राजनीति में सियासी ऊंट किस करवट बैठे, पहले से पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. इसलिए इस संबंध में भविष्यवाणी करना भी भारी पड़ सकता है. डीएमके से निष्कासित नेता एम के अलागिरी ने कुछ महीने पहले कहा था कि वो और उनके समर्थक कभी भी डीएमके प्रमुख और उनके भाई एमके स्टालिन को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे. अब उन्हीं अलागिरी ने स्टालिन को तमिलनाडु का अगला मुख्यमंत्री चुने जाने पर बधाई भेजी है.
स्टालिन शुक्रवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेने वाले हैं. अलागिरी ने इंडिया टुडे से खास बाचतीत में बताया कि उन्होंने स्टालिन को शुभकामनाएं भेजी हैं, साथ ही भाई के मुख्यमंत्री बनने से बहुत खुश भी हैं. अलागिरी ने साफ किया कि कोरोना महामारी होने की वजह से वो खुद शपथ ग्रहण में हिस्सा नहीं लेंगे लेकिन उनके बेटा-बेटी वहां जाएंगे.
अलागिरी ने फेसबुक पोस्ट में भी कहा, ''मुझे एमके स्टालिन पर गर्व है जो मुख्यमंत्री बनने वाले हैं. मैं अपने भाई को बधाई देता हूं. डीएमके नेता निश्चित तौर पर लोगों को सुशासन देंगे.''
बता दें कि इस साल के शुरू में अलागिरी ने मदुरै में रोड शो के दौरान राजनीति में वापसी के संकेत दिए थे. अलागिरी ने तब स्टालिन पर जम कर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि स्टालिन कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते,वह और उनके समर्थक ऐसा होने नहीं देंगे.
डीएमके के दिग्गज दिवंगत एम करुणानिधि के बड़े बेटे अलागिरी ने तब ये भी कहा था कि उन्हें कभी पता नहीं चला कि उन्होंने ऐसा क्या गलत किया था जो डीएमके से निकाला गया. अलागिरी ने तब ये भी कहा था कि स्टालिन ने उन्हें धोखा दिया.
बता दें कि अलागिरी ने साल 2018 में करुणानिधि के निधन के सिर्फ एक हफ्ते बाद ही स्टालिन को डीएमके का जिम्मा सौंपे जाने पर सवाल खड़े करते हुए मोर्चा खोल दिया था. करुणानिधि के समाधि स्थल मरीना बीच से उन्होंने कहा था कि डीएमके कार्यकर्ता उनके साथ हैं. स्टालिन भले ही कार्यकारी अध्यक्ष हैं, लेकिन वो काम नहीं करते और वो पार्टी को जिताने की क्षमता नहीं रखते. अलागिरी की चुनौती के बावजूद स्टालिन डीएमके अध्यक्ष बनने में सफल रहे थे.
करुणानिधि को अपने जीवन काल में ही उत्तराधिकारी स्टालिन और बेटे अलागिरी के बीच संघर्ष से रूबरू होना पड़ा था. 90 के दशक में दोनों भाइयों के बीच बढ़ती दरार को कम करने के लिए करुणानिधि ने अलागिरी को दक्षिण तमिलनाडु में पार्टी का काम देखने के लिए भेज दिया था. इसके बाद भी दोनों भाईयों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की जंग नहीं थमी. करुणानिधि ने स्टालिन के विरोध के चलते 2014 में अलागिरी को डीएमके से निष्कासित कर दिया था, तब से लेकर अभी तक उनकी पार्टी में वापसी नहीं हो सकी.