
देश को लंबे समय से जनगणना का इंतजार था और आखिर समय आ गया है जब यह प्रक्रिया शुरू हो गई है. गृह मंत्रालय ने सोमवार को जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत जनगणना और जातीय जनगणना से संबंधित ऑफिशियल गैजेट नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इसके बाद अब जनगणना से जुड़ी विभिन्न एजेंसियां सक्रिय हो जाएंगी. पहले स्टाफ की नियुक्ति, ट्रेनिंग, फॉर्मेट तैयार करना और फील्ड वर्क की प्लानिंग की जाएगी. देश में पहली बार जनगणना और जातिगत जनगणना एक साथ कराई जा रही है.
कोरोना महामारी की वजह से देरी
वैसे तो भारत में जनगणना हर 10 साल बाद होती है, जिसके जरिए देश की आबादी, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों को जमा किया जाता है. जनगणना दुनिया के सबसे बड़े प्रशासनिक अभ्यासों में से एक है, जिसे गृह मंत्रालय के तहत आने वाला ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल और सेंसस कमिश्नर करवाता है. कोरोना महामारी के कारण 2021 में होने वाली जनगणना टल गई थी और अब यह 2025 में शुरू हो रही है. इसी वजह से अब जनगणना के सर्किल में भी बदलाव हो गया है और इसके बाद अगली जनगणना 2035 में कराई जाएगी.
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इस बार जनगणना की प्रक्रिया दो फेज में पूरी होगी. पहला चरण एक अक्टूबर 2026 तक पूरा किया जाएगा, जबकि दूसरा और अंतिम चरण एक मार्च 2027 तक पूरा होगा. इसके लिए एक मार्च 2027 की मिड नाइट को रेफरेंस डेट माना जाएगा, यानी उस समय देश की जनसंख्या और सामाजिक स्थिति का जो भी आंकड़ा होगा, वही रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा. इस दिन के बाद से आंकड़े सार्वजनिक रूप से सामने आने लगेंगे. हिमालयी और विशेष भौगोलिक हालात वाले राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और उत्तराखंड में यह प्रक्रिया अन्य राज्यों से पहले अक्टूबर 2026 तक पूरी कर ली जाएगी. इन इलाकों में मौसम की कठिनाइयों और दुर्गम क्षेत्रों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है. इन राज्यों के लिए एक अक्टूबर 2026 को रेफरेंस डेट माना जाएगा.
जनगणना के बाद परिसीमन
जनगणना की पूरी प्रक्रिया एक मार्च 2027 तक खत्म हो जाएगी, जो लगभग 21 महीनों में पूरी होगी. जनगणना का प्राइमरी डेटा मार्च 2027 में जारी हो सकता है, जबकि डिटेल डेटा जारी होने में दिसंबर 2027 तक का वक्त लगेगा. इसके बाद लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन 2028 तक शुरू हो सकता है. इस दौरान महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण भी लागू किया जा सकता है. यानी 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले-पहले महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की तस्वीर साफ हो सकती है.
जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन किया जाएगा ताकि आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों का बंटवारा हो सके. इसे लेकर दक्षिण के राज्यों में परेशानी बढ़ी हुई है क्योंकि वहां उत्तर भारतीय राज्यों के मुकाबले आबादी कम है. ऐसे में उन्हें डर हैं कि सीटें घट जाने से लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व कम हो सकता है. ऐसे में सरकार को परिसीमन पर काफी विचार-विमर्श करना होगा. हालांकि सरकार ने भरोसा दिया है कि परिसीमन की प्रक्रिया में दक्षिणी राज्यों की चिंताओं का ध्यान रखा जाएगा.
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देश में जनगणना दो मुख्य फेज में कराई जाती है, हाउसिंग सेंसस और पॉपुलेशन सेंसस. इस बार यह पूरी प्रक्रिया डिजिटल तकनीक पर आधारित होगी, जिसमें मोबाइल ऐप्स और स्व-गणना (Self-Enumeration) का विकल्प भी शामिल है. जनगणना शुरू होने से पहले, जिला, तहसील और पुलिस थानों जैसी प्रशासनिक इकाइयों अपनी तैयारियां कर लेती हैं. यह प्रक्रिया 31 दिसंबर 2024 तक पूरी हो चुकी होगी.
