लता मंगेशकर ने 13 साल की उम्र में पिता की मौत के बाद परिवार का खर्च चलाने के लिए गायन के क्षेत्र में करियर की शुरुआत की. लेकिन इससे पहले एक दौर वह भी था जब वह अपनी मां के लिए गाया करती थीं. एक साक्षात्कार के दौरान लता ने किस्सा सुनाते हुए कहा था कि जब वह चार-पांच साल की थीं तो किचन में खाना बना रही अपनी मां को स्टूल पर खड़े होकर गाने सुनाया करती थीं. लता ने यह भी बताया कि तब उनके पिता को बेटी के इस शौक के बारे में जानकारी नहीं थी.
'स्वर साम्राज्ञी' लता मंगेशकर 28 सितंबर को जीवन के 85 साल पूरे कर रही हैं. यूं तो लता ने अपने जीवन में सैकड़ों गीत गाए, लेकिन 'नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा.. मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे' यकीनन उनके व्यक्तित्व, कला और अद्वितीय प्रतिभा को परिभाषित करता है.
मध्य प्रदेश के इंदौर में 28 सितंबर 1929 को जन्मी कुमारी लता दीनानाथ मंगेशकर रंगमंचीय गायक दीनानाथ मंगेशकर और सुधामती की बेटी हैं. पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी लता को उनके पिता ने पांच साल की उम्र से ही संगीत की तालीम दिलवानी शुरू की थी.
रंगमंच में दिलचस्पी
अपनी बहनों आशा, उषा और मीना के साथ संगीत की शिक्षा लेने के साथ ही लता बचपन से ही रंगमंच के क्षेत्र में भी सक्रिय थीं. जब वह सात साल की थीं, तब उनका परिवार मुंबई आ गया इसलिए उनकी परवरिश मुंबई में ही हुई.
बताया जाता है कि एक बार पिता की गैरमौजूदगी में उनके एक शागिर्द को लता एक गीत के सुर गाकर समझा रही थीं, तभी पिताजी आ गए. पिताजी ने उनकी मां से कहा, 'हमारे खुद के घर में गवैया बैठी है और हम बाहर वालों को संगीत सिखा रहे हैं.' कहा जाता है कि इसके अगले ही दिन पिताजी ने लता को सुबह छह बजे तानपुरा थमा दिया.
पिता की मौत और करियर की शुरुआत
साल 1942 में दिल का दौरा पड़ने के कारण दीनानाथ मंगेशकर की मृत्यु हो गई. परिवार के मुखिया की मौत के बाद भरण-पोषण को लेकर समस्या खड़ी हो गई. ऐसे में भाई-बहनों में सबसे बड़ी लता ने कुछ वर्षों तक हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया. इनमें 'मीरा बाई', 'पहेली मंगलागौर', 'मांझे बाल', 'गजा भाऊ', 'छिमुकला संसार', 'बड़ी मां', 'जीवन यात्रा' और 'छत्रपति शिवाजी' प्रमुख हैं.
साल 1942 में लता को पहली बार मराठी फिल्म 'कीती हसाल' में गीत गाने का मौका मिला, लेकिन दुर्भाग्य से वह गाना फिल्म में शामिल नहीं किया गया. सिंगिंग करियर के शुरुआती दौर में लता को बहुत संघर्ष करना पड़ा. उनकी पतली आवाज के कारण संगीतकार उन्हें फिल्मों में गाने का मौका नहीं देते थे, लेकिन किसे पता था भविष्य में यही आवाज हिंदी सिनेमा की पहचान बन जाएगी.
...और मिली पहली सफलता
साल 1947 में आई फिल्म 'आपकी सेवा में' में गाए गीत से लता को पहली बार बड़ी सफलता मिली और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वर्ष 1949 में गीत 'आएगा आने वाला', 1960 में 'ओ सजना बरखा बहार आई', 1958 में 'आजा रे परदेसी', 1961 में 'इतना न तू मुझसे प्यार बढ़ा', 'अल्लाह तेरो नाम', 'एहसान तेरा होगा मुझ पर' और 1965 में 'ये समां, समां है ये प्यार का' जैसे गीतों ने लता मंगेशकर को फिल्मी संगीत का जानामाना चेहरा बना दिया.
प्रधानमंत्री की आंखों में आए आंसू
फिल्मी गीतों में परचम लहरा चुकी लता ने 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद एक कार्यक्रम के दौरान कवि प्रदीप का लिखा गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया, जिसे सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे. आज भी इस गीत को देशभक्ति गीतों में सर्वश्रेष्ठ का दर्जा प्राप्त है.
भारत सरकार ने लता मंगेशकर को 1969 में पद्म भूषण और 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया. सिनेमा जगत में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और फिल्म फेयर जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.