सुप्रीम कोर्ट ने गुटखा पाबंदी मामले में तमिलनाडु सरकार को राहत देते हुए मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. तमिलनाडु सरकार की 2018 में जारी अधिसूचना को हाईकोर्ट ने रोक दिया था. इस अधिसूचना के तहत गुटखा, पान मसाला और अन्य तंबाकू उत्पादों की खरीद एवं बिक्री पर रोक लगाई गई थी.
गुटखा पर पाबंदी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि आप कोई अमृत नहीं बेच रहे हैं. गुटखा बिक्री पर स्थाई पाबंदी क्यों नहीं लगाते?
इस पर तमिलनाडु सरकार के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि नहीं लगा सकते, क्योंकि निर्माता कंपनियां पान मसाला और गुटखा अलग-अलग पाउच में बेचती हैं. लोग अलग-अलग पुड़िया खरीदते हैं और मिलाकर गुटखा बना लेते हैं. अब आप ही बताइए तंबाकू और पान मसाले की खरीद फरोख्त पर कैसे पाबंदी लगाई जाए?
दरअसल मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया था, जिसमें गुटखा, पान मसाला, तंबाकू जैसे उत्पाद की खरीद फरोख्त पर पाबंदी लगा दी थी.
मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सुनवाई करते हुए सरकार से पूछा कि हर साल ऐसी अधिसूचना जारी करने के बजाय स्थाई रूप से पाबंदी क्यों नहीं लगा देते? ये कोई अमृत थोड़े ही है?
तमिलनाडु सरकार की ओर से जनवरी में खाद्य सुरक्षा आयुक्त की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया था, जिसमें जन स्वास्थ्य के मद्देनजर ये पाबंदी लगाई गई थी. पान मसाला और गुटखा उत्पादकों ने मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया था. हाईकोर्ट ने आदेश को दरकिनार कर दिया.
गुटखा निर्माताओं की ओर से सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि सिर्फ स्वास्थ्य आपातकाल में ही इनकी खरीद बिक्री पर अस्थाई पाबंदी लगाई जा सकती है. पूर्ण पाबंदी मौजूदा कानूनी फ्रेमवर्क के तहत नहीं हो सकती. ये अधिसूचना उसके बाहर है.
पान मसाला, गुटखा और तंबाकू उत्पाद के एक अन्य निर्माता और पक्षकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि 2006 के उस एक्ट पर आधारित अधिसूचना तो वर्षों पहले ही कब की बेअसर हो चुकी है. अब उसके आधार पर हर साल पाबंदी की अधिसूचना जारी करना स्वीकार्य नहीं है.
इस पर तमिलनाडु सरकार के वकील ने जवाब दिया कि हर साल यही दलीलें देना भी तो उचित नहीं है. क्योंकि ये उत्पाद साल बीतने के बाद भी जनता की सेहत के लिए उतने ही खतरनाक हैं. क्या साल बीतने के बावजूद उत्पादों के सेवन से कैंसर का खतरा भी खत्म हो जाता या टल जाता है? ये कैसी दलील दी जा रही है?
जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि आप सीधे नहीं कर पा रहे तो घुमा फिरा कर पाबंदी लगा रहे हैं. सिब्बल ने कहा कि हाईकोर्ट ने इसे फूड प्रोडक्ट माना है तो हमने एफएसए के तहत इसे नियमित किया है.
इस पर वैद्यनाथन ने फिर दलील दी कि हाईकोर्ट ने गुटखा को खाद्य उत्पाद माना है लेकिन तंबाकू नहीं. सिब्बल ने अपील की कि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को इस अधिकार और छूट का आदेश पारित कर दे कि राज्य के पास पान मसाला और तंबाकू अलग अलग बेचने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है.