जो आने वाले दिनों में पार्टी में सत्ता के खेल को परिभाषित करेंगे. इससे यह तो स्पष्ट हो जाना है कि पार्टी में किसका कहना और बोलबाला ज्यादा है. संभावितों की सूची में अंबिका सोनी, भूपेंद्र हुड्डा, दिग्विजय सिंह, ओमन चांडी, पवन बंसल, सिद्धारमैया, रमेश चेनिन्थेला, तारिक अनवर, सलमान खुर्शीद, शैलजा कुमारी, कमलनाथ, पृथ्वी राज चौहान और जयराम रमेश जैसे दिग्गज शामिल हैं.

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अन्य लोगों में सचिन पायलट, दीपेंद्र हुड्डा, अजय माकन, रणदीप सुरजेवाला, मिलिंद देवड़ा और भवर जितेंद्र सिंह शामिल हैं. तब प्रियंका गांधी वाड्रा वास्तव में सीडब्ल्यूसी में आने के लिए चुनावी रास्ता अपना सकती हैं. नियमों के मुताबिक सीडब्ल्यूसी के सदस्यों को ही पार्टी महासचिव नियुक्त किया जा सकता है.

इस अधिवेशन के लिए नवगठित संविधान समिति संविधान में संशोधन किया जा सकता है और सीडब्ल्यूसी में पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों को स्थायी सीट दे सकती है और इसमें पार्टी की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ-साथ राहुल गांधी भी शामिल होंगे. राजनीतिक रूप से तेज और कुशाग्र खड़गे के नेतृत्व में यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि क्या हो सकता है, लेकिन लोकप्रिय नेताओं प्रियंका गांधी वाड्रा और सचिन पायलट जैसे लोगों के चुनाव में खड़े होने और प्रचंड वोटों से जीतने की संभावना कुछ लोगों के लिए सेब की टोकरी को परेशान कर सकती है.

 

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