scorecardresearch
 

रिसर्च स्टेशन की आड़ में खुफिया गतिविधियों का डर, अमेरिका का अंटार्कटिका से हटना क्या ला सकता है?

लगभग हर देश में अपना दबदबा बनाने की कोशिश करता अमेरिका अचानक ही अंटार्कटिका से वैज्ञानिक तामझाम समेट रहा है. हाल में ट्रंप प्रशासन ने इस बर्फीले द्वीप पर अमेरिका के सबसे बड़े रिसर्च और लॉजिस्टिक स्टेशन मैकमर्डो के बजट में कटौती की बात कही. यूएस का पीछे हटना चीन और रूस को इस सूने महाद्वीप पर खुला मैदान दे सकता है.

Advertisement
X
अंटार्कटिका में साठ के दशक से प्रयोग चल रहे हैं. (Photo- Getty Images)
अंटार्कटिका में साठ के दशक से प्रयोग चल रहे हैं. (Photo- Getty Images)

अमेरिका ने पचास के दशक से ही कोशिश शुरू कर दी कि अंटार्कटिका महाद्वीप पर कोई सैन्य हलचल न हो, न ही वहां किसी देश का कब्जा हो. इसके लिए अंटार्कटिका ट्रीटी बनाई गई, जिसमें आज 55 से ज्यादा सदस्य देश हैं. यहां रिसर्च स्टेशन हैं, जिसमें अमेरिकी स्टेशन सबसे बड़ा रहा. अब डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने बर्फीले महाद्वीप पर चल रहे प्रोजेक्ट्स में भारी कटौती कर दी. ऐसे वक्त में जब चीन जैसे देश खुफिया प्रयोगों के लिए नए जगहें खोज रहे हैं, वॉशिंगटन का फैसला चौंकाता है.

साल 1958 से ही यूएस अंटार्कटिका की डिप्लोमेसी और रिसर्च में सबसे आगे रहा. इसकी पीछे क्लाइमेट तो एक वजह थी ही, साथ ही सुरक्षा कारण भी थे. दरअसल, बर्फ से ढंके इस महाद्वीप को अगर नजरअंदाज किया जाए, तो कोई देश वहां गुपचुप मिलिट्री बेस बना सकता है, इसकी आशंका बहुत ज्यादा है. ये जगह खाली है, जहां दूर-दूर तक बर्फ ही बर्फ है. किसी देश का कब्जा न होने की वजह से यहां इंटरनेशनल निगरानी भी कम होती है. इससे रिसर्च के नाम पर यहां कोई भी सैन्य एक्टिविटीज भी बढ़ा सकता है, और बाकियों को पता तक नहीं लगेगा. 

अंटार्कटिका पर वैसे 19वीं सदी में भारी गहमागहमी रही. इससे सटे हुए सारे देश किसी न किसी तरह से इसपर दावा करने लगे. बर्फ का ये रेगिस्तान दुनिया के लिए अजूबा तो था ही, इसमें खनन या कई दूसरी चीजें भी हो सकती थीं. लड़ाई-भिड़ाई की नौबत आने पर आखिरकार साल 1959 में देशों ने मिलकर अंटार्कटिक ट्रीटी सिस्टम बनाया. इसपर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, रूस समेत शुरुआत में कुल 12 देशों ने दस्तखत किए. 

Advertisement

antarctica american research station photo- Getty Images

वक्त के साथ दूसरे देश, जिनमें भारत भी शामिल था, इसका हिस्सा बनते चले गए. सबका मकसद एक ही था कि इसके इकोसिस्टम को बचाए रखा जाए. साथ ही कोई देश यहां अपना मालिकाना हक न जमाए, न कोई सैन्य गतिविधि हो. इसके तहत अंटार्कटिका न्यूक्लियर फ्री जोन रहेगा यानी वहां परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा. न ही साल 2048 तक वहां कोई माइनिंग होगी. इसके बाद नए सिरे से संधि पर काम होगा. 

