झारखंड में नक्सली हमले में बेटे को गवां चुके बाबूलाल मरांडी ने सरकारी स्कूल के टीचर की नौकरी छोड़कर सियासत में कदम रखा और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए. आरएसएस के निष्ठावान स्वयंसेवक और समर्पित भाजपाई रहे बाबूलाल मरांडी इस बार के विधानसभा चुनाव में किंगमेकर बनने की चाहत लेकर सियासी किस्मत आजमा रहे हैं.
बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री थे. संताल समुदाय से आने वाले बाबूलाल मरांडी बीजेपी के बड़े नेता रहे. हालांकि 2006 में बीजेपी में मनमुटाव के बाद राजनीति में अपना एक अलग मुकाम बनाने के लिए उन्होंने पार्टी से नाता तोड़ लिया था और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली. इस बार झारखंड की सभी सीटों पर उन्होंने अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं.
बाबूलाल मरांडी का जन्म झारखंड के गिरिडीह के टिसरी ब्लॉक स्थित कोडिया बैंक गांव में 11 जनवरी 1958 को हुआ. मरांडी ने अपनी स्कूली शिक्षा गांव से प्राप्त करने के बाद गिरिडीह कॉलेज में दाखिला ले लिया और यहां से इन्होंने इंटरमीडिएट व स्नातक की पढ़ाई पूरी की. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मरांडी आरएसएस से जुड़ गए थे.
मरांडी ने आरएसएस से पूरी तरह जुड़ने से पहले गांव के स्कूल में कुछ सालों तक शिक्षकी की नौकरी की, हालांकि बाद में उन्होंने टीचर की नौकरी छोड़ दी और संघ के कामों में पूरी तरह लग गए. व्यवस्था बदलाव और शिखर तक जाने की सोच के साथ शिक्षक की नौकरी त्यागने वाले बाबूलाल मरांडी काफी भाग्यशाली रहे. विधायक से होते हुए सांसद और झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ. बाबूलाल मरांडी की 1989 में शांति देवी से शादी हुई. इनका बेटा अनूप मरांडी 2007 के झारखंड के गिरिडीह क्षेत्र में हुए नक्सली हमले में मारा गया था.
1991 में दुमका से चुनाव लड़े
बाबूलाल मरांडी को 1991 में बीजेपी ने दुमका से टिकट दिया, लेकिन वह इस चुनाव में हार गए. इसके बाद 1996 लोकसभा चुनाव में उनके सामने झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन खड़े थे और इस मुकाबले में बाबूलाल मरांडी को हार मिली, लेकिन हार का अंतर केवल 5 हजार वोट था. इस हार के बावजूद बाबूलाल मरांडी का कद पार्टी में बढ़ गया. उन्हें बीजेपी ने झारखंड का अध्यक्ष बना दिया गया था.
मरांडी के नेतृत्व में ही बीजेपी ने 1998 के लोकसभा चुनावों में झारखंड क्षेत्र के तहत आने वाली 14 में से 12 संसदीय सीटें जीतने में कामयाब रही. वे संताल समुदाय के ही दूसरे बड़े नेता शिबू सोरेन को भी मात देकर सांसद चुने गए. यह उनके राजनीतिक करियर का शीर्ष दौर था. इस जीत के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल किया गया. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार में बाबूलाल मरांडी 1998 से लेकर 2000 तक वन और पर्यावरण राज्य मंत्री भी रहे.
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने
2000 में बिहार से अलग होकर बने राज्य झारखंड में वह पहले मुख्यमंत्री बने. बाबूलाल मरांडी ने राजधानी रांची पर जनसंख्या और संसाधनों का दबाव कम करने के लिए ग्रेटर रांची स्थापित करने की योजना का खाका भी खींचा था, लेकिन सहयोगी जेडीयू के दबाव के चलते उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी अर्जुन मुंडा के लिए छोड़नी पड़ी. इसके बाद से उन्होंने राज्य की राजनीति से दूरी बनानी शुरू कर दी.
2004 के लोकसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी कोडरमा सीट से लड़े. बाबूलाल मरांडी इस चुनाव में झारखंड से जीतने वाले अकेले भाजपा उम्मीदवार थे. इस दौरान उनके राज्य प्रभारियों से मतभेद बढ़ते गए और वह सार्वजनिक तौर पर अर्जुन मुंडा सरकार की आलोचना करने लगे. बात इतनी बिगड़ गई कि 2006 में बाबूलाल मरांडी ने लोकसभा और भाजपा की सदस्यता दोनों से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद बाबूलाल मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा नामक पार्टी का गठन कर लिया.
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी के पांच विधायक पार्टी छोड़कर मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा में शामिल हुए थे. कोडरमा लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े और जीत हासिल की. इसके बाद 2014 में जेवीएम ने मैदान में उतरी और 8 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.
हालांकि चुनाव के बाद आठ में से छह विधायकों ने एक साथ मरांडी का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. ऐसे में एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं, देखना होगा कि उनके किंगमेकर बनने का सपना पूरा होता है कि नहीं.