प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अगुवाई वाली केंद्र सरकार 2029 के आम चुनावों से पहले लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण पर विचार कर रही है, जो डिलिमिटेशन प्रोसेस से जुड़ा है. पिछले हफ़्ते केंद्र सरकार ने ऐलान किया था कि 2027 में देशभर में जनगणना कराई जाएगी और जाति गणना पहली बार इस प्रक्रिया का हिस्सा होगी.
दो चरणों में होगी जनगणना
जनगणना दो चरणों में की जाएगी, जिसमें लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सहित बर्फ से ढके और पहाड़ी क्षेत्रों में अक्टूबर 2026 और देश के बाकी हिस्सों में 2027 में जनगणना की जाएगी. आजतक को सूत्रों ने बताया कि जनगणना दो साल में पूरी हो जाएगी और ताजा जनसंख्या डेटा के आधार पर डिलिमिटेशन किया जाएगा.
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सूत्रों के मुताबिक डिलिमिटेशन की प्रक्रिया 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' या महिला आरक्षण विधेयक, 2023 के मुताबिग होगी, जिसे सितंबर 2023 में पारित किया गया था. विधेयक को नई जनगणना और डिलिमिटेशन प्रोसेस के बाद लागू किया जा सकता है. इस विधेयक का मकसद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करना है, और इसे पारित होने के बाद की गई पहली जनगणना के नए आंकड़ों के आधार पर ही लागू किया जा सकता है.
परिसीमन को लेकर चर्चा
जनगणना और परिसीमन दोनों ही एनडीए के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच विवाद के मुद्दे रहे हैं. भारत में 15वीं और आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी और कोरोना महामारी की वजह से इसे 2021 से शेड्यूल किया गया था. इस बीच, भारत में चार मौकों 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन हुआ है.
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जनसंख्या में बढ़ोतरी के आधार पर समय-समय पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं फिर से निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहा जाता है. ऐसा इसलिए होता है ताकि लोकतंत्र में आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके और सभी को बराबर मौके मिल सकें. परिसीमन की प्रक्रिया में लोकसभा या विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को दोबारा से परिभाषित या पुनर्निधारण किया जाता है.
भारत में परिसीमन की पूरी प्रक्रिया जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होती है, क्योंकि जनसंख्या में लगातार बदलाव होता रहता है. नए परिसीमन से यह तय किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी लगभग समान हो. जनगणना में सरकार की तरफ से मुहैया कराया गया डेटा होता है, जो सटीक परिसीमन के लिए बहुत ही जरूरी है. संविधान में प्रावधान किया गया है कि हर परिसीमन के लिए जनगणना के बाद नए आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाएगा. भारत में परिसीमन की यह परंपरा 1951 की पहली जनगणना से शुरू हुई थी.