महिला आरक्षण के लिए संसद में पेश नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधेयक पर फिलहाल तो अनिश्चय की तलवार है. नए संसद भवन में लोकसभा की पहली बैठक में पहले विधायी कार्य के तौर पर इस पहले विधेयक में काफी पेचीदगी है. कारण, इस संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए को लोकसभा के सदन ने ध्वनि मत से मंजूरी दे दी लेकिन इसके अभी पास होने पर ही काफी बखेड़ा होगा.
विधयेक के पास होने के बाद भी इसके पूरे देश में यानि संसदीय चुनाव के लिए लागू होने की राह 2029 तक ही बन पाएगी. क्योंकि इसके लिए लोकसभा सीटों के परिसीमन की शर्त है. परिसीमन के लिए वैधानिक प्रक्रिया की शुरुआत होने के बाद ही कम से कम दो साल तो लग ही जाएंगे. इसके प्रावधान भी शुरुआती तौर पर 15 साल के लिए होंगे.
अभी तो ये भी स्पष्ट नहीं है कि परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद से जिन विधानसभाओं के चुनाव होंगे तो वहां क्या ये प्रावधान लागू होंगे? कोटे में कोटा की व्यवस्था कैसी होगी? यानि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ अन्य पिछड़ी जातियों को मिल रहे कोटे में महिलाओं को आरक्षण का लाभ देने की प्रक्रिया क्या होगी? इसके अलावा भी कई क़ानूनी और संवैधानिक पेचीदगी है.
परिसीमन की बात करें तो निर्वाचन आयोग का साफ कहना है कि हम तो हमेशा तैयार रहते हैं. सरकार को विधायी और नीतिगत फैसला लेना है. हमारी भूमिका तो उसके बाद शुरू होगी. पहले परिसीमन आयोग बनाया जाएगा. सरकार जब आयोग बनाकर अधिसूचना जारी करेगी उसके बाद आयोग की सहयोगात्मक भूमिका शुरू होगी. हम इसके लिए हमेशा तैयार हैं.