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दिवाली के दो हफ्ते बीत गए, AQI का डेटा भी कम... फिर भी दिल्ली क्यों बनी हुई है गैस चैंबर?

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण को लेकर आमतौर पर पराली को जिम्मेदार ठहराया जाता है. हर साल नवंबर में हालात बिगड़ने की वजह से कई प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं. यहां तक कि त्योहारों में पटाखे फोड़ने पर भी बैन रहता है. दिवाली को लेकर माना जाता है कि पटाखे फोड़ने से आवोहवा बिगड़ जाती है.

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दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिए एंटी स्मॉग गन से पानी का छिड़काव किया जा रहा है.
दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिए एंटी स्मॉग गन से पानी का छिड़काव किया जा रहा है.

दिल्ली ने दिवाली मना ली है और 14 दिन बीत गए हैं. एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) का डेटा भी राहत के संकेत देने लगा है. लेकिन दम घुटना कम नहीं हुआ है. बुधवार को दिल्ली का 24 घंटे का औसत AQI सुबह 8 बजे तक 361 रहा है. यानी हवा की गुणवत्ता अभी भी बेहद खराब है. सड़कों पर विजिबिलिटी शून्य है. दिसंबर जैसा कोहरा देखने को मिल रहा है. इसके पीछे क्या कारण हैं और कौन जिम्मेदार है? समझिए...

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण को लेकर आमतौर पर पराली को जिम्मेदार ठहराया जाता है. हर साल नवंबर में हालात बिगड़ने की वजह से कई प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं. यहां तक कि त्योहारों में पटाखे फोड़ने पर भी बैन रहता है. दिवाली को लेकर माना जाता है कि पटाखे फोड़ने से आबोहवा बिगड़ जाती है. आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं. लेकिन, अब दिवाली के दो हफ्ते बीत गए हैं. आंकड़ों में भी दिनों दिन सुधार देखने को मिल रहा है. लेकिन आज के स्मॉग ने फिर दिल्ली-NCR को गैस चैंबर में बदलकर रख दिया है. आखिर क्या कारण है कि राजधानी की हवा साफ नहीं हो पा रही है और लोगों का दम घोंट रही है.

दिल्ली में दिवाली पर कैसी थी आबो-हवा?

दरअसल, दिवाली की रात कई जगहों पर पीएम 2.5 का स्तर 900 तक पहुंच गया था. यह बेहद ही चौंका देने वाला आंकड़ा था. आतिशबाजी की वजह से राजधानी में दिवाली के बाद दूसरे दिन भी प्रदूषण खतरनाक श्रेणी में रहा था. अशोक विहार में पीएम 2.5 का लेवल 1450 के पार पहुंच गया था. जो स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदेह माना जाता है. आनंद विहार का औसत AQI (PM10) 419 दर्ज किया गया था, जबकि अधिकतम 500 था. राष्ट्रीय राजधानी में दिवाली की रात AQI 330 दर्ज किया गया. अगले दिन 24 घंटे का औसत AQI 339 था. दिवाली के एक सप्ताह बाद 38 में से 13 प्रदूषण निगरानी स्टेशन ने 400 से ऊपर रीडिंग रिकॉर्ड की. ये गंभीर श्रेणी में है.

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दिल्ली की हवा कब से खराब?

दिवाली से पहले दिल्ली की वायु गुणवत्ता खराब होनी शुरू हो गई थी, जिसके बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी II) के दूसरे चरण को लागू करना पड़ा था. यहां घने कोहरे के साथ हल्के कोहरे और धुंध ने विजिबिलिटी को बेहद कम कर दिया. धुंध का प्रभाव और बढ़ गया है. जानकार कहते हैं कि इस प्रदूषण में पराली से उत्पन्न धुएं का योगदान सबसे ज्यादा रहा, जिसने दिवाली से ठीक पहले हवा में जहर घोल दिया. 31 अक्टूबर को दिल्ली में  पटाखों का शोरगुल रात को ज्यादा सुनाई दिया, वहीं, इससे ठीक पहले के आंकड़े बताते हैं कि पराली के धुएं का असर एक चौथाई से भी ज्यादा था. यह स्थिति दर्शाती है कि पटाखों के अलावा पराली जलना भी वायु प्रदूषण का एक बड़ा घटक बना, जो सिर्फ दिवाली ही नहीं बल्कि आने वाले दिनों में प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है.

दिवाली के दो हफ्ते बाद भी घुटन क्यों?

पिछले कुछ दिन से दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग भी कम दिख रहा था. उसके बावजूद कई इलाकों से शिकायतें आ रही थीं कि बाहर निकलने से घुटन हो रही है और सांस लेने में तकलीफ होती है या खांसी की समस्या भी हो जाती है. यानी दिवाली के दो हफ्ते बाद भी दिल्ली-NCR में प्रदूषण गंभीर बना हुआ है और इसका मुख्य कारण सिर्फ पटाखों का धुआं नहीं है. एक्सपर्ट कहते हैं कि इस बार दिवाली के दौरान पटाखों पर आंशिक प्रतिबंध था, लेकिन इसके बावजूद पटाखों का धुआं वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर गया, जो ठंड के कारण जल्दी साफ नहीं हो पा रहा है. इसके अलावा, प्राकृतिक हवाई प्रवाह में कमी, वाहनों की बड़ी संख्या, बड़े स्तर पर निर्माण कार्य, औद्योगिक उत्सर्जन भी फैक्टर है. पटाखों का धुआं भी कुछ समय तक वातावरण में बना रहता है. 

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जमीन पर क्यों नहीं दिखता असर?

