संसद का मॉनसून सत्र 19 जुलाई को शुरू होने जा रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संसद के मॉनसून सत्र में उठाए जाने वाले मुद्दों और सरकार को घेरने की रणनीति पर चर्चा के लिए बुधवार को पार्टी के संसदीय रणनीतिक समूह की बैठक करेंगी. इस बैठक में लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को हटाने और उनके स्थान पर किसी दूसरे को नियुक्त करने पर विचार-विमर्श हो सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस अधीर रंजन को हटाना चाहती है.
बता दें कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का अधिकारिक पद पाने के लिए कांग्रेस जरूरी संख्या में सीटें हासिल नहीं कर पाई थी. 2019 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को केवल 52 सीटें मिलीं थीं. इसके बावजूद कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल के बरहामपुर से सांसद चौधरी सदन में पार्टी नेता के तौर नियुक्त किया था.
बंगाल चुनाव में कांग्रेस की हार
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद से अधीर चौधरी को लोकसभा में पार्टी नेता के पद से हटाने को लेकर चर्चा है. पश्चिम बंगाल चुनाव में जब कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के गठबंधन की अटकलें थीं, तब अधीर रंजन चौधरी ने ही टीएमसी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया था. अधीर की मर्जी से बंगाल चुनाव में कांग्रेस ने लेफ्ट पार्टियों के साथ गठबंधन किया था और चुनाव में कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ था. यही वजह है कि लोकसभा में उनकी जगह शशि थरूर, मनीष तिवारी, गौरव गोगोई, और रवनीत बिट्टू में से किसी एक को नेता चुना जा सकता है. हालांकि पार्टी की ओर से इस पर अब तब आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है
'वन मैन वन पोस्ट'
अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में पार्टी के नेता के साथ-साथ पश्चिम बंगाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. वह बंगाल चुनाव में पार्टी के कैंपेन का चेहरा थे. वो पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के भी चेयरमैन हैं. कांग्रेस में भी एक व्यक्ति एक पद के फॉर्मूले की मांग उठ रही है, जिसके चलते अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा नेता के पद से हटाने की चर्चाएं हैं.
ममता के साथ कांग्रेस नजदीकी चाहती
अधीर रंजन चौधरी को पद से कांग्रेस इसलिए भी हटाना चाहती है ताकि टीएमसी के साथ बेहतर तालमेल बनाकर संसद में बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ मजबूती से अभियान चलाया जा सके. अधीर रंजन को ममता के धुर विरोधी नेता के तौर पर जाना जाता है. हालांकि, कांग्रेस अपने प्रचार में ममता बनर्जी पर हमला करने से बचती रही थी, लेकिन अधीर रंजन आक्रमक रुख अख्तियार किए रहे. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस संसद में तृणमूल के साथ गठजोड़ में किसी तरह की अड़चन नहीं चाहती और इसलिए पार्टी अधीर रंजन चौधरी को सदन के नेता के पद से हटा सकती है.
हिंदी भाषाई राज्य का न होना
अधीर रंजन चौधरी के हिंदी भाषाई राज्य का न होने से अक्सर सदन में टूटी-फूटी हिंदी बोलते रहते हैं. पिछले दो सालों में देखा गया है कि कई बार सदन में कांग्रेस की कई बार किरकिरी हुई है. अधीर रंजन को बाद में सफाई भी देनी पड़ी है. ऐसे में कांग्रेस सदन में अब अधीर रंजन की जगह ऐसे नेता की नियुक्ति करना चाहती है, जो संसद में मुद्दों पर साफगोई से बात रख सके. साथ ही हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं पर बराबर का कमांड हो, जिसे उत्तर और दक्षिण दोनों ही क्षेत्रों के राज्यों को मैसेज दिया जा सके.
संसद में प्रभाव नहीं छोड़ सके अधीर
लोकसभा में कांग्रेस के नेता के तौर पर अधीर रंजन चौधरी को दो साल के ज्यादा हो गए हैं. अधीर रंजन चौधरी संसदीय राजनीति में भले ही काफी अनुभवी हों, लेकिन सदन में पार्टी के नेता के तौर पर अपना सियासी प्रभाव नहीं छोड़ सके है. लोकसभा में कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. ऐसे में उससे उम्मीदें भी बहुत ज्यादा हैं, लेकिन अधीर रंजन उस लिहाज से फिट नहीं बैठ रहे हैं. माना जा रहा है कि इसी के चलते पार्टी अब सदन में किसी प्रभावी नेता को यह पद सौंपना चाहती है ताकि विपक्षी पार्टी होने का संदेश भी जा सके.