कभी टीवी पर या फोन पर अचानक पहलगाम घटना का कोई वीडियो दिख जाए तो दिल दहल-सा जाता है. काफी देर तक वो ख्याल दिमाग में तारी रहता है. तो सोचिए- जिन लोगों ने इस घटना को सामने से देखा, जिन्होंने आतंकवादियों की गोली से अपनों का सीना छलनी होते देखा. भय की पराकाष्ठा तक जिन औरतों और बच्चों ने उन 20 मिनटों को जिया, उनके दिमाग में क्या चल रहा होगा. ये जख्म दिलोदिमाग दोनों पर भारी पड़ रहे हैं. देश के तमाम मनोचिकित्सक इन पीड़ितों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंता जता रहे हैं.
ऐसे हालातों का सामना करने वाले हो सकते हैं PTSD का शिकार
PTSD यानी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर... किसी ट्रॉमा वाली स्थिति को झेलने के बाद लोगों के दिमाग पर असर पड़ने की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं. IHBAS दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश बताते हैं कि PTSD एक ऐसी मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जो किसी व्यक्ति को अत्यधिक तनावपूर्ण या भयावह घटना के बाद होती है. इसके लक्षणों में बुरे सपने आना, फ्लैशबैक, चिंता, अवसाद, और सामाजिक अलगाव शामिल हैं. बच्चों में यह स्थिति और भी जटिल हो सकती है क्योंकि वे अपने भावनाओं को ठीक से व्यक्त नहीं कर पाते.
स्त्री-पुरुष ही नहीं मासूमियत पर भी पड़ा आतंक का साया
डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि इस हमले में कई बच्चे भी प्रभावित हुए हैं. बचपन में ऐसा ट्रॉमा झेलना बच्चों के मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. वे डर, चिंता, नींद में खलल और सामाजिक दूरी जैसे लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं. इसलिए ऐसी घटनाओं का शिकार बच्चों के लिए स्पेशल मेंटल हेल्थ केयर जरूरी है. इन घटनाओं के साक्षी बने बच्चों की काउंसिलिंग जरूर की जानी चाहिए. वहीं सैकड़ों महिलाओं ने भी अपनी आंखों के सामने गोलीबारी देखी और उससे मरते लोग देखे. इन महिलाओं की भी मेंटल हेल्थ केयर बहुत जरूरी है.
कितना असर पड़ सकता है
भोपाल के वरिष्ठ मनोरोग विश्लेषक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि इस घटना का प्रभाव जो प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं, उनके मन में काफी गहरे हो सकते हैं. इसके लक्षण बच्चे और किशोरों में ज्यादा नजर आ सकते हैं. इसके अलावा एंजाइटी के शिकार लोगों के मन में भी इस घटना का असर पड़ सकता है. डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि इस घटना का असर स्थानीय लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है क्योंकि उनका रोजगार कहीं न कहीं टूरिस्ट पर आधारित है.
घटना के चश्मदीद जिस तरह विभिन्न इंटरव्यूज में बता रहे हैं कि कैसे अचानक गोलियों की बौछार ने सबको स्तब्ध कर दिया था. बच्चों और महिलाओं के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आज भी उनके कानों में गूंज रही हैं. यह सब सामान्य नहीं है. जो भी लोग स्त्री पुरुष या बच्चे इन घटनाओं के साक्षी बने हैं, उनको इन हालातों से निपटने के लिए विशेष काउंसिलिंग की जरूरत है. विशेषज्ञों का मानना है कि PTSD का समय पर इलाज न किया जाए तो यह दीर्घकालिक मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है. इसके लिए विभिन्न थेरेपी और उपचार उपलब्ध हैं जो पीड़ितों को सामान्य जीवन में लौटने में मदद कर सकते हैं.
क्या है PTSD का इलाज
कॉग्निटिव प्रोसेसिंग थेरपी (CPT): यह थेरपी व्यक्ति को उनके नकारात्मक विचारों और भावनाओं को पहचानने और बदलने में मदद करती है.
ट्रॉमा-फोकस्ड कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी (TF-CBT): यह विशेष रूप से बच्चों के लिए विकसित की गई है और इसमें परिवार की भागीदारी भी शामिल होती है.
आई मूवमेंट डिसेन्सिटाइजेशन एंड रीप्रोसेसिंग (EMDR): इस थेरपी में आंखों की गति का उपयोग करके दर्दनाक यादों को कम किया जाता है.
प्ले थेरपी: बच्चों के लिए यह थेरपी खेल के माध्यम से उनकी भावनाओं को समझने और व्यक्त करने में मदद करती है.
आर्ट थेरपी: इसमें बच्चे चित्रकारी, रंग भरने, और अन्य रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से अपने भावनाओं को व्यक्त करते हैं.
साइकोथेरेपी: इसमें मनोचिकित्सक व्यक्ति की भावनाओं और विचारों को समझकर उन्हें सकारात्मक दिशा में मोड़ने का प्रयास करते हैं.