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पहले काराकाट, अब सीवान... जानिए RJD के बेस 'भोजपुरी बेल्ट' पर इस बार क्यों है BJP का फोकस

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने भोजपुरी बेल्ट पर फोकस कर दिया है. बिहार के भोजपुरी बेल्ट में तीन हफ्ते के भीतर पीएम मोदी की दूसरी जनसभा होनी है. इसके पीछे क्या है?

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बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन हफ्ते के भीतर दूसरी बार बिहार पहुंच रहे हैं. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीवान जिले के जसौली गांव से बिहार को करीब 10 हजार करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं की सौगात देंगे और जनसभा को भी संबोधित करेंगे. पीएम पाटलिपुत्र-गोरखपर वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखा परिचालन की शुरुआत भी करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी अभी तीन हफ्ते पहले भी दो दिन के दौरे पर बिहार पहुंचे थे.

29 मई को पटना पहुंचे पीएम मोदी ने पटना में रोड शो किया था और काराकाट के बिक्रमगंज में आयोजित कार्यक्रम में सूबे को 47500 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं की सौगात दी थी. बिक्रमगंज में पीएम मोदी ने जनसभा को भी संबोधित किया था. बिक्रमगंज, काराकाट लोकसभा सीट के तहत आता है.

भोजपुरी बेल्ट में तीन हफ्ते के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी रैली हो रही है. सवाल है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने विधानसभा चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से भी पहले ही अपने सबसे बड़े चेहरे को भोजपुरी बेल्ट में क्यों उतार दिया है? बिहार का पूर्वांचल कहे जाने वाले भोजपुरी बेल्ट पर पार्टी का इतना फोकस क्यों है?

बिहार की करीब सौ सीटों पर भोजपुरी का प्रभाव

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बिहार के भोजपुरी बेल्ट की बात करें तो इसमें शाहाबाद रीजन के चार जिलों- भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास के साथ ही सीवान, गोपालगंज, औरंगाबाद, पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण जिले आते हैं. सीवान जिले में आठ, सारण में 10, गोपालगंज जिले में छह, भोजपुर में सात, बक्सर में चार,  कैमूर में चार, रोहतास में सात विधानसभा सीटें हैं.

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इसी तरह औरंगाबाद में छह, पश्चिम चंपारण में नौ और पूर्वी चंपारण जिले में विधानसभा की 12 सीटें हैं. भोजपुरी बेल्ट के 10 जिलों में 73 सीटें हैं. इन भोजपुरी भाषी जिलों के अलावा मुजफ्फरपुर, कटिहार जैसे जिलों के कुछ इलाकों में भी भोजपुरी बोली जाती है. ऐसी सीटों की संख्या भी करीब दो दर्जन है, जहां भोजपुरी भाषी मतदाता जीत-हार तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कुल मिलाकर देखें तो सूबे की करीब सौ विधानसभा सीटों पर भोजपुरी का प्रभाव है.

भोजपुरी बेल्ट ने बीजेपी को किया था डेंट

पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भोजपुरी बेल्ट की सीटों पर बीजेपी और उसकी अगुवाई वाले एनडीए को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. बीजेपी का गढ़ मानी जाने वाली बक्सर लोकसभा सीट भी पार्टी हार गई और आरा के साथ ही सासाराम, काराकाट, औरंगाबाद जैसी मजबूत सीटें भी एनडीए से फिसल गईं. मोदी सरकार के दो मंत्री अश्विनी चौबे और आरके सिंह जैसे कद्दावर चेहरे चुनावी रणभूमि में मात खा गए.

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काराकाट सीट पर उपेंद्र कुशवाहा जैसे दिग्गज को भी शिकस्त झेलनी पड़ी. सीवान सीट एनडीए जीतने में सफल जरूर रहा, लेकिन गिरते-पड़ते. सीवान से एनडीए उम्मीदवार जनता दल (यूनाइटेड) की विजयलक्ष्मी देवी ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय हिना शहाब को 92857 वोट से मात दी थी. तब आरजेडी उम्मीदवार को एक लाख 98 हजार 823 वोट मिले थे. विधानसभा चुनाव से पहले सीवान में भी समीकरण बदल गए हैं और हिना का परिवार अब आरजेडी में है.

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2020 में साबित हुआ था आरजेडी का बेस

बिहार का भोजपुरी बेल्ट 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी का बेस साबित हुआ था. भोजपुरी भाषी 10 जिलों की 73 विधानसभा सीटों में से 45 सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की अगुवाई वाले विपक्षी महागठबंधन के उम्मीदवार जीते थे. जिस बेल्ट को बीजेपी और एनडीए का गढ़ माना जाता था, उस बेल्ट में सत्ताधारी गठबंधन 27 सीटों पर सिमट गया था.

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इस बेल्ट की एक विधानसभा सीट मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी के खाते में भी गई थी. सीटों के लिहाज से देखें तो एनडीए की 27 के मुकाबले महागठबंधन को 45 सीटें मिली थीं, जो डेढ़ गुना से भी अधिक है. बक्सर, रोहतास, कैमूर और औरंगाबाद में एनडीए का खाता तक नहीं खुल सका था.

लगातार दो चुनाव के प्रदर्शन देख एक्टिव हुई पार्टी

राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए की अगुवाई कर रही बीजेपी के कान लगातार दो चुनावों में भोजपुरी बेल्ट से हुए नुकसान के बाद खड़े हुए. इस बार अपनी स्थिति और मजबूत करने की कोशिश में जुटी बीजेपी ने भोजपुरी बेल्ट के मतदाताओं को साधने के लिए चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से भी काफी पहले से काम शुरू कर दिया. पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का होली से ठीक पहले अपने मॉरिशस दौरे के दौरान भोजपुरी भाषा में संबोधन की शुरुआत करना हो या अब तीन हफ्ते के भीतर भोजपुरी बेल्ट में दूसरी रैली, यह सब इसी कवायद का हिस्सा माने जा रहे हैं.

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