प्रोफॉर्मा और डिजिटल प्रोसेस
जनगणना से पहले प्रोफॉर्मा तैयार किया जाता है. इसमें हाउसिंग सेंसस और पॉपुलेशन सेंसस के लिए प्रश्नावली (प्रोफॉर्मा) को अंतिम रूप दिया जाएगा. इस बार जाति और संप्रदाय से संबंधित सवाल शामिल हो सकते हैं. इस बार की जनगणना में करीब 34 लाख कर्मचारी हिस्सा ले रहे हैं, जिनकी ट्रेनिंग होगी और इसके बाद पर्यवेक्षक भी नियुक्त किए जाएंगे. इनका प्रशिक्षण दो महीने तक चलेगा, जिसमें डिजिटल डिवाइस और मोबाइल ऐप्स का इस्तेमाल करना सिखाया जाएगा.
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डिजिटल गणना के लिए सॉफ्टवेयर में जाति, उप-जाति और OBC के लिए नए कॉलम और मेन्यू शामिल किए जाएंगे. हाउसिंस सेंसस के प्रोसेस के दौरान घरों की लिस्ट तैयार की जाती है और आवासीय स्थिति, सुविधाओं, और संपत्ति से संबंधित जानकारी जमा कर ली की जाती है. इस प्रकिया में गणनाकार घर-घर जाकर परिवारों से सवाल पूछते हैं. जैसे घर का इस्तेमाल आवासीय/वाणिज्यिक किस तरह से करते हैं, पेयजल की उपलब्धता, शौचालय, बिजली, और अन्य सुविधाएं, संपत्ति का स्वामित्व, वाहनों की संख्या का डेटा जमा किया जाता है.
नीतियों और आरक्षण के लिए अहम
इसके बाद पॉपुलेशन सेंसस की गणना की जाएगी, जिसका मकसद हर व्यक्ति की जनसांख्यिकीय, सामाजिक और आर्थिक जानकारी जमा करना है. गणनाकार दोबारा घर-घर जाकर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) और जनगणना से संबंधित सवाल पूछते हैं. इस बार 30 सवाल पूछे जाने की संभावना है, जिनमें नाम, आयु, लिंग, जन्म तिथि, वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार, धर्म, जाति, और उप-संप्रदाय, परिवार के मुखिया के साथ रिश्ता, आवासीय स्थिति और प्रवास से जुड़े सवाल शामिल होंगे.
आजादी के बाद पहली बार जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना भी होगी, जिसमें OBC, SC, ST, और सामान्य श्रेणी की सभी जातियों की गणना की जाएगी. इसके तहत सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसे आय, शिक्षा, रोज़गार का डेटा भी जमा किया जाएगा. यह डेटा को सरकार की योजनाओं, आरक्षण नीतियों और सामाजिक न्याय से जुड़ी योजनाओं का आधार बनेगा. केंद्रीय वित्त आयोग राज्यों को अनुदान देने के लिए भी इस डेटा का इस्तेमाल करता है. यह डेटा सामाजिक-आर्थिक नीतियों और आरक्षण के लिए बहुत ही अहम होगा.
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डिजिटल प्रोसेस के अलावा इस बार जनगणना में जातिगत गणना भी शामिल होगी. इससे पहले भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़ी जानकारी मांगी जाती थी लेकिन अन्य जातियों के बारे में जनगणना के दौरान जानकारी नहीं ली जाती थी. लेकिन इस बार हर व्यक्ति को अपनी जाति बताने का ऑप्शन दिया जाएगा, जो कि लंबे वक्त से चली आ रही मांग का हिस्सा है. साल 1931 के बाद ये पहली बार होगा जब जातिगत जनगणना, जनगणना का हिस्सा होगी.