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पुराने चेहरे, नए दल, गठबंधनों का बदला गणित... Maharashtra assembly Elections 2024 के ऐलान से पहले जानिए 5 साल में कितना बदला सियासी सीन

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव कार्यक्रम का आज ऐलान होना है. 2019 के पिछले चुनाव से लेकर 2024 तक, पांच साल में गठबंधनों के गणित से लेकर राजनीतिक दल तक, सूबे का सियासी सीन कितना बदल गया है?

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महाराष्ट्र में बदल गया है गठबंधनों का गणित
महाराष्ट्र में बदल गया है गठबंधनों का गणित

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर हलचलें तेज हो गई हैं. चुनाव आयोग ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर महाराष्ट्र चुनाव के कार्यक्रम का ऐलान किया. राज्य में सभी 288 सीटों पर एक चरण में ही मतदान होगा. महाराष्ट्र में 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और 23 नवंबर को मतगणना होगी. महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को पूरा हो रहा है. महाराष्ट्र में फिलहाल एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली महायुति की सरकार है. सत्ताधारी महायुति में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी शामिल है.

महााष्ट्र चुनाव में महायुति के सामने सरकार रिपीट कराने की चुनौती है. बीजेपी ने चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से पहले दावा किया कि सूबे में प्रो-इनकम्बेंसी के वोट पड़ेंगे. वहीं, विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के खिलाफ माहौल का दावा कर रहा है. एमवीए की कोशिश होगी कि इस विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर सरकार बनाई जाए और उस दर्द पर मरहम लगाया जाए जो एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना विधायकों की बगावत, अजित पवार की अगुवाई में एनसीपी की बगावत से गठबंधन को मिला.

महाराष्ट्र में विधानसभा की स्ट्रेंथ 288 सदस्यों की है. महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा 145 विधानसभा सीटों का है. फुल स्ट्रेंथ विधानसभा में जिस दल या गठबंधन के पास 145 या इससे अधिक की स्ट्रेंथ होगी, सूबे में उसकी ही सरकार बनेगी.

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कैसे रहे थे पिछले चुनाव नतीजे

महाराष्ट्र विधानसभा के पिछले चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले महायुति को 161 सीटों पर जीत मिली थी. तब बीजेपी 105 सीटों पर जीत के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी. 56 सीटें जीतकर शिवसेना दूसरे नंबर पर रही थी. तब बीजेपी और शिवसेना (संयुक्त) गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे थे. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 161 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का जनादेश मिला था. हालांकि, दोनों दलों के बीच अनबन के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली थी. 2019 के चुनाव में एनसीपी 54 सीटों के साथ तीसरी और कांग्रेस 44 सीटों के साथ चौथी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.

5 साल में कितना अलग सीन

महाराष्ट्र के पिछले चुनाव में भी दो गठबंधनों की लड़ाई थी, यही लड़ाई इस बार भी है लेकिन गठबंधनों का रूप बदल चुका है. 2019 के चुनाव में शिवसेना, बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन में शामिल थी और एनसीपी का कांग्रेस से दोस्ताना था. इस बार के चुनाव में शिवसेना और एनसीपी, दोनों ही एक साथ महायुति में शामिल हैं.

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हां, फर्क इतना है कि पिछले चुनाव में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली संयुक्त शिवसेना महायुति में थी, इस बार एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना इस गठबंधन में है. एनसीपी महायुति में है लेकिन शरद पवार महाविकास अघाड़ी में हैं. उद्धव ठाकरे और शरद पवार, दोनों ही कद्दावर नेता अपनी-अपनी पार्टियों में बगावत के बाद नाम-निशान गंवा नई पार्टी बना चुके हैं और नए नाम-निशान के साथ दोनों नेताओं का ये पहला महाराष्ट्र चुनाव होगा.

किसका क्या दांव पर

महाराष्ट्र के ये चुनाव में महायुति से लेकर एमवीए तक, दोनों ही गठबंधनों के साथ ही नेताओं और पार्टियों के लिए भी नाक का सवाल बन गया है. शिवसेना (यूबीटी) एकनाथ शिंदे को गद्दार बता रही है तो वहीं शिंदे की पार्टी खुद को असली शिवसेना. दोनों दलों के लिए ये चुनाव असली शिवसेना किसकी, एक तरह से जनता की अदालत से इसे लेकर फैसले की तरह होंगे.

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असली-नकली पार्टी की ऐसी ही लड़ाई अजित पवार और शरद पवार की पार्टियों के बीच भी है. बीजेपी के सामने यह साबित करने की चुनौती होगी कि लोकसभा चुनाव के नतीजे विपक्ष के दुष्प्रचार की देन थे, एक तुक्का थे, जैसा पार्टी के नेता आम चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद से ही कहते भी आए हैं. वहीं, कांग्रेस के सामने आम चुनाव में मिले जीत के मोमेंटम को बरकरार रखने का चैलेंज होगा.

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किसको क्या हासिल होने की उम्मीद?

दोनों ही गठबंधनों में शामिल हर पार्टी बेहतर नतीजों की उम्मीद कर रही है. महायुति की पार्टियों को महिलाओं के लिए कैश बेनिफिट स्कीम और इंफ्रास्ट्रक्चर पर हुए काम से फिर जनादेश मिलने का भरोसा है. महायुति डबल इंजन सरकार से विकास की तेज रफ्तार का भरोसा दिला रहा है. वहीं विपक्षी एमवीए को गद्दार कार्ड के सहारे सहानुभूति के वोट मिलने का विश्वास. एमवीए को सूबे में बिगड़ती कानून व्यवस्था से लेकर मराठा आरक्षण और शिंदे सरकार की विफलताएं कैश करा सत्ता में वापसी की उम्मीद है.

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