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मटन में झोंक दिया था नमक... ढाबे वाले की गलती ने बचा ली जान, पहलगाम हमले में 11 लोगों की आपबीती

पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को परिजनों और जो लोग बाल- बाल बचे उनकी आपबीती डरा देने वाली है. इन्हीं पर्यटकों में केरल का एक 11 सदस्यों का परिवार भी कश्मीर घूमने पहुंचा था. लेकिन लंच में ज्यादा नमक पड़ जाने और दोबार ऑर्डर तैयार करने की ढाबे वाले की जिद ने उन्हें आतंकियों की गोली का शिकार होने से बचा लिया.

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पहलगाम हमले से बाल- बाल बचा परिवार
पहलगाम हमले से बाल- बाल बचा परिवार

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसरन में बीते मंगलवार को बड़ा आतंकी हमला हुआ,जिससे बाद पूरे देश में आक्रोश है. यहां आतंकियों ने एक टूरिस्ट ग्रुप को निशाना बनाया, जिसमें 26 लोगों की मौत हो गई. दर्जन भर से ज्यादा लोग घायल भी हुए. यहां मारे गए लोगों को परिजनों और जो लोग बाल- बाल बचे उनकी आपबीती डरा देने वाली है. 

'ढाबे वाले ने खाने में डाल दिया ज्यादा नमक'

इन्हीं पर्यटकों में केरल का एक 11 सदस्यों का परिवार भी कश्मीर घूमने पहुंचा था.लेकिन लंच में ज्यादा नमक पड़ जाने और दोबार ऑर्डर तैयार करने की ढाबे वाले की जिद ने उन्हें आतंकियों की गोली का शिकार होने से बचा लिया.  कोच्चि की रहने वाली लावन्या और उनके परिवार के 10 अन्य सदस्य उस दिन पहलगाम जा रहे थे जिस दिन आतंकी हमला हुआ.श्रीनगर पहुंचे परिवार ने पहलगाम जाने से पहले दो दिन वहां जगहें तलाशने में बिताए.परिवार के इस ग्रुप में लावन्या, उनके पति एल्बी जॉर्ज, उनके तीन बच्चे, उनके पति के माता-पिता, चचेरी बहन और उनका परिवार शामिल था.

'आज तो हम लंच करके ही आगे निकलेंगे'

लावन्या ने बताया -'हमने पहलगाम के दो दिन के ट्रिप की योजना बनाई थी क्योंकि हम खास पहलगाम को ज्यादा अच्छे से देखना चाहते थे.हम ऊपर जा रहे थे और वहां से सिर्फ दो किलोमीटर दूर थे. लेकिन एक ढाबे  में लंच करने के लिए रुके. बाल-बाल बचने के लिए, हम दो लोगों की आभारी हैं - एक तो ढाबे का स्टाफ़ जिसने हमारे ऑर्डर किए गए मटन रोगन जोश में ज्यादा नमक डाल दिया था और फिर वह हमारे लिए उसे दोबारा बनाने लगा. दूसरा मेरे पति, जिन्होंने कहा था- आज तो हम लंच करके ही आगे निकलेंगे.' 

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भागते हुए आते दिखे 10-20 घोड़े

लावन्या ने आगे बताया- जब हम दोबारा लंच करने लगे तभी  हमने 10-20 घोड़ों को नीचे की ओर भागते देखा.हमें लगा कि कुछ गड़बड़ है क्योंकि जानवर घबराए हुए थे.हमने पहले सोचा कि यह भूस्खलन हो सकता है लेकिन फिर समझ में आया कि ऐसा नहीं है.हमने ऊपर जाने का फैसला किया लेकिन फिर नीचे आ रहे कुछ वाहनों ने हाथ के इशारे से हमें न जाने के लिए कहा.

'न्यूज देखी तो समझ आया'

उन्होंने आगे बताया-  किसी ने हमें बताया कि सीआरपीएफ़ और पर्यटकों के बीच कुछ बहस हो गई है.हमने फिर भी ऊपर जाने के बारे में सोचा लेकिन आखिरकार योजना को छोड़ने का फैसला किया.बाद में हम नीचे गए और तस्वीरें लीं क्योंकि हमें ठीक से पता नहीं था कि क्या हो रहा है.जब हमने एक महिला को रोते हुए और सीआरपीएफ के साथ आते देखा, तो हमें समझ में आ गया कि कुछ ठीक नहीं है. तभी हमारे दोस्तों और परिवार के लोगों से फोन आने लगे, जो हमारी सुरक्षा के बारे में पूछ रहे थे.फिर जब हमने न्यूज देखी, तब हमें समझ में आया कि हम किस मुसीबत से बच गए और हम कितने भाग्यशाली थे।'

'ढाबे वाले की जिद से बच गई जान'

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लावन्या ने कहा- 'हमने पिछले दो दिनों में लंच नहीं किया था क्योंकि टूरिस्ट सीजन है और  बहुत भीड़ थी, लेकिन उस दिन मेरे पति ने एक ढाबे में रुकने के लिए कहा और जोर देकर कहा कि हम लंच करें.यहां हमने जो मटन रोगन जोश मंगवाया था, उसमें बहुत नमक था और उसमें बहुत सारी बोन्स थीं, जिन्हें हमारे 70 से ज़्यादा उम्र के  माता-पिता के लिए खाना मुश्किल था.हमने ढाबे के स्टाफ को इस बारे में बताया.उन्हें बहुत बुरा लगा और वे इसे हमारे लिए फिर से ताजा लंच बनाने लगे.हमने कहा कि हम देर हो जाएगी लेकिन वे नहीं माने और दोबार ऑर्डर तैयार करने लगे.शुक्र है कि उन्होंने ये जिद की. उनकी इस देरी से हमारी जान बच गई.' लावन्या का परिवार अभी श्रीनगर में है और वे 25 अप्रैल को केरल लौटेंगे.  
 

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