एक्सपर्ट कहते हैं कि दिल्ली सरकार हर साल पॉल्यूशन को लेकर लंबी प्लानिंग करती है. बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं और कुछ चीजों पर बैन लगा दिया जाता है. हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट भी समय-समय पर सरकारों को चेतावनी देती है, लेकिन जमीन पर इसका कुछ भी असर नहीं दिखता है. दिल्ली सरकार भले दावे करती है कि वो पर्यावरण एजेंसियों के साथ मिलकर इस स्थिति से निपटने के लिए पानी का छिड़काव कर रही है. एंटी-स्मॉग गन का इस्तेमाल कर रही है. ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) जैसी प्रतिबंध भी लागू कर रही है, लेकिन जब तक मूल कारणों को नियंत्रित नहीं किया जाता, प्रदूषण का स्तर गंभीर बना रहेगा.

दिल्ली में प्रदूषण के क्या कारण?

- हर साल हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने की वजह से बड़ी मात्रा में धुआं दिल्ली की ओर बहता है. यह दिल्ली-NCR के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) पर बुरा असर डालता है. इस सीजन में पराली जलाना शुरू होने से वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ा है.
- सर्दियों में तापमान कम हो जाता है, जिससे हवा ठंडी और स्थिर हो जाती है. इसके कारण प्रदूषक कण ऊपर नहीं उठ पाते और वातावरण में ही बने रहते हैं, जिससे स्मॉग और प्रदूषण की स्थिति खराब हो जाती है.
- दिल्ली-NCR में वाहनों की संख्या बहुत ज्यादा है, जिससे भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य प्रदूषक गैसें निकलती हैं. उद्योग और निर्माण कार्य भी प्रदूषण में योगदान करते हैं.
- निर्माण कार्यों और कंस्ट्रक्शन साइट्स से निकलने वाली धूल भी वायु प्रदूषण को बढ़ाने का काम करती है. इसके अलावा बिजली संयंत्रों और उद्योगों से निकलने वाले धुएं का भी असर है.
- ठंड के मौसम में हवा का प्रवाह धीमा हो जाता है, जिससे प्रदूषण का फैलाव कम हो जाता है और प्रदूषक अधिक समय तक वातावरण में ही बने रहते हैं.

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सरकारी स्तर पर प्लानिंग क्यों नहीं हो पाती है?

- दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश का सहयोग भी जरूरी है, क्योंकि इन राज्यों से आने वाले प्रदूषक तत्व (जैसे पराली का धुआं) दिल्ली के AQI को प्रभावित करते हैं. अंतर-राज्यीय स्तर पर समन्वय की कमी के चलते योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पाता.
- प्रदूषण के दीर्घकालिक समाधान की योजना नहीं बन पाती है. कई योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन वे सिर्फ एक मौसम या त्यौहार के आस-पास ही सक्रिय होती हैं. वायु प्रदूषण की समस्या का हल एक दीर्घकालिक योजना, जैसे हरियाली, स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग और निर्माण कार्यों पर नियंत्रण से संभव है.
- वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर धन और संसाधनों की जरूरत होती है. कई योजनाएं इस कारण भी क्रियान्वित नहीं हो पातीं क्योंकि वित्तीय सहायता में कमी रहती है या अन्य प्राथमिकताओं के चलते बजट में कटौती हो जाती है. साथ ही, प्रशासनिक स्तर पर सही रणनीति ना बन पाने के कारण प्लानिंग में ढिलाई आ जाती है.
- प्रदूषण नियंत्रण के लिए पहले से ही कानून हैं, लेकिन इनका सख्ती से पालन नहीं होता है. उदाहरण के लिए, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर धूल रोकने के नियम, वाहनों के उत्सर्जन मानकों का पालन और पराली जलाने पर नियंत्रण जैसे नियमों का ठीक से पालन ना हो पाना भी एक बड़ी चुनौती है. जुर्माने और दंड के बावजूद बड़े स्तर पर इनका अनुपालन नहीं हो पाता है.
- कई बार लोगों में जागरूकता की कमी होती है और लोग पटाखे चलाने, खुले में कचरा जलाने और अन्य प्रदूषणकारी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं. ऐसे में जनता का सहयोग भी जरूरी है, जो अक्सर दिखाई नहीं देता है.
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और चेतावनियों पर अमल जरूरी है, लेकिन कई बार ये निर्देश ठोस योजनाओं में नहीं बदल पाते. अक्सर कोर्ट का आदेश आने के बाद ही सरकारें कार्रवाई की शुरुआत करती हैं, जिससे समय रहते हालात पर काबू नहीं पाया जा सकता है.
- दीर्घकालिक योजनाएं बनाना, कानूनी सख्ती, स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को बढ़ावा देना, और अंतर-राज्यीय समन्वय को मजबूत करना भी जरूरी है. साथ ही जनता में जागरूकता बढ़ाकर और तकनीक का उपयोग करके समस्याओं का समाधान तलाशा जा सकता है.

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अभी कैसा है दिल्ली का मौसम?

आईजीआई एयरपोर्ट पर बुधवार सुबह 8 बजे तक विजिबिलटी घटकर शून्य हो गई. मंगलवार शाम की तुलना में दिल्ली की वायु गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है. सुबह औसत AQI 349 तक पहुंच गया था. कल शाम 11 बजे तक 316 था. सुबह 8 बजे पिछले 24 घंटे का औसत AQI 361 रिकॉर्ड किया गया. एक्सपर्ट कहते हैं कि हिमालय क्षेत्र में सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ ने पाकिस्तान और पंजाब से प्रदूषण और धुएं को पूर्व की ओर धकेल दिया है. इसलिए अब पिछले कुछ घंटों में AQI में काफी गिरावट आई है.

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