इसके बाद से वहां मौसम, जलवायु, और बर्फ से जुड़े शोध हो रहे हैं. संधि के तुरंत बाद ही यूएस ने यहां मैकमुर्डो स्टेशन बनाया जो सबसे बड़ा रिसर्च स्टेशन है. गर्मियों में यहां लगभग डेढ़ हजार लोग रह सकते हैं. इसके बाद रूस, चीन और भारत के भी रिसर्च स्टेशन यहां हैं. 

अंटार्कटिका में टूरिज्म को बढ़ावा भी काफी कुछ अमेरिका के चलते मिला. ज्यादातर लोग एडवेंचर ट्रैवलर होते हैं, जिन्हें दुनिया की मुश्किल जगहों को देखने का शौक होता है. इन्हें एक्सपेडिशन स्टाइल में छोटी यात्रा के लिए ले जाया जाता है. ये एक शिप में होते हैं जो अंटार्कटिका की सीमा के पास रुकती है. ज्यादातर टूरिस्ट बॉर्डर पर पहुंचकर शिप से नीचे नहीं उतर पाते. यहीं पर उनके रहने-खाने का पूरा बंदोबस्त होता है.

Advertisement

शिप से नीचे की तरफ टेंपररी कैंप बना दिया जाता है ताकि लोगों को अंटार्कटिका पर रहने का पूरा फील आए. यहां पर कोई होटल नहीं है. अंटार्कटिका ट्रीटी के तहत इसकी इजाजत भी नहीं.

donald trump on antarctica fund cuts photo Getty Images

हाल-हाल में ट्रंप प्रशासन ने इमरजेंसी खर्चों का हवाला देते हुए मैकमुर्डो स्टेशन के बजट में काफी कटौती कर दी. तब से ही कई आशंकाएं सिर उठा रही हैं. क्लाइमेट पर रिसर्च के लिए इस सबसे जरूरी महाद्वीप को बगैर निगरानी का छोड़ा जाना चीन को बड़ा मैदान दे सकता है. वो लंबे समय से शायद इसी ताक में था. 

फिलहाल यहां उसके पांच स्टेशन हैं और छठवां भी अगले दो सालों में बनकर तैयार हो जाएगा. बर्फ तोड़ने वाले बेहद विशाल जहाज भी उसके पास हैं, जो फिलहाल रिसर्च के मकसद से काम कर रहे हैं. लेकिन अमेरिका अगर पीछे हटे तो बीजिंग के इरादे सिनिस्टर हो सकते हैं. ये देश पहले भी मैरिन प्रोटेक्शन एरिया के विरोध में रहा और हर जगह स्टेशन बनाने की छूट मांगता रहा. इसके अलावा खनन भी उसके एजेंडा में रहा, अब तक अंटार्कटिका ट्रीटी की वजह से बात अटकी हुई है. 

हाल के सालों में चीन वहां तेजी से बढ़ा. इसके बाद से ये डर गहरा रहा है कि वो अपने रिसर्च सेंटरों का दोहरा इस्तेमाल तो नहीं कर रहा! यानी साइंस के लिए बने स्टेशन सैन्य प्रयोग तो नहीं कर रहे.

Advertisement

इससे पहले कोल्ड वॉर के समय रूस (तब सोवियत संघ) के बारे में भी यही डर जताया गया था. दरअसल रूस का वॉस्तोक स्टेशन काफी अलग-थलग बना हुआ था. तभी पश्चिम को शक हुआ कि रूस वहां अंडरग्राउंड सैन्य स्ट्रक्चर बना रहा है. कुछ रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया कि स्टेशन के नीचे गुप्त सुरंगें और बेसमेंट्स थे, जिनका मकसद मौसम समझना या बर्फ की परतों की स्टडी नहीं हो सकती. हालांकि इस शक की पुष्टि नहीं हो सकी